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बुधवार, 25 दिसंबर 2019

इन्हीं तारीखों समय और दिनों में - आरसी चौहान


वह कवियों की तरह नहीं लिखते कविताएं
खेतों में बोते हैं अपनी मेहनत के बीज
उनके अंखुआने से
नाचती है धरती अपनी धुरी पर
और जीवन कुनमुनाता है मधुर मंद


आज उनके सपनों में
घुस आया है कोई
उनके जहन में खड़ा किया गया
तिलिस्म का बाजार
चुगाये गये शब्दों के दाने
पहनाई गई पुरस्कारों की माला
घुमाया गया राजपथ पर
एक भ्रम का जाल
मढा गया उनकी आंखों में
कि तुम्हारी आय पांच साल में
हम दोगुनी कर देंगे


तब से उसकी नींद से
सपने गायब हैं
अब कभी नहीं देखता सपने में
हरियाई फसलों को
फसलों पर अठखेलियां करती मधुमक्खियाें
और तितलियों को 


उसने उतार कर रख दिए हैं हल और जुआठ
किसी संग्रहकर्ता द्वारा रख दिया जाएगा
संग्रहालय में इन्हें
और किसी पत्थर या प्लेट पर
लिख दिया जाएगा दिन,समय और तारीख


कि ये खेती करने के औजार हैं फलां सदी के
जिनके नायक सपना-सपना
बुद्बुदाते हुए विलुप्त हो गये
इन्हीं तारीख़ों, समय और दिनों में |



संपर्क  - आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़ उत्तर प्रदेश
                276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

रविवार, 23 सितंबर 2018

ईश्वर की अनुपस्थिति में एवं अन्य कविताएं :आरसी चौहान





 बहुत दिनों बाद उपस्थित हूं कुछ कविताओं के साथ 


1- ईश्वर की अनुपस्थिति में

ऐसी हो धरती
जहां भोरहरी किरणों सा मुलायम
और मां की ममता की तरह
पवित्र हों आदमी

उनके अकुलाए हाथ
बनाने में हों माहिर
खुशियों का मानचित्र

हवाओं को लपेट कर
रख सकें सिरहाने
ऐसा हुनर हो उनमें

जीवन के घाटों पर
बांट सके एक दूसरे का सुख दुख
और जुड़ा सकें एक ही छाया तले
ऐसी हो धरती
ईश्वर की अनुपस्थिति में ।





2-खूबसूरत धरती के बारे में

वे लिख रहे हैं सदियों से
और नहीं लिख पा रहे हैं
आदमी को आदमी

वे लिखना चाहते हैं
नदियों को नदियां
और नदियां हो जा रही हैं रेत

वे पहाड़ों के बारे में भी
चाहते हैं लिखना
उनमें उगे जंगलों
और झाड़ियों के बारे में भी
कि
देखते ही देखते बदल जा रहे हैं
आग के गोलों में पहाड़

पृथ्वी को लिखना चाहते हैं पृथ्वी
कि पृथ्वी घूमते हुए
रणभूमि में बदल जा रही है

बच्चे जिनपर अभी तक लिखी गयी हैं
बहुत सारी कविताएं
उन्हें फूलों की तरह मुस्कराते
हिरन की तरह उछलते कूदते
खरगोश के बालों की तरह मुलायम
बताया गया है

यहां तक कि
ये बच्चे तो
दो देशों को बांटने वाली सरहदों को भी 
नहीं जानते
बंदूक , बारुद और बमों से भी अनभिज्ञ
ये नहीं जानते
युद्ध में मारे गये अपने पिताओं
और उनके हन्ताओं को
छल कपट और ईर्ष्या द्वेष का गणित
तो बिल्कुल नहीं समझते
ये तितलियों की तरह उड़ना चाहते हैं
सपनों में परियों से बतियाना चाहते हैं

इनकी प्रार्थनाओं में
आदमी को देवता
नदियों को बलखाती हुई
पहाड़ों को आसमान चूमता हुआ
और पृथ्वी को लिखा है जननी
हम इनके भूगोल को कब समझ पायेंगे
और लिख पायेंगे एकदिन एक
खूबसूरत धरती के बारे में ?



 3- बहुत दिनों से



बहुत दिनों से लिखना चाहता हूं

एक कविता

स्कूल जाते बच्चों पर

जो दुनिया को फूल की तरह

खिलाना चाहते हैं

और इकट्ठा हों रहे हैं

तमाम तमाम स्कूलों में

हर सुबह

हरसिंगार के फूलों की तरह

स्कूलों के फेफड़ों में

भर रहें हैं ताजी हवा से महकते

और स्कूल हो रहे स्पंदित



एक और कविता लिखना चाहता हूं

किसानों के लिए

जिनके हल के फाल तोड़ रहे सन्नाटा

कठोर चट्टानों के

फड़फड़ाते पन्नों पर

दर्ज कर रहे बीजों के एक एक अक्षर

ओर पृथ्वी को रंग देना चाहते हैं

हरियाई फसलों से



एक कविता और लिखना चाहता हूं

सरहद पर जूझते जवानों के लिए

जिनका होना

हमारे देश का सुरक्षित होना है



पर जो बच्चे

अभी स्कूलों से लौटे नहीं हैं

जिन किसानों का कलेवा

उनके हलक के नीचे उतरा नहीं है

घर वापसी के लाख वादों के बावजूद

जो जवान अब कभी लौट नहीं सकते

उन पर कविताएं न लिख पाने के लिए

क्षमा चाहता हूं देशवासियों।


 संपर्क -आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़ उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com


रविवार, 4 सितंबर 2016

अनगढ़ शिलाओं पर समय का हस्ताक्षर है शिक्षा : आरसी चौहान



शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर एक आलेख

संक्षिप्त परिचय
आरसी चौहान
Aarsi chauhan

शिक्षा- परास्नातक-भूगोल एवं हिन्दी साहित्य,पी0 जी0 डिप्लोमा-पत्रकारिता, बी0एड0, नेट-भूगोल
सृजन विधा-गीत,  कविताएं, लेख एवं समीक्षा आदि
प्रसारण-आकाशवाणी इलाहाबाद, गोरखपुर एवं नजीबाबाद से
प्रकाशन-नया ज्ञानोदय, वागर्थ, कादम्बिनी, अभिनव कदम,इतिहास बोध, कृतिओर ,जनपथ, कौशिकी , हिमतरू, गुफ्तगू ,  तख्तोताज, अन्वेषी , गाथान्तर , र्वनाम  ,  हिन्दुस्तान , आज , दैनिक जागरण ,अमृत प्रभात, यूनाईटेड भारत, गांडीव, डेली न्यूज एक्टिविस्ट, प्रभात खबर एवं विभिन्न पत्र-पत्रिकाएं तथा बेब पत्रिकाओं में
संकेत 15 के कविता केन्द्रित अंक में कविताएं प्रकाशित
अन्य- 1-उत्तराखण्ड के विद्यालयी पाठ्य पुस्तकों की कक्षा-सातवीं एवं आठवीं के सामाजिक विज्ञान में लेखन कार्य 
2- ड्राप आउट बच्चों के लिए , राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की पाठ्य पुस्तकों की कक्षा- छठी , सातवीं एवं आठवीं के सामाजिक विज्ञान का लेखन व संपादन
3- हिंदी साहित्य कोश, भारतीय भाषा परिषद  -    
 पहला खंड : उत्तराखण्ड: लोक परम्पराएं सुधारवादी आंदोलन 
 दूसरा खंड : सिद्धांत,अवधारणाएं और प्रवृत्तियां - प्रकृति और पर्यावरण 
 4- “पुरवाई  पत्रिका का संपादन         
Blog - www.puravai.blogspot.com

अनगढ़ शिलाओं पर समय का हस्ताक्षर है शिक्षा
आरसी चौहान
Aarsi chauhan

        किसी भी देश के विकास का मूलमंत्र शिक्षा है। शिक्षा से ही हम साकारात्मक दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा के प्रति जिम्मेदाराना रवैया अपनाते हुए ज्ञान के प्रकाश से अज्ञानता के अंधकार को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है़ । यह हर व्यक्ति की नैतिक जिम्मेवारी बनती है कि अच्छे संस्कार और आचरण हर नागरिक में पुष्पित और पल्वित करे जिससे देश स्वंमेव बुलंदियों पर पहुंच सके। यह तभी सम्भव हो सकता है जब हम आतंकवाद, भ्रष्टाचार, क्षेत्रवाद व साम्प्रदायिक जैसी ताकतों को जड़ से समाप्त करने हेतु दृढ़ संकल्प रत हों।

          आज हम भागम दौड़ के जिस वैश्विक चौराहे पर खड़े हैं उसकी सड़कों के आदि और अंत का कोई मुकम्मल ठौर-ठिकाना नहीं है। हम अपने ज्ञान को विश्व का सबसे बड़ा संसाधन मानकर सिर आसमान में टांग दिये हैं। हमारी शिक्षा व्यवस्था में खतरनाक शतरंजी चालों का जो दौर जारी है वह आने वाले समय के लिए शुभ संकेत तो कत्तई नहीं कहा जा सकता। तथा कथित अपने को बौद्धिक कहलाने वाले शतरंज की विशात में प्यादों की भूमिका से ज्यादा कुछ नहीं हैं। इनकी शहादत पर ही किसी राजा की हार और जीत सुनिश्चित होती है। इस शतरंजी विशात में राजा को कभी मरते हुए नहीं देखा है मैंने।

          हर घर तक शिक्षा की जोत जलाने की बात करने वाली केन्द्र सरकार व राज्य सरकारें भी क ख ग से ज्यादा कुछ नहीं कर पातीं। शिक्षकों की कमी से जूझ रहे प्राथमिक व जूनियर विद्यालयों की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। अधिकांश गांवों तक विद्यालयों को पहुंचाना सरकार के एजेण्डे में तो शामिल है लेकिन शिक्षा का कोई भी मानक पुरा होता हो कुछ अपवादों को छोड़कर ऐसा कहीं दिखता नहीं। ऐसी शिक्षा देना कहां तक समीचिन है जहां एक ही शिक्षक पांच पांच कक्षाओं को एक साथ देख रहा है। इसके अलावा भोजन की व्यवस्था भी तो इन्हें ही देखनी पड़ती है। आखिरकार हमारी सरकार का आम आदमी के बच्चों के साथ किस तरह की मंशा है। वह इनको किस तरह की शिक्षा देना चाहती है। आगे चलकर इन्हें वह क्या बनाना चाहती है। ऐसे कई सवाल हैं जो दिमाग को मथते रहते हैं। या क्या वह शिक्षा को बाजार की बिकाऊ माल बनाकर  बोली लगाने में ही अपना विकास समझती है।

                बेसिक व जूनियर स्कूलों में शिक्षा में आयी गिरावट एकल अध्यापक का होना है। जबकि कहीं कहीं तो अध्यापकपूर्ण विद्यालय भी अपवाद बने हुए हैं। अधिकारियों की निस्क्रियता भी कम जिम्मेवार नहीं है। अध्यापकों एवं अन्य कर्मचारियों का स्थानिय होना भी एक महत्वपूर्ण कारण है। इनके द्वारा लेट लतिफी व आए दिन स्कूल से गायब रहना एक कड़वी सच्चाई है जबकि स्कूल समय से पूर्व या बीच में स्कूल से भाग जाना भी एक समस्या है। कभी कभी बिना स्वीकृत अवकाश के घर रहना और स्कूल वापस आने पर उपस्थिति पंजिका में अपनी उपस्थिति बना देना भी कम गैर जिम्मदरानापूर्ण रवैया नहीं है। कई सारे अध्यापकों को मैं जानता हूं जो उपस्थिति पंजिका को अपने साथ लेकर चलते हैं। ऐसे अध्यापकों का आप क्या कर लेंगे। जहां इसे रखने के लिए स्कूल में आलमारी या बाक्स तक नहीं हैं। हैं भी तो जर्जर अवस्था या टूटी फुटी अवस्था में । अगर ठीक भी हैं तो जानबूझकर तोड़ दिया गया है। अपने को बचने बचाने लिए ऐसे हथियारों की लम्बी फेहरिश्त है।

            आए दिन उच्च अधिकारियों द्वारा स्कूलों का औचक निरिक्षण तो किया जाता है परन्तु वहां शिक्षा की गुणवत्ता पर कभी कोई बात नहीं होती। आपने रजिस्टरों के पेट भरे कि नहीं , डायरी बनायी कि नहीं , स्कूल में आयी विभिन्न धनराशि का सही प्रयोग हुआ कि नहीं आदि सवालों की अंधाधुंध गोलियां अध्यापकों के सीने में दाग दी जाती हैं। ऐसे में अधिकांश अध्यापक भी सरकारी आदेशों के पालन को ही अपना कर्तव्य समझते हैं और शिक्षा जाए चूल्हाभाड़ में जैसी कहावत को चरितार्थ करते हैं।

          सबको समान शिक्षा का अधिकार केवल चौदह साल तक के बच्चों के लिए ही क्यों ? बी0 टेक , एम0 टेक, एम0बी0बी0एस0,एम0डी0, पी0एच0डी0 करने वालों तक को क्यों नहीं ? जिसमें कंपीटिशन परीक्षा पास करने वालों को उपर्युक्त शिक्षा एवं अन्य शिक्षाएं जो भी हों निशुल्क उपलब्ध करायी जाएं और रोजगार की गारंटी भी दी जाए इस शर्त के साथ कि पढ़ाई में हुए खर्च के बराबर सेवाएं देश या राज्य के लिए देनी पड़ेगी। बाकि को उनकी योग्यता के अनुसार रोजगार उपलब्ध कराएं जाएं। अन्यथा कि स्थिति में वे अपनी इच्छानुसार काम कर सकते हैं।

               खैर चाहे जो भी हो, शिक्षा के स्तर को बनाने में शिक्षक,अभिभावक व छात्र तीनों के त्रिभुजीकरण की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता। सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों के अभिभावक या तो अनपढ़ होते हैं या काम की तलाश में घर से दूर होते हैं या दिहाड़ी मजदूर। ऐसे में इनके बच्चों में अभावों की अंतहिन श्रृंखला कुमार्ग की ओर ले जाने की ओर प्रेरित करती है। इनमें कई तरह की बुरी आदतें पड़़ती चली जाती हैं। फिर इनको इससे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है। अधिकांश विद्यालयों में एकल शिक्षक का होना भी हमारी शिक्षा के साथ दुराचार ही है। वहीं दो चार बच्चों के सहारे विद्यालयों को चलाना भी कम अनैतिक नहीं है।

              आखिर शिक्षा के स्तर में हो रही निरंतर गिरावट के लिए जिम्मेवार कौन है। एक ओर हमारी सरकार घर घर तक शिक्षा पहुंचाने की बात करती है। गांव गांव स्कूल बनवाती है। लेकिन वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ होती है। अगर हमारी सरकार नवोदय विद्यालय, केंद्रिय विद्यालय, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय, माडल स्कूल बनवा सकती है तो संकुल विद्यालय बनवाने में क्या परेशानी है। आठ से दस किलो मीटर के दायरे में एक संकुल विद्यालय हो जहां कक्षा एक से बारहवीं तक की पढ़ाई की व्यवस्था एक ही कैम्पस में हो। जिनका बाडी गवर्नेंस एक हो । हास्टेल की व्यवस्था के साथ स्कूल बसें भी हों ताकि दूर दराज के गांवों के बच्चों को आसानी से लाया जा सके। अगर बड़ी गाड़ियों के संचालन की पहुंच न हो तो छोटी गाड़ियों की व्यवस्था की जा सकती है। अगर यह भी असंभव हो तो हास्टेल की सुविधा का लाभ लिया जा सकता है। अगर छोटे बच्चों के लिए यह भी असंभव सा लगे तो साथ में उनके एक अभिभावक को बच्चे की देख रेख के लिए कुछ दिनों के लिए रखा जा सकता है। जिसमें इनके लिए अलग से हास्टेल हो।

            तमाम संसाधनों के अभाव के बावजूद भी शिक्षा पाने की ललक व जागरूकता वालों को कुछ बाधाओं का जरूर सामना करना पड़ता है लेकिन लक्ष्य देर सबेर मिल ही जाता है। लेकिन ऐसे कारनामें कितने कर पाते हैं । कहीं न कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था में खतरनाक सूराख है जिसके निर्माता हमारे ही नौकरशाह हैं की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

        शिक्षा के विकास में आधारभूत संरचना जैसे साफ सुथरे कमरे, बैठने की उचित व्यवस्था, पढाई लिखाई में आने वाने वाले विभिन्न संसाधनों, स्वच्छ पेयजल , संतुलित आहार ,शौचालयों की व्यवस्था व खेलने के मैदान इत्यादि का भी महत्वपूर्ण स्थान है। लेकिन जब इनके व्यवस्थापक ही ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार के समुद्र में आकंठ डूबे हों तो क्या कहा जा सकता है ?

           शिक्षा से सर्वांगिड़ विकास तभी हो सकता है जब हम अपनी इच्छाएं अपने बच्चों पर न थोपकर बल्कि बच्चों को अपना मार्ग स्वयं ही स्वतंत्र रूप से चुनने दें । हम उनकी मदद कर सकते हैं। उन्हें अध्यापक ,डाक्टर या इंजिनियर बनना है का विकल्प सुझा सकते हैं परन्तु जबरदस्ती उनपर थोप नहीं सकते। हमारी भूमिका टैªफिक पुलिस की तरह होनी चाहिए जिसमें किसी को लाल सिग्नल द्वारा हरा सिग्नल होने तक रोका जा सकता है लेकिन उसकी दिशा को नहीं बदला जा सकता ।

शिक्षा को सही पटरी पर लाने के लिए कुछ सुझावों पर विचार किया जा सकता है-

1.स्कूलों में विभिन्न कार्यों का सतत मूल्यांकन हो जिसमें लापरवाही न बरती जाए
2.गुणवत्ताहिन सरकारी विद्यालयों की जिम्मेदारी निजी क्षेत्र को सौंप दी जाए
3.सभी वर्ग के लोगों को एक समान शिक्षा दी जाए
4.रटने की प्रवृति से मुक्त रखा जाए
5.शैक्षिक पाठ्यक्रम की पुस्तकों में बच्चों के विचारों व रूचियों का भी ध्यान रखा जाए
6.शिक्षा का मुख्य उद्देश्य रोजगारोन्मुखी हो
7.बच्चे को किसी भी तरह के दबाव से मुक्त रक्खा जाए जिसमें शारीरिक व मानसिक दोनों हो सकते हैं
8.शिक्षा को आनंददायक बनाया जाए
सब पढ़ें सब बढ़ें जैसे नारों को आसमान की बुलंदियों तक तभी पहुंचाया जा सकता है जब हम सबके इरादे नेक हों और एक दूसरे के प्रति ईमानदार कोशिश  के साथ सहयोग की भावना बनाये रखें।

संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

रविवार, 5 जून 2016

‘ शिक्षातरु अभियान ’ - आरसी चौहान




   विश्व पर्यावरण दिवस पर पोस्ट कर रहा हूं सर्वनाम में प्रकाशित एक लेख का कुछ अंश। पठन पाठन के साथ वृक्षारोपड़ कार्यक्रम की कुछ झलकियां एवं आभार उन समस्त  कर्मठ  साथियों का जिन्होंने शिक्षातरु अभियान में निरंतर सहयोग दिया जिनमें सर्वश्री प्रदीप मालवा ,  सुनील कुमार ,  मुकेश डडवाल ,  सुनील कण्डवाल ,  सतीश कुमार ,  जीतेंद्र कोहली ,  मनवीर भारती ,  गणेश लखेड़ा जमुनादास पाठक एवं स्कूल के समस्त छात्र छात्राएं ।
उत्तराखण्ड के महत्वपूर्ण जनान्दोलन




चिपको आन्दोलन: दुनिया भर मे पर्यावरण और वन संरक्षण की  अलख जगाने वाले समाज सेवियों चण्डी प्रसाद भट्ट एवं आलम सिंह बिष्ट के कार्यों को सफल बनाने में स्वयं पेड़ों पर चिपक कर इस पर्यावरण चेतना के महान संघर्ष चिपको की जननी गौरा देवी को कौन भुला सकता है।बेजुबान वृक्षों की रक्षा में वृक्ष खोरों के खिलाफ गौरा देवी व उसकी दर्जनों सहेलियों की गर्जना पहाड़ी वादियों से निकलकर दुनिया के कोने-कोने तक प्रतिध्वनित हुई।



        भाले कुल्हाडे़ चमकेंगेहम पेड़ों पर चिपकेंगे ।



        पेड़ों पर हथियार उठेंगे, हम भी उनके साथ कटेंगे।



  चमोली जनपद के रैणी गाँव में 26 मार्च 1974 को कुल्हाड़ियों तथा बदूंकों से लैस वन ठेकेदार के मजदूरों वन कर्मियों व दबंगों को पीछे हटने को मजबूर कर दिया।जब गौरा देवी व उसकी सहेलियों ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना पेड़ों से चिपक कर हजारों पेड़ों की रक्षा की। चिपको आंदोलन का ही असर था कि सन् 1980 में भारत सरकार को वन संरक्षण अधिनियमबनाना पड़ा।गौरा देवी के इस अभियान को पर्यावरणविद सुन्दर लाल बहुगुणा ने विश्व में एक नई पहचान दिलाई।




मैती आन्दोलन: पर्यावरण संरक्षण के लिए विश्व में चर्चित चिपको आन्दोलन के पश्चात मैती आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। इसके मुखर स्वर अब भारत के अन्य राज्यों सहित अमेरिकाकनाडा,  चीनथाईलैण्ड व नेपाल में भी सुनाई पड़ने लगे हैं। कल्याण सिंह रावत इसी मैती आन्दोलन के जनक हैं ।सन 19950 में पर्यावरण संरक्षण हेतु भावनात्मक आन्दोलन मैती की शुरूआत करने के बाद अब तक लाखों पेड़ लगाए जा चुके हैं।हर शादी की याद में दुल्हा तथा दुल्हन मिल कर पेड़ लगाते हैं। उत्तराखण्ड में यह आन्दोलन संस्कार का रूप ले चुका है।





रक्षा सूत्र आन्दोलन: टिहरी गढ़वाल के भिलंगना क्षेत्र से शुरू हुआ यह आन्दोलन वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाधंकर उसकी रक्षा का संकल्प लिया जाता है।यह अपने आप में एक अलग तरह का आन्दोलन है। इस आन्दोलन का सूत्रपात 1994 ई0 में सुरेश भाई ने किया । दरअसल इसके पीछे एक मुख्य वजह एक हजार मीटर की ऊँचाई  से वृक्षों के कटान पर लगे प्रतिबंध के हट जाने से संबंधित रही। इस आन्दोलन की सफलता जंगल में छपान के बावजूद इन पेड़ों का खड़ा होना है।




उत्तराखण्ड प्रकृति से बहुत गहरे रूप में जुड़ा है। यहां के लोगों में मान-मर्यादा , शिष्टाचार,  आचार -विचार एवं आतिथ्य सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी है। इनकी ईमानदार छवि से उत्तराखण्ड ने अपनी अलग पहचान  बनायी है।ये लोग प्रकृति के इतने निकट हैं कि इनसे मानवीय जैसे रिश्ते स्थापित कर लिये हैं।नन्दा देवी को अपनी बेटी से भी अधिक प्यार व सम्मान देना इसका जीवंत उदाहरण है।

    पेड़ या जंगल इनके जीवन के अभिन्न अंग हैं।पेड़ों को वृक्ष माफियाओं से बचाने के लिये अपने प्राणों तक की परवाह नहीं करते ।इसी तरह नदियों की अविरल धारा को बनाये रखने के लिये भी इनके जनान्दोलन जग जाहिर हैं।चोरी -डकैती व छिनैती जैसी घटनाएं पहाड़ों में कम ही घटित होती हैं।अब कुछ असामाजिक तत्त्वों द्वारा इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति की जाने लगी है।


   यहां के लोग अपने जीवन मूल्य को बचाये रखने की भरसक कोशिक करने में लगे हैं।इन लोगों में आज भी सच्चाई, ईमानदारी,वफादारी व माता-पिता के प्रति आदर-सत्कार में कोई कमी नहीं आयी है।ऐसे चरित्रवान लोगों से ही समाज व देश का विकास सम्भव हो पायेगा।एक सुदृढ़,सभ्य और स्वस्थ समाज की रचना के लिये इनसे हमें सीख लेनी चाहिए।











संपर्क - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)

राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121

मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com

मंगलवार, 8 मार्च 2016

आरसी चौहान की तीन कविताएं





          वागर्थ के फरवरी अंक में मेरी तीन कविताएं प्रकाशित हुई हैं । आप सब लिए पुरवाई ब्लाग में इसे पोस्ट कर रहा हूं। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर दुनिया की आधी आबादी को ढेर  सारी शुभकामनाएं। वैसे आज मेरा जन्म दिवस भी है।आज ही के दिन अर्थात 08 मार्च 2015 को शुरू किया गयाा था हम कुछ मित्रों द्वारा साल भर पहले उत्तराखण्ड से शिक्षा तरू अभियान। इस अभियान के बारे में फिर कभी आगे। फिलहाल प्रस्तुत है मेरी तीन कविताएं-

 












एक विचार

(हरीश चन्द्र पाण्डे की कविताएं पढ़ते हुए)
एक विचार
जिसको फेंका गया था
टिटिराकर बड़े शिद्दत से निर्जन में
उगा है पहाड़ की तरह
जिसके झरने में अमृत की तरह
झरती हैं कविताएं
शब्द चिड़ियों की तरह
करते हैं कलरव
हिरनों की तरह भरते हैं कुलांचे
भंवरों की तरह गुनगुनाते हैं
इनका गुनगुनाना
कब कविता में ढल गया और
आदमी कब विचार में
बदल गया
यह विचार आज
सूरज-सा दमक रहा है।



कितना सकून देता है

आसमान चिहुंका हुआ है
फूल कलियां डरी हुई हैं
गर्भ में पल रहा बच्चा सहमा हुआ है
जहां विश्व का मानचित्र
खून की लकिरों से खींचा जा रहा है
और उसके ऊपर
मडरा रहे हैं बारूदों के बादल
ऐसे समय में
तुमसे दो पल बतियाना
कितना सकून देता है।

ढाई अक्षर
 
तुम्हारी हंसी के ग्लोब पर
लिपटी नशीली हवा से 
जान जाता हूं  
कि तुम हो
तो   
समझ जाता हूं
कि मैं भी
अभी जीवित हूं 
ढाई अक्षर के खोल में।



संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- puravaipatrika@gmail.com