बुधवार, 30 मार्च 2016

आग से इश्क हो जाए तो फिर...प्रेम नंदन





      समकालीन युवा रचनाकारों में प्रेम नंदन के नाम को अब बहुत दिनों तक विस्मृत नहीं किया जा सकता है। इधर इनकी रचनाओं में जो पैनी धार देखने को मिल रही है वह इनकी सक्रियता को उजागर तो कर ही रही है, समाज में हाशिए पर खड़े लोगों की मुखर आवाज बनकर भी उभर रही है । प्रेम नंदन  किसानों ,कामगारों व आम जनता की आवाज को बहुत सिद्दत से महसूस करते हैं और प्रकृत के विभिन्न उपादानों के माध्यम से हुक्मरानों को सचेत भी करते हैं। इस कवि से भविष्य में काफी सम्भावनाओं की उम्मीद तो की ही जा सकती है।


1-आग से इश्क हो जाए तो फिर...

पनीली हथेलियों में फंसे
अपने ढुलमुल सिर को मसलकर
उछाल देना चाहता हूँ मैं
आकाश कि अतल गहराइयों में
ताकि भर सकें
पूरी धरती के जख्म ,

बिखेर देना चाहता हूँ
रक्त का एक-एक कतरा
शुष्क , जहरीली हवाओं में
ताकि बची रह सके
हवाओं कि नमी और कोमलता

होंठो को पूरी ताकत से भींचकर
चाहता हूँ चीखना
मैं जोर-जोर से
ताकि पिघल सके
सत्ता के कानों में घुला हुआ सीसा

इन दिनों बहुत कुछ
करना चाहता हूँ मैं

ये छोटीसी चिंगारी
बदलेगी एक दिन जरूर
धधकती हुई आग में

आग से इश्क हो जाए तो फिर
कुछ भी असंभव नहीं !


2-सवालों के रंग

जब आदमी कि जिंदगी से जुड़े
अलग-अलग रंग के सवाल
हो जाते हैं गड्डमड्ड आपस में
तब उनका जवाब मिलता है
एक ही रंग में ,

आगे आप पर निर्भर है
कि आप उसे जोड़ते हैं
बहते हुए खून से
या उगते हुए सूर्य से !

3-प्रयोग

अपने खतरनाक विचारों को
शातिर हथियारों की तरह
प्रयोग करते हुए
जीत जाते हैं वे हमेशा
और तुम समझ लिए जाते हो कायर

सदियों से हो रहा है
इनका प्रयोग
तुम जैसे लोगों पर

वे खुश हैं बहुत
कि आज भी
पहले जितने ही कारगर हैं ये
तुम्हे कायर
और हत्यारों को
महान साबित करने में |


4- कैसा बसंत-किसका बसंत


नहीं गा सकता मैं
बसंत के गीत
ऐसे समय में
जब तड़प रहे हों खेत
मर रहे हों किसान
गाँव हो रहे हों खाली
छाई हो तंगहाली
अन्नदाता के घर ...
ये किसका बसंत?
और कैसा बसंत?



5-कभी तो टूटेगी उनकी ख़ामोशी 

आशान्वित हैं अब भी
उदासी के शून्य में टँगी
हजारों हजार आँखें
सुनती हैं सब कुछ
देखती नहीं कुछ भी
बोलती तो कतई नहीं !

उन आँखों को
नहीं पता
कि दुनिया की सारी आवाजें
रोशन हैं
उनकी ख़ामोशी से

वे नहीं जानती
कि उनकी ये ख़ामोशी
जब भी बदलेगी
आवाजों में
बहरी हो जाएंगी सत्ताएँ

उन्हें नहीं मालूम
कि जिधर भी देखेंगी वे
निर्जीव हो जाएँगे अँधेरे

इससे अनजान हैं वे
कि जब भी उठेंगे उनके हाथ
उनके कंधों पर उग आएंगे
करोड़ों हाथ
आखिरकार
कभी तो टूटेगी ही
उनकी ख़ामोशी
जब पता चलेगा उन्हें
कि सिर के ऊपर होने वाला है पानी !

संपर्क-
उत्तरी शकुननगर,
सिविल लाइन्स ,फतेहपुर,उ0प्र0
मो0
& 9336453835


bZesy&premnandan@yahoo.in



मंगलवार, 15 मार्च 2016

लघु कथा : सौभाग्य या दुर्भाग्य- उमा शंकर मिश्र






सौभाग्य या दुर्भाग्य

     आँसू यदि आंखो से निकल जाय तो मन को बहुत राहत मिलती है आँसू ही जीवन है । जिनके आंखो में आँसू नहीं है वहाँ जिन्दगी भी नहीं है । संवेदनशील जिन्दगी के आँसू तो आवश्यक तत्त्व होते हैं। संवेदना अच्छी जिन्दगी की आधार-शीला होती है।

     आज वसावन अपना खेत जोतकर वापस आया। यह तीन विश्वा जमीन उसे ठाकुर ने दिया था। इसलिए कि उसका पूर खेत 30 विघा वह जोतता रहे । वसावन की तीन पीढ़ी इसी में बित गयी थी। पसीन से लथपथ वसावन को 2 सूखी रोटी और पानी मिला हुआ दाल मिला। मंहगी दालें गरीबों के लिए नहीं बोई जाती है। न ही सुलभ कराया जाता है। इसलिए राशन कार्डो पर सरकार दाल उपलब्ध नहीं कराती है।

     बहुत है इससे जिन्दगी की सांस तो चलती रहेगी। गरीबी अभिशाप है कलंक है लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी वसावन की उसी में बित गया।

      खेत में काम करते करते वसावन की खेती से दोस्ती हो गयी थी। आज ठाकुर ने वसावन को 4 विघा जमीन जोतने के साथ गन्ना घेरने की भी सलाह दिया था। वसावन को अपनी दोनों लड़कियों की शादी की चिन्ताएं सता रही  थी । खेत के मेड़ पर जगह जगह बिल थे। पानी जब बिल में जाता था तो जहरीले सांप भी निकलते थे जो वसावन के लिए खतरा सिद्ध हो सकते थे। लेकिन इसकी परवाह वह नहीं करता था। क्योंकि गरीब की जान की कीमत कुछ नहीं हुआ करती खेत में एक विशेष जगह पानी  जाकर रूक जाता है तथा पानी में कुछ तैलीय तत्त्व नजर आ रहे थे।

       वसावन इस प्रक्रिया को कम से कम 20 वर्षों से देख रहा था। वह मालिका को बताय । मालिक ने जिला प्रशासन को इसके बारे में सूचना दिया। जिला प्रशासन ने भूगर्भ विभाग को सूचना के साथ साथ कुछ सकारात्मक कार्य करने के लिए निवेदन किया। आवेदन पर त्वरित कार्यवाही हुई तथा उस जगह की मिट्टी लेकर परीक्षण के लिए प्रयोगशाला में भेजा गया। परीक्षण कामयाब रहा।उस खेत में बहुत बड़ी मात्रा में पेट्रोल मिलने के संकेत मिला। वसावन खुश था । लेकिन ठाकुर नाराज । कहीं ऐसा न हो कि इसका श्रेय वसावन को मिल जाय । वह इसमें बटंवारा करने लगे नकारात्मक विचारों की आंधी में ठाकुर बह गया। और आज वसावन की खाने में जहर मिला दिया । तड़पकर वसावन की मौत हो गयी उस जगह जहां तेल मिलने की संभावना थी अभिशाप समझकर भूगर्भ विभाग ने कार्य करने से मना कर दिया।जिलाधिकारी महेन्द्र ने कार्य स्थगित करा दिया।

       ठाकुर की बेइमानी,छल ,कपट,प्रपंच के कारण एक अच्छा कार्य आगाज होने से पहले समाप्त हो गया।

सम्पर्क:  उमा शंकर मिश्र
          ऑडिटर श्रम मन्त्रालय
          भारत सरकार
          वाराणसी मोबा0-8005303398

मंगलवार, 8 मार्च 2016

आरसी चौहान की तीन कविताएं





          वागर्थ के फरवरी अंक में मेरी तीन कविताएं प्रकाशित हुई हैं । आप सब लिए पुरवाई ब्लाग में इसे पोस्ट कर रहा हूं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर दुनिया की आधी आबादी को ढेर  सारी शुभकामनाएं। वैसे आज मेरा जन्म दिवस भी है।आज ही के दिन अर्थात 08 मार्च 2015 को शुरू किया गयाा था हम कुछ मित्रों द्वारा साल भर पहले उत्तराखण्ड से शिक्षा तरू अभियान। इस अभियान के बारे में फिर कभी आगे। फिलहाल प्रस्तुत है मेरी तीन कविताएं-

 












एक विचार

(हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं पढ़ते हुए)
एक विचार
जिसको फेंका गया था
टिटिराकर बड़े शिद्दत से निर्जन में
उगा है पहाड़ की तरह
जिसके झरने में अमृत की तरह
झरती हैं कविताएं
शब्द चिड़ियों की तरह
करते हैं कलरव
हिरनों की तरह भरते हैं कुलांचे
भंवरों की तरह गुनगुनाते हैं
इनका गुनगुनाना
कब कविता में ढल गया और
आदमी कब विचार में
बदल गया
यह विचार आज
सूरज-सा दमक रहा है।



कितना सकून देता है

आसमान चिहुंका हुआ है
फूल कलियां डरी हुई हैं
गर्भ में पल रहा बच्चा सहमा हुआ है
जहां विश्व का मानचित्र
खून की लकिरों से खींचा जा रहा है
और उसके ऊपर
मडरा रहे हैं बारूदों के बादल
ऐसे समय में
तुमसे दो पल बतियाना
कितना सकून देता है।

ढाई अक्षर
 
तुम्हारी हंसी के ग्लोब पर
लिपटी नशीली हवा से 
जान जाता हूं  
कि तुम हो
तो   
समझ जाता हूं
कि मैं भी
अभी जीवित हूं 
ढाई अक्षर के खोल में।



संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com