सोमवार, 27 अगस्त 2012

विजय सिंह की कविताएं




          आपसे  वादा किया था मैंने कि आगे हम आपको जल्द ही केशव तिवारी ,विजय सिंह, भरत प्रसाद ,महेश चन्द्र पुनेठा, हरीश चन्द्र पाण्डे ,शंकरानंद, संतोष कुमार चतुर्वेदी, रेखा चमोली, शैलेष गुप्त वीर,विनीता जोशी, यश मालवीय , कपिलेश भोज,नित्यानंद गायेन, कृष्णकांत, प्रेम नन्दन एवं अन्य समकालीन रचनाकारों की रचनाओं से रुबरु कराते रहेंगे।इसी कड़ी में आज प्रस्तुत है अग्रज विजय सिंह की कविताएं  जो अपनी माटी की सोंधी महक के साथ उपस्थित हैं।

जंगल की हँसी         

जंगल के सन्नाटे में
पत्तियां गुपचुप-गुपचुप
बतियाती हैं

पत्तियों को सुनना है
तो
आप को वृक्ष होना होगा

जंगल की हँसी में
चमक है
इस चमक को छूने के लिए
जंगल में गाती-फुदकती
चिड़ियों को देखना होगा

जंगल के स्वभाव से
मैं परिचित हूँ

इसकी चुप्पी से
नहीं डरता

मैं जंगल में साँस लेता हूँ
इसके सन्नाटे में
बुनता हूँ अपना समय

मेरा समय
जंगल की तरह
उर्वर है।

रोज छूता हूँ जंगल

हरा-भरा जंगल रोज छूता हूँ
और पहुंचता हूं
अपने गांव

महुए के पेड़ में कब आते हैं फूल
लाख किस पेड़ से रिसता है
ओर किस पेड़ की पत्तियों में
छुप कर
लाल चींटियां बनाती हैं अपना घर

बोड़ा पकने के लिए
मिट्टी नम
कब होती है

सरई और सागौन के पेड़
को कब छूती है जंगली हवा

पण्डकी किस पेड़ की डाली से
गाती है मुण्ड बेरा का गीत

आम और टार कब पकते हैं जंगल में
सरई पत्तों के लिए
गांव की औरतें कब निकलती है
रान की और

धामना सांप कब फुंफकारता है
जंगल में
सल्फी के सुरूर में कब डूबता है
गांव का गांव

सोनमती की हंसी
और लखमू की टंगिया में
कब आता है धार
मैं जानता हूं।

0 बोड़ा जमीन के नीचे उगने वाला छोटा कंद जिसे बस्तर वासी चाव से सब्जी के रूप में प्रयोग करते हैं
0 मुण्ड बेरा दोपहर का समय

 जंगल  जी उठता है

मुहंआ पेड़ के नीचे
आदिवासिन लड़कियों
की हंसी में है
जंगल

जंगल अब भी
जंगल है यहां
आदिवासिन लड़कियां
जानती हैं

टुकनी मुंड में उठाये
जब   भी आदिवासिन लड़कियां
गांव-खेड़ा से बाहर
निकलती है

तब

जंगल का जंगल
जी उठता है
उनके स्वागत में।
 
तिरिया जंगल

तिरिया का जंगल
अभिषप्त नहीं है
सन्नाटे के लिए
काली मकड़ी जानती है
और बुनती है
तिरिया जंगल में
अपना घर

तिरिया के जंगल में
लाल चीटियां
पत्तियों की मुस्कान में
रचती है अपना संसार
ओर टुकुर-टुकुर
देखती है
बाहर की दुनिया को

कभी-कभी
बांस की झुरमुट से
गुर्राता है
तिरिया जंगल का बाघ
और
तिरिया का जंगल
हंस पड़ता है

अक्सर चैत-बैषाख की दुपहरी में
आसमान का लाल सूरज
तिरिया के जंगल में आग उगलता है

और पंडकी चिड़िया
सागौन की डाल से गाती है गाना
जिसे गांव की स्त्रियां सुनती हैं
यह वह समय है
जब गांव की स्त्रियां
मुंड में टुकनी उठाये
वनोपज के लिए
तिरिया जंगल की ओर निकलती है

गांव की स्त्रियों की पदचाप सुन
तिरिया जंगल के तेंदु फल पक कर गिरते है
टप-टप धरती में

आम और चार
पककर करते है
स्त्रियों के पास आने का इंतजार
गांव की स्त्रियां
धूप-धूप , छांव-छांव
पेड़-पेड
भरी  दोपहरी में बेखौफ होकर घूमती है
तिरिया के जंगल में

गांव की स्त्रियां तिरिया के जंगल को जानती है
तिरिया का जंगल
गांव की स्त्रियों को पहचानता है और जानता है

यह वह समय है
जब तिरिया का जंगल
गांव की स्त्रियों की हंसी में
खिलखिलाता-झूमता है
सरई पत्तों, आम,चार और तेंदू से भरी टुकनी मुण्ड में उठाए
जब लौटती है गांव की स्त्रियां अपने घर
तब तिरिया जंगल
एकदम चुप हो जाता है
तिरिया जंगल की यह चुप्पी
आप को डरा सकती है।

मंगलवार, 21 अगस्त 2012

गढ़वाली हास्य - व्यंग कविता - कुछ नी कन्नी सरकार

जमुना दास पाठक की गढ़वाली हास्य - व्यंग कविता
    



कुछ नी कन्नी सरकार 

जैं कड़ैपर पैली छंछेड़ु बंणदू थौ -2
वीं कड़ै पर अब हलवा अर
फिर चौमिन कू छैगी रोजगार
तब बोल्दन लोग कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली गौं-गौं मा श्रमदान होंदा था
ढोल -नगाड़ौं बजै तैं अर अपड़ा - अपड़ा
कुल्ला दाथड़ौं ली तैं लोग
गौं का चारी तरफै
की सफाई करी तैईं पर्यावरण प्रदूषण तैं भगै देंदा था
अब लोग बैठ्यांछन खुट्यों पसारोक
अर सरकार देणी रोजगार
तब बोल्दन लोग कि कुछ नी कन्नी सरकार।

सच माणा पैली का लोग प्रदूषण का बारा जाणदै निथा
 तबैत गुठुयारों मा कुलणौ  पिछनैईं
रस्तो मां अर इथा तककि पाणी का धारौं तक
भि थुपड़ा रंदा था लग्या लैट्रिन का
अब घर- घर मा लैट्रिन ह्वैगेन तैयार
तब बोल्दन लोग कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली मजबूरी मा पैदल जाण पड़दु थौ
स्कूल मा, दुकानी मा, रिश्तेदारी अर
नौकरी कन्नक तैं भी पैदलै जाण पड़दु थौ
मुंड मा होया कांधी मा हो दुद्दे अर
चार- चार मण कू बोझ पैदलै लिजाण पड़दु थौ
आज गौ- गौ मा सड़क जाण सी
घर- घर ह्वैगन मोटर कार
तब बोल्दन लोग कि कुछ नी कन्नी सरकारं

पैली का जनाना ग्यों अर कोदू पिसण कतै
सुबेर जांदरू रिगौंदा था
अर श्यामकु उखल्यारौं मा साट्टी झंगोरा की घाणी
रंदी थै दिख्याणी
जख मा कि कुल्ल सासू- ब्वार्यों का झगड़ा होंदा था
अब जगा- जगौ ह्वैगी चक्यों की भरमार
तब छन्न बोन्या  कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली का छोरा स्कूल मा भि
बिनै सुलार पैर्यां चलि जांदा था
अर पाटी पर लेखीतै बिना
कौफी किताब्यों याद भि कर्याल्दा था
अर अब जलमदै नर्स बोन्नी
कि कख येकू कुर्ता सुलार
तब बोल्दन कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली लोग जब बीमार होंदा  था
देवतौं का दरवाजा खटखटांदा था
अस्पताल नि होण सीक हैजा
अर माता जनीं भयंकर बीमारिन
गौं का गौं बांजा पड़ी जांदा था
आज सड़क अर अस्पताल होण सीक 
झट्ट होणू उपचार
तब छन लोग बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली का लोग अनपढ़ होंदा था
किलै कि स्कूल दूर होक सीक
वख तक पौंछी निसकदा था
अर अनपढ़ होण सीक ऊंका दिल मा जात पात
ऊंच नीच अर अपणू
विराणू जना भेद भाव जन्म लेंदा था
जातैं रूढिवादिता बोल्दन
आज गौं -गौ मा स्कूल  कालेज खुन्न सीक
अर शिक्षा कु प्रचार -प्रसार
होण सीक ह्वैगी समाज कू बेड़ा पार
तब छन बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली हमारा समाज मा बलि प्रथा कू जादै बोल बाला थौ
क्वी बीमार होंदू थौ
झट्ट वैमा कुखड़ी- बाखरी ऊंचे तेवई वीं सणी
पट्ट मारी देंदा था
कति जगौं आज भि होणू
पर अब सतसंग कू प्रचार -प्रसार होण सीक
बंद ह्वैग्यन कुखड़ी -बाखरी खया देवतौं का द्वार
तब छन बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली लोग गरैयों सणीदेवता माणी तैं पुजदा था
कैकू काम ख्राब होण पर
पंडा जी बोल्दा था कि ये का गरै खराब छन चन्या
ऊं सणी पूजि द्यान
टाज मनखी चंद्रमा तै दूर
मंगल गरै पर बसण ह्वैगी तैयार
तब छन लोग बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

पैली लोग जाणदै नि था कि
मुख्यमंत्री क्या हवै अर  विधायक क्या  हवै
जौं का द्वारा सरकार  चल्दी
आज सरकार जगा जगौं लगैल्यन जनता दरबार
अर फिर भी छन लोग बोन्या कि कुछ नी कन्नी सरकार।

मै आप लोगू सणी फिर याद दिलौंदू छौं
कि पैली  जैंकड़ै पर छंछेड़ु बंणदू थौऊ
बीं पर आज हलवा
अर फिर चौमिन कू ह्वैंगी रोजगार
समाज का भला भला वैखू
अब नि बोलने कि कुछ नि कन्नी सरकार
आज का नवयुवक भायौं अर बैण्यों
सुदि निरा बैठ्या बेकार
मेरी दृष्टि मा सब्बी धाणी कन्नी सरकार।



 संपर्क सूत्र- 
           जमुना दास पाठक , प्रवक्ता- राजनीति विज्ञान
                      रा0 0 का0 गौमुख
           टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
           मोबा0-09719055179