रविवार, 30 अक्तूबर 2016

उत्तम कांबळे की कविताएं-





मूल कवि
उत्तम कांबळे
31 मे 1956, ग्राम टाकळीवाडी, तहसील शिरोळ, जिला कोल्हापूर (महाराष्ट्र)
साहित्य और पत्रकारिता
भाषा : मराठी
कहानी, उपन्यास, ललित, वृत्तपत्रीय लेख
प्रसिद्ध साहित्यकृती : श्राद्ध, अस्वस्थ नायक. कथासंग्रह-रंग माणसांचे, कावळे आणि माणसं, कथा माणसांच्या, न दिसणारी लढाई. काव्यसंग्रह-नाशिक-तू एक सुंदर खंडकाव्य। आत्मचरित्र-वाट तुडवतांना, आई समजून घेताना।
पुरस्कार : दर्पण पुरस्कार
विशेष : 81वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन के  स्वागताध्यक्ष सांगली (महाराष्ट्र)(18 ते 20 जाने. 2008)
सद्यस्थिती : संपादक, दैनिक सकाळ


अनुवादक
दत्ता कोल्हारे
कार्यक्षेत्र : साहित्य और शिक्षा
मातृभाषा : मराठी
संपादित ग्रंथ : आदिवासी साहित्य एवं संस्कृति, हिंदी साहित्य : बदलता हुआ परिप्रेक्ष्य, वर्त्तमान भारतीय साहित्य : चिंता एवं चिंतन, हिंदी साहित्य : स्थानीय, राष्ट्रीय एवं वैश्विक संदर्भ
सृजन : विभिन्न पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित,
विशेष : आकाशवाणी पर वार्ताएं प्रसारित
सद्यस्थिती : प्राध्यापक

उत्तम कांबळे की कविताएं-

1- रोटी
रोटी
छिनाल होती है
घोडे की लगाम होती है
टाटा की गुलाम होती है
रोटी
मारवाडी का माप होती है
पेट में छुपा पाप होती है
युगोंयुगों का शाप होती है
रोटी
इतिहास और भूगोल भी
गले का फांस और श्वास भी
पहेलियों से भरा आकाश और आभास भी
रोटी
गवाह होती है धर्मयुद्धों की कर्मयुद्धों की
कागज पर धीरे से उतरनेवाली कविताओं की
और कविताओं में बोई गई विस्फोटों की।

 
2- अनुकरण 

मनुष्य संगणक से पूछता है...
‘‘हे संगणक!
तू एक ही समय में
विचारों से लेकर विकारों तक
सेक्स से लेकर अध्यात्म तक
संस्कृति से लेकर विकृति तक
सभी बातें
एक ही पेट में कैसे रख सकते हो?’’
संगणक बोला,
‘‘मैं तो बस तुम्हारा ही अनुकरण करता हूँ।’’

3- बाँग और आरती

बाँग, घंटानाद और आरती सुनकर
पहले मनुष्य जाग जाता था
आज दंगा हो जाता है
और प्रार्थना स्थलों को ही
रक्तस्नान  करता है।

4- क्या पता...
क्या पता...
नई सदी का मनुष्य
संगणक के कंधे पर
सिर रखकर
अंतिम साँस ले
दयालू संगणक
अंतराल में, मनुष्य के कबर के पास
शोकसभा ले
शोकप्रस्ताव पारित कर
आत्मीय भाषण भी दे
‘‘पृथ्वी पर रहनेवाली
मनुष्य नामक जाति
कितनी जुझारू थी,
कितनी गूढ़ थी
वह अत्यंत लड़ाकू भी थी
वह धर्म के लिए लड़ी
वह जाति के लिए लड़ी
प्रदेश और पंथ के लिए भी लड़ी
दुःख बस इस बात का है कि
वह मनुष्यता के लिए
कभी नहीं लड़ी
समस्त संगणक बंधुओं को
अब हमारा नम्र निवेदन
उन्होंने उन्हें
मनुष्य द्वारा प्राप्त बुद्धि का
दयालूवृत्ति से प्रयोग करें
मनुष्यता के लिए लड़े
ऐसे मनुष्य को दुबारा
जन्म देने का
प्रमाणिक प्रयत्न करें
नामशेष होने वाले
मनुष्य प्राणी को
यही सच्ची श्रद्धांजली।’’


संपर्क :
दत्ता कोल्हारे  
मोबा0-09860678458
Email-dattafan@gmail.com,

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

बूढ़ी अम्मा : ममता सैनवाल



    
  

   इस नवोदित रचनाकार में बहुत कुछ करने की संभावना है। इसके पहले इनकी एक कविता प्रकाशित कर चुका हूं। इस बार इनकी डायरी का कुछ अंश जो इनके अनुभवों पर आधारित है बिना तारिख के।


 बूढ़ी अम्मा


      आज कल रास्ते में चलते टी0वी0,अखबार पर हम अलग अलग घटनाएं देखते सुनत व पढ़ते रहते हैं।मैं भी एक ऐसी घटना का वर्णन कर रही हूँ,जो दो साल पहले मेरे साथ घटी।

     मैं उस समय की बात कर रही हूँ जब मैं अकेले ट्यूशन क्लास जाया करती थी। मैं जिस बस स्टॉप से अपनी बस पकड़ती थी उसी बस स्टॉप पर एक बूढ़ी अम्मा बैठी रहती थी और वह बहुत बूढ़ी थी लेकिन वह बस स्टॉप पर अकेले ही बैठे रहती थी । एक दिन मैंने उन से जाकर पूछा अम्मा आप हमेशा यहां अकेले क्यूँ बैठे रहती हो। उन्होंने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया वे जहां बैठी थी वहां से उठकर चली गई मैंने सोचा शायद वो मुझसे बात नहीं करना चाहती इसलिए वो उठकर चली गई।

      एक दिन सोमवार की सुबह को जब मैं दुबार टयूशन क्लास के लिए बस स्टॉप गई तो वह बूढ़ी औरत वहां पर सब लोगों से पानी मांग रही थी लेकिन कोई उस बुढ़िया को पानी की क्या , बात तक सुनने को तैयार न थे । लोग उन्हें देखकर भी अनदेखा कर रहे थे।बुढ़िया पानी मांगते मांगते जमीन पर गिर गई। लोग पैर मार-मार कर आगे बढ़ गए।लेकिन किसी ने उन्हें पानी की एक बूंद तक नहीं दी। थोड़ी देर बाद मैंने दुकान से पानी की एक बोतल खरीदी और उन अम्मा का जमीन से उठाया उनके कपड़े झाड़े जिन पर बहुत मिट्टी लग गई थी। उनके कपड़े झाड़ने के बाद एक कोने में बैठाया और उन्हें पानी पिलाया। उस समय अम्मा मुझे गले लगकर रोने लगी।उस समय मुझे लगा कि वो कोई मेरी ही कोई अपनी है।मैंने अम्मा से पूछा कि अम्मा आप यहां अकेले क्यों बैठे रहती हैं।उन्होंने रोते रोते कहा मुझे मेरे बच्चों ने घर से बाहर निकाल दिया है।मेरे पति की मृत्यु के बाद उन्होंने सारी जमीन जायदाद अपने नाम पर कर ली।और मुझे घर से बाहर निकाल दिया।

    मैंने अम्मा से कहा अम्मा आप मेरी दादी जैसी हैं।आप मेरे साथ घर चलो । आप मेरे घर पर रहना। '' मैं नहीं जाउंगी, ये बस स्टॉप ही मेरे घर जैसा है। मैं यहां दो साल से रह रही हूं।'' अम्मा ने कहा ।



वो मेरे साथ नहीं आई।
अगली सुबह जब मैं दोबारा बस स्टॉप पर गई तो वहां पर बहुत भीड़ लगी हुई थी।मैं जब भीड़ के आगे जाकर देखा तो वह बूढ़ी औरत जमीन पर लेटी हुई थी। मैंने लोगों से पूछा कि अम्मा लेटी हुई क्यों हैं ? तो लोगों ने बताया कि अम्मा मर गई है।उस समय मुझे लगा कि मेरा अपना कोई मुझसे दूर हो गया है।



   शायद आज अगर अम्मा के बच्चे उन्हें घर से बाहर नहीं निकालते तो वे जीवित रहती। उन्हें क्या पता माता-पिता दुनिया में कितनी अनमोल चीज हैं। जिसका कोई मोल नहीं है और ना ही हो सकता है।

संपर्क-
ममता सैनवाल
कक्षा 12
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड 249121
 

शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

पा गया बंदूक अब कंधे की है दरकार उसको : ठाकुर दास 'सिद्ध'




                                                 14 सितम्बर 1958
शिक्षा- जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक । लेखन विधाएँ- गीत,ग़ज़ल,दोहे,सवैया,कविता,कहानी,व्यंग्य । प्रकाशित कृति- वर्ष 1995 में श्री प्रकाशन दुर्ग से ग़ज़ल संकलन 'पूछिए तो आईने से'  
संप्रति- छत्तीसगढ़ जल संसाधन विभाग में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत।
ग़ज़ल

पा गया बंदूक अब कंधे की है दरकार उसको।
है फ़रेबी, कर परे रे, छोड़ गोली मार उसको।।


जो हमें दिन-रात गहरे ज़ख़्म ही देता रहा है।
गर कहें तो किस ज़ुबाँ से यार कह दें यार उसको।।

जो बचेगा बाद में, वो आप ही के नाम होगा।
पर अभी सब ही से पहले, चाहिए है सार उसको।।

सिर्फ़ पत्थर थे भरे, सीने में होना था जहाँ दिल।
हो गई नादानियाँ, समझा किए दिलदार उसको।।

कर चुका बातें बहुत वो बीच अपने नफ़रतों की।
चुप कराने के लिए अब, दो लगा दो-चार उसको।।

पास अपने आ गया शैतान ये जिस पार से है।
'सिद्ध' मिलकर अब चलो हम भेज दें उस पार उसको।।
 

  
संपर्क –
  ठाकुर दास 'सिद्ध'
  सिद्धालय, 672/41,सुभाष नगर,
  दुर्ग-491001,(छत्तीसगढ़)
  मो-919406375695