सोमवार, 24 अक्तूबर 2011

आरसी चौहान की कविताएं-







                                                   आरसी चौहान




1.दस्ताने

यहां बर्फीले रेगिस्तान में
किसी का गिरा है दस्ताना
हो सकता है इस दस्ताने में
कटा हाथ हो किसी का
सरहद पर अपने देश की खातिर
किसी जवान ने दी हो कुर्बानी
या यह भी हो सकता है
यह दस्ताना न हो
हाथ ही फूलकर दीखता हो
दस्ताने-सा
जो भी हो
यह लिख रहा है
अपनी धरती मां को
अंतिम सलाम
या पत्नी को खत
घर जल्दी आने के बारे में
या बहन से
राखी बंधवाने का आश्वासन
या मां-बाप को
कि इस बार करवानी है ठीक मां की
मोतियाबिंद वाली आंखें
और पिता की पुरानी खांसी का
इलाज जो भी हो
सरकारी दस्तावेजों में गुम
ऐसे न जाने कितने दस्ताने
बर्फीले रेगिस्तान में पडे.
खोज रहे हैं
आशा की नई धूप ।






















यह चित्र गूगल से साभार

2.फूल बेचती लड़की

फूल बेचती लड़की
पता नहीं कब फूल की तरह
खिल गयी
फूल खरीदने वाले
अब उसे दोहरी नजर से देखते हैं
और पूछते हैं
बहुत देर तक
हर फूल की विशेषता
महसूसते हैं
उसके भीतर तक
सभी फूलों की खूबसूरती
सभी फूलों की महक
सभी फूलों की कोमलता
सिर से पाँव तक
उसके एक. एक अंग की
एक-एक फूल से करते हैं मिलान
अब तो कुछ लोग
उससे कभी-कभी
पूरे फूल की कीमत पूछ लेते हैं
देह की भाषा में
जबकि उसके उदास चेहरे में
किसी फूल के मुरझाने की कल्पना कर
निकालते हैं कई.कई अर्थ
और उसे फूलों की रानी
बनाने की करते हैं घोषणाएं
काश! वो श्रम को श्रम ही रहने देते।

संपर्क- आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल
उत्तराखण्ड249121
मेाबा0-08858229760
ईमेल-chauhanarsi123@gmail.com

11 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लाग शुरू करने के लिए बधाई स्वीकारें।
    दस्ताने और फूल बेचती लड़की दोनों कविताएं अपने कथ्य और शिल्प में बेजोड़ तो हैं ही साथ ही दोनों कविताएं अलग अलग पृ ष्ठभूमि के बावजूद ध्यानाकर्षित करती हैं। जहां दस्ताने कविता में कवि ने बड़े सिद्दत से सीमा पर तैनात सिपाहियों के दुख-दर्द और सरकार के ढुलमुल रवैये को उजागर किया है। वहीं फूल बेचती लड़की कविता में तथाकथित निम्न मानसिकता वाले लोंगो की कलई खोल कर रख दी है।
    आरसी जी, आमीन ।
    प्रदीप कुमार मालवा देहरादून

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  2. जबकि उसके उदास चेहरे में
    किसी फूल के मुरझाने की कल्पना कर
    निकालते हैं कई.कई अर्थ
    और उसे फूलों की रानी
    बनाने की करते हैं घोषणाएं
    काश! वो श्रम को श्रम ही रहने देते।

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  3. are ! pahle kbhee nhin bataya aapne..! KHAIR NICE ! SUNDER RACHNAAYEN..BHADHAYI AAPKO..

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  4. http://alwidaa.blogspot.com/
    ....
    मुझसे भी मिलेंगे तो ख़ुशी होगी मुझे जी.

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  5. DASTANE padh kar ek bar rongte khade ho gye....ki jawan kaise kisi v din me border par apna sab kuch chhod ke rhte hain...

    to ek taraf jo appne chhoti ladki ki utsukta ka aur ,aur nirasha ,aur najukpan bhut hi marmik chitran kiya hai aapne....

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  6. सार्थक कविताओ के लिए कवि को हार्दिक बधाई....

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  7. rc, kavita jab jindgi se nikal kar aapkki kalam mai aa jati hi to eaisa hi hota hi, badhaiya
    S.P.Verma

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  8. chauhan ji,
    aapki kavitayein acchi lagi.kavitayein kuch ahsaas karaati hai.
    .
    khemkaran'soman'
    .
    ---------------

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  9. सरहद पर लड़ने वाले सैनिकों के बारे में आरसी भाई ने काफी सुन्दर तरीके से समझाने का प्रयास किया है जो कि सराहनीय है। किसी के दास्ताने, किसी के कपड़े आदि बहुत कुछ पड़े रहते हैं शरहद पर। हाल ही घटी घटना सरबजीत सिंह जो कि फौजी नहीं होते हुए भी अपनी जिन्दगी की आखिरी सांस तक लड़ते रहे। सरकारी दस्तावेजों में सालों तक उनकी कागजी कार्यवाही के बीच ही झूलती रही। आखिरी सलाम उस देशभक्त को जो अपनी अन्तिम सांस तक पाकिस्तानी सैनिकों की यातनाओं से लड़ते रहे।
    - अंजनी कुमार गुप्ता, कोलकाता

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  10. kafi sunder kavita hai badhai Aarsi ji
    - Ajit Patni, Kolkata

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  11. Sarhad par ladne walo jawano k liye kafi sunder kavita likhi hai badhai Aarsi chauhan ji
    - C.L Bagra, Kolkata

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