सोमवार, 25 नवंबर 2013

जनवादी लेखक संघ फतेहपुर के तत्वाधान मेँ आयोजित संगोष्ठी व कवि सम्मलेन संपन्न : एक रिपोर्ट





'जनवादी लेखक संघ' फतेहपुर के तत्वाधान मेँ प्रथम सत्र में आयोजित संगोष्ठी मेँ "किताबेँ कुछ कहना चाहती हैँ तुम्हारे साथ रहना चाहती हैँ।" शीर्षक पर विचार मंथन के साथ साथ द्वितीय सत्र में "जनवादी कवि सम्मलेनभी संपन्न हुआ। प्रस्तुत है एक चित्रयुक्त रिपोर्ट  ~ प्रवीण त्रिवेदी

जनवादी लेखक संघ जनपद फतेहपुर की सेमिनार एवं काव्य-गोष्ठी
फतेहपुर शहर एक ऐसा शहर जहाँ साहित्यिक गतिविधियाँ होती भी हैं तो बंद कमरों में, वहां ऐसे आयोजन का महत्त्व बढ़ ही जाता है जहाँ आयोजन पर चर्चा फेसबुक जैसे प्रमुख  सोशल माध्यमों में होने लगे! इसी जिज्ञासा के बीच फतेहपुर जिले के रानी कालोनी मुहल्ला स्थित विद्यानिकेतन इंटर कॉलेज में रविवार को जनवादी लेखक संघ की जिला ईकाई के बैनर तले  एक परिचर्चा और काव्य गोष्ठी का कार्यक्रम आयोजित किया।

परिचर्चा किताबें कुछ कहना चाहती हैं, तुम्हारे साथ रहना चाहती हैं विषयक संगोष्ठी में वैचारिक धरातल काफी ऊंचाई पर दिखाई दिया। किताब और किताबों के लेकर उठ रहे सरोकारों और प्रश्न चिन्हों के मध्य लेखक और पाठक के संबंधों के साथ साथ प्रकाशक जैसी संस्था को लेकर महत्वपूर्ण चर्चा हुई! अंततः कहा जा सकता है कि प्रगतिशील और वैचारिक  कविता साहित्य का जीता जागता कार्यक्रम लोगों के बीच सराहा गया। लेकिन बौद्धिकता के ऐसे कार्यक्रमों में पचास एक आदमियों का कार्यक्रम के अंत तक बना रहना एक अच्छा सन्देश छोड़ गया कि संभावनाएं बहुत हैं ................. बस जरुरत है दोहन करने की! आज 24 नवम्बर 2013 दिन रविवार को विद्यानिकेतन इन्टर कालेज फतेहपुर मे जनवादी लेखक संघ के तत्वाधान मे "सेमिनार एवं काव्य-गोष्ठी" का भव्य आयोजन हुआ। कार्यक्रम के रूपरेखाकार एवं संयोजक साथी प्रेम नन्दन जी राजेश यादव जी रहे।

सेमिनार सत्र का विषय "किताबें कुछ कहना चाहती हैं | आपके पास रहना चाहती हैं" रहा सेमिनार सत्र की अध्यक्षता फतेहपुर जनपद के सम्मानित कवि श्री श्रीकृष्ण त्रिवेदी ने जी ने की। विषय प्रवर्तन करते हुये वामपंथी विचारक श्री सुधीर सिंह जी ने कहा कि "हिन्दी पट्टी मे किताबों और लेखको का अभाव नही है ,अभाव है तो समझ और पाठक का। पाठक की रुचि विकसित करने मे लेखक संगठनो की भूमिका अहं है।  समीक्षक सुधीर सिंह कहाकि किताबों ने समाजों का निर्माण किया है। हिंदी भाषी क्षेत्र में किताब पढ़ने की ललक कम हो रही है। समालोचक डॉ. बालकृष्ण पाण्डेय ने कहाकि किताबें अगर बहुत कुछ कहती है तो हमें उनसे संवाद करने के लिए हमें उनके पास जाना होगा। अध्यक्ष श्रीकृष्ण त्रिवेदी ने कहाकि जनवादी लेखक संघ की तहर से मदद की जाएगी।  इलाहाबाद से आए त्रिलोकी नाथ द्विवेदी कहाकि लेखक भी पाठक के मनोकूल होना चाहिए।

श्रीरंग जी ने कहा कि "लेखक संगठन ही किताबों के प्रसार पठनीयता बढा सकते है जरूरी है किताब उस वर्ग तक जाये जिसके लिये वह लिखी गयी है" उनका कहना था कि  लेखक और कवि मुट्ठी भर है लेकिन समाज में इनकी महती भूमिका है। संयोजक प्रेम नंदन ने कहाकि पुस्तके ही महापुरुष हैं जो जुड़ने के लिए प्रेरित करती हैं। उमाशंकर सिंह परमार ने कहा कि यथास्थितिवादी और प्रतिक्रियावादी साहित्य का व्यापक स्तर पर विरोध एवं प्रगतिशील साहित्य का प्रसार ही पाठक की रुचि परिष्कृत कर सकता है"   वक्ताओं मे ज्ञानेन्द्र जी ,गोवर्धन सिंह जी उर्दू शायर कमर सिद्दकी साहब ,आलोक जी आदि रहे सत्र का संचालन श्री शिवशरण बन्धु जी ने किया।

द्वितीय सत्र काव्य-गोष्ठी का रहा जिसमे जनपद फतेहपुर के साथी एंव आगंतुक कवियों ने अपनी कविताओं से सम्मोहन की समाँ बाँध दी! साहित्य गोष्ठी में उस हर अनछुए पहलू पर प्रकाश डालकर कवि और साहित्यकारों ने श्रोताओं को सोचने पर विवश कर दिया। हिंदी भाषा के प्रति लोगों में कम हो रहे लगाव को खींचा गया। साहित्य के दर्पण पर समाज का आइना दिखाने की साहित्यकारों ने पुरजोर कोशिश की।

शायर कमर सिद्दीकी ने कहा कि "हाथों को इतना काम दिया गया हैं कि लिखने के लिए वक्त बहुत कम पड़ गया और जुबां भी बहुत मुश्किल में ३२ दांतों के बीच में है ......." उन्होंने अपनी कविता में कहा कि - हम बोलने वालों के तरफदार क्यों हुए ? इस दौर में हम साहिबे किरदार क्यों हुए??

खागा से आए डॉ. ज्ञानेंद्र गौरव ने पढ़ा लोकतंत्र का मंत्र है, होता रहे चुनाव.. संचालन कर रहे शिव शरण बंधु ने पढ़ा पहुंच नहीं जाता कोई रातोरात बुलंदी पर, छत पड़ने से पहले दीवानी उठानी पड़ती है। कमर सिद्दीकी ने पढ़ा कभी कोई भी शिकायत करे उससे की हमने... श्री केशव तिवारी ने कहा कि कविता के बिना क्रान्ति असम्भव है परिवर्तन की आधारशिला कविता रखती है।

कविता गोष्ठी की अध्यक्षता जनपद बाँदा के प्रसिद्ध कवि श्री केशव तिवारी ने की और संचालन शिवशरण बन्धु ने किया काव्य-पाठ करने वाले मुख्य कवि श्री कमर सिद्दकी साहब ,श्री श्रीकृष्ण त्रिवेदी, प्रेमनन्दन जी ,ज्ञानेन्द्र गौरव जी ,शिवशरण बन्धु जी जनपद फतेहपुर के रहे एवं श्री केशव तिवारी (बाँदा) श्री रतिनाथ योगेश्वर ( इलाहाबाद) श्री रंग जी (इलाहाबाद) जैसे चर्चित कवि भी रहे! इस मौके पर अंशुमाली, अनुरागी, महेश चंद्र त्रिपाठी, केपी सिंह, शैलेंद्र द्विवेदी, शिव सिंह लोधी, प्रेमनंदन, शैलेष गुप्त वीर, प्रांजल आदि रहे।

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

जनपथ के युवा कविता विशेषांक में प्रकाशित मेरी कुछ कविताएं





संक्षिप्त परिचय
आरसी चौहान ( जन्म - 08 मार्च 1979 चरौवॉ,  बलिया,  उ0 प्र0 ) 
शिक्षा- परास्नातक-भूगोल एवं हिन्दी साहित्य, पी0 जी0 डिप्लोमा-पत्रकारिता, बी00, नेट-भूगोल 
सृजन विधा-गीत,  कविताएं, लेख एवं समीक्षा आदि  
प्रसारण-आकाशवाणी इलाहाबाद, गोरखपुर एवं नजीबाबाद से
  
प्रकाशन-                                                                                        नया ज्ञानोदय, वागर्थ, कादम्बिनी, अभिनव कदम,इतिहास बोध,कृतिओर,जनपथ,कौशिकी,गुफ्तगू, तख्तोताज, अन्वेषी, हिन्दुस्तान, आज, दैनिक जागरण,अमृत प्रभात, यूनाईटेड भारत, गांडीव, डेली न्यूज एक्टिविस्ट, एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं तथा बेब पत्रिकाओं में
अन्य- 1-उत्तराखण्ड के विद्यालयी पाठ्य पुस्तकों की कक्षा-सातवीं एवं आठवीं के सामाजिक विज्ञान में लेखन कार्य 
ड्राप आउट बच्चों के लिए , राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की पाठ्य पुस्तकों की कक्षा- छठी , सातवीं एवं आठवीं के सामाजिक विज्ञान का लेखन संपादन  पुरवाई  पत्रिका का संपादन              
आरसी चौहान की कविताएं

1-बेर का पेड़

मेरा बचपन
खरगोश के बाल की तरह
नहीं रहा मुलायम
ही कछुवे की पीठ की तरह
कठोर ही

हाँ मेरा बचपन
जरूर गुजरा है
मुर्दहिया, भीटा और
मोती बाबा की बारी में
बीनते हुए महुआ, आम
और जामुन

दादी बताती थीं
इन बागीचों में
ठाढ़ दोपहरिया में
घूमते हैं भूत-प्रेत
भेष बदल-बदल
और पकड़ने पर
छोड़ते नहीं महिनों

कथा किंवदंतियों से गुजरते
आखिर पहुँच ही जाते हम
खेत-खलिहान लाँघते बागीचे
दादी की बातों को करते अनसुना

आज स्मृतियों के कैनवास पर
अचानक उभर आया है
एक बेर का पेड़
जिसके नीचे गुजरा है
मेरे बचपन का कुछ अंश
स्कूल की छुट्टी के बाद
पेड के नीचे
टकटकी लगाये नेपते रहते
किसी बेर के गिरने की या
चलाते अंधाधुंध ढेला, लबदा

कहीं का ढेला
कहीं का बेर
फिर लूटने का उपक्रम
यहाँ बेर मारने वाला नहीं
बल्कि लूटने वाला होता विजयी
कई बार तो होश ही नहीं रहता
कि सिर पर
कितने बेर गिरे
या किधर से लगे
ढेला या लबदा

आज कविता में ही
बता रहा हूँ कि मुझे एक बार
लगा था ढेला सिर पर टन्न-सा
और उग आया था गुमड़
या बन गया था ढेला-सा दूसरा
बेर के खट्टे-मीठे फल के आगे
सब फीका रहा भाई
यह बात आज तक
माँ-बाप को नहीं बताई
हाँ, वे इस कविता को
पढ़ने के बाद ही
जान पायेंगे कि बचपन में
लगा था बेर के चक्कर में
मुझे एक ढेला
खट्टा, चटपटा और
पता नहीं कैसा-कैसा
और अब यह कि
हमारे बच्चों को तो
ढेला लगने पर भी
नहीं मिलता बेर
जबसे फैला लिया है बाजार
बहेलिया वाली कबूतरी जाल
जमीन से आसमान तक एकछत्र।


2-पहाड़

हम ऐसे ही थोडे बने हैं पहाड़
हमने जाने कितने हिमयुग देखे
कितने ज्वालामुखी
और कितने झेले भूकम्
जाने कितने-कितने
युगों चरणों से
गुजरे हैं हमारे पुरखे
हमारे कई पुरखे
अरावली की तरह
पड़े हैं मरणासन्न तो
उनकी संतानें
हिमालय की तरह खड़ी हैं
हाथ में विश्व की सबसे ऊँची
चोटी का झण्डा उठाये।

बारिश के बाद
नहाये हुए बच्चों की तरह
लगने वाले पहाड़
खून पसीना एक कर
बहाये हैं निर्मल पवित्र नदियाँ
जिनकी कल-कल ध्वनि
की सुर ताल से
झंकृत है भू-लोक, स्वर्ग
एक साथ।

अब सोचता हूँ
अपने पुरखों के अतीत
अपने वर्तमान की
किसी छोटी चूक को कि
कहाँ विला गये हैं
सितारों की तरह दिखने वाले
पहाड़ी गाँव
जिनकी ढहती इमारतों
खण्डहरों में बाजार
अपना नुकीला पंजा धंसाए
इतरा रहा है शहर में
और इधर पहाड़ी गाँवों के
खून की लकीर
कोमल घास में
फैल रही है लगातार

 





3-लोगों की नजर में
 
तुमने मुझे पेड़ कहा
पेड़ बना
टहनी कहा
टहनी बना
पत्तियां कहा
पत्तियां बना
फूल कहा
फूल बना
तुमने कहा
कांटा बनने के लिए
कांटा भी बना
जबसे लोगों की नजर में
बना हूँ कांटा
नहीं बन पा रहा हूँ अब
लोगों की नजर में
फूल पत्ती टहनी और पेड़  ।

 


 


संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121                                                                                                                   मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com