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सोमवार, 12 दिसंबर 2016

स्वर्णलता ठन्ना की कविताएं-

       

     रतलाम म0प्र0 में जन्मीं स्वर्णलता ठन्ना ने परास्नातक की शिक्षा हिन्दी एवं संस्कृत में  प्राप्त की है एवं  हिन्दी से यूजीसी नेट उत्तीर्ण किया है। साथ ही  सितार वादन , मध्यमा : इंदिरा संगीत वि0 वि0 खैरागढ़ , छ 0 ग 0 से एवं पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन - माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि0 वि0 भोपाल से प्राप्त की है । आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा "  युवा प्रतिभा सम्मान 2014 " से सम्मानित 

           साथ ही वेब पत्रिका अनुभूति, स्वर्गविभा, साहित्य रागिनी, साहित्य-कुंज, अपनी माटी, पुरवाई,  हिन्दीकुंज, स्त्रीकाल, अनहद कृति, अम्सटेल गंगा,  रचनाकार, दृष्टिपात, जनकृति, अक्षर पर्व,संभाव्य, आरम्भ, चौमासा, अक्षरवार्ता (समाचार-पत्र) सहित अनेक पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ,लेख एवं शोध-पत्र प्रकाशित।
संप्रति- ‘ समकालीन प्रवासी साहित्य और स्नेह ठाकुर ’  विषय पर शोध अध्येता,हिंदी अध्ययनशाला , विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन।


आवाजों के वर्तुल

मैं जब भी सुनती हूँ
तुम्हारी आवाज के वर्तुल
सारा कोलाहल
एक मद्धिम रागिनी में
तब्दिल हो जाता है
दिल की बोझिल धड़कनों में
नव स्पंदन के स्वर घुल जाते हैं
पलकों पर स्वप्न
नया जीवन उत्सव रचने में
तल्लीन हो जाते हैं
पीले फूलों की ऋतुएँ लेकर
देह की प्रकृति में
वसंत हाथ जोड़े खडा
प्रेम का याचक बना
दिखाई देता है
दिन पूरबी कोने को जगमगाते
दो कदम के फासले पर ही
साँझ के आँचल में छुप जाते हैं
और दिल की नाजुक दूर्वा पर
तुम्हारी याद के ओस कण
दमक उठते हैं...।


सतरंगा इंद्रधनुष

सोनाभ क्षितिज में
पसर जाती है जब
सुहानी साँझ
तारों की आगत से
सजने लगता है आसमाँ
और इठला कर चाँद
उग आता है
रश्मियां बिखेरता
तब यादों के सफों में
डबडबाई आँखों से
झर उठते हो तुम
छलक आता है मन
और सीलन से भर जाता है
दिल का हर कोना
चोटिल पल एक-एक कर
याद आते हैं
बीते क्षण लौट कर
अपने साये से टकराते हैं
ऐसे में मुझे
तुम याद आते हो...
प्रेम...!
मैंने सुना है
तुम सर्वज्ञ, सर्वव्यापी
और सक्षम हो...
तो झरते आँसुओं और
उजली चाँदनी से
रच दो ना
कोई सतरंगा इंद्रधनुष
मेरे लिए भी...।

संपर्क - 
84, गुलमोहर कालोनी, गीता मंदिर के पीछे, रतलाम . प्र. 457001
मो. - 09039476881
-मेल - swrnlata@yahoo.in

शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

स्वर्णलता ठन्ना की कविताएं-





                              स्वर्णलता ठन्ना
       रतलाम म0प्र0 में जन्मीं स्वर्णलता ठन्ना ने परास्नातक की शिक्षा हिन्दी एवं संस्कृत में  प्राप्त की है एवं  हिन्दी से यूजीसी नेट उत्तीर्ण किया है। साथ ही  सितार वादन , मध्यमा : इंदिरा संगीत वि0 वि0 खैरागढ़ , छ 0 ग 0 से एवं पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन - माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता वि0 वि0 भोपाल से प्राप्त की है ।
पुरस्कार - आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह द्वारा "  युवा प्रतिभा सम्मान 2014 " से सम्मानित 
संप्रति- ‘ समकालीन प्रवासी साहित्य और स्नेह ठाकुर ’  विषय पर शोध अध्येता,
हिंदी अध्ययनशाला , विक्रम विश्व विद्यालय उज्जैन।
प्रकाशन - प्रथम काव्य संकलन - स्वर्ण-सीपियाँ  प्रकाशित , वेब पत्रिका -अनुभूति , स्वर्गविभा, साहित्य कुंज ,साहित्य रागिनी , अपनी माटी, अक्षरवार्ता  सहित अनेक पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ  एवं लेख प्रकाशित।

       स्वर्णलता ठन्ना की कविताओं से गुजरते हुए यथार्थ की कठोर धरातल से गुजरने जैसा  है। एक कवि मित्र ने ठीक ही लिखा है कि जहां किसी टहनी में गांठें व खुरदरापन होता है वहीं से नये कल्ले निकलते हैं।और जीवन की वास्तविकता भी तो यही है कि बहुत संघर्षों के बाद ही नयी राह निकलती है।कवयित्री का भविष्य के सपने देखना भी कम आश्चर्यचकित नहीं करता जब अकेलेपन में भी खुशी के दो-चार क्षण ढ़ूंढ़ निकाल ही लेती हैं। जीवन की कड़वी सच्चाई से रूबरू कराती ‘ सुरमई लम्हा ’ कविता देखने में सीधी- सरल जरूर है लेकिन जब जीवन की कठोर परतों को तोड़ती है तो यथार्थ के धरातल पर खुशबू की भीनी-भीनी महक तैर आती है।
        ‘ अर्धत्व  ’  कविता भी बिम्बों के बारीक रेशों से बुनी हुई है जिसपर गोटे टांगने का काम बहुत खूबसुरती से किया गया है। इनकी कविताओं में जहां भाषा एवं शिल्प का टटकापन है वहीं नये बिंबों की गझिनता भी है को नया आयाम देती है।आने वाले दिनों में इन कविताओं की धमक बहुत दूर तक और देर तक सुनी जाएगी । ऐसा मुझे विश्वास है।आपकी बेबाक राय की प्रतीक्षा में प्रस्तुत है युवा कवयित्री स्वर्णलता ठन्ना की कविताएं-


1. जिंदगी की कला
 
कला की कूंची
जिंदगी की
कड़वी सच्चाइयों से पगी
रचती है हर समय
कोरे कागज पर
कुछ रंगीन रेखाएँ
भरा होता है
उसका कैनवास खचाखच
जिसमें होते है कुछ
सूखे ठूँठ बन चुके पेड़,
नन्हें मुरझाए फूल,
लालटेन के उजाले में
टिमटिमाती एक जोड़ी
नीली आँखें
धूप का पीलापन
और कोयले की
खदान से निकले
काले रंग से सने
कृशकाय कुछ मजदूर
तपती दुपहरी में
उदास गलियाँ
लू के थपेड़ों से
जूझते अकेले खड़े वृक्ष
और सूरज की ओर
सिर उठाए ताकते
तपते सूरजमुखी
कितना सच होता है उनमें
होते हैं वे
सच्चाई से लबरेज
क्योंकि उकेरते है वे
जिंदगी की वास्तविकता को
दुख, तकलीफ, अवसाद को
लेकिन फिर भी
उन्हें कहा जाता है
खूबसूरत हमेशा ही
कला का अद्वितीय नमूना
प्रशंसा के कसीदे
गढ़े जाते हैं उनके लिए
और भयावहता को
खूबसूरती कहने वाले
कला सर्जक
देते है उसे
जीवन से भरा शीर्षक
शायद
इसी को कहते हैं
जिंदगी की कला...।

2. सुरमई लम्हा

जाने कितने बरसों से
बसे हुए है
गीतों के बोल
मेरी जुँबा पर
जब कभी
होती हूँ तन्हा
उतर आते हैं
ये शब्द
मेरे अधरों पर
रचने कोई रागिनी
तब
बज उठते हैं
दिगंत के मृदंग
वेणु की मधुर गूंज
और
सितार के सप्तक की
झंकार
जिसे सुनकर
लहरा आता है
कोई राग
अपने झीने
पंखों के साथ
और तब
सुरमई हो उठता है
हर लम्हा...।


 3. अर्धत्व
 
अधूरेपन में छिपी है
एक चाह,
एक ललक
अपूर्णता की गहनता में
समाई है एक आशा
कुछ प्राप्त करने की
क्योंकि
अर्धत्व में छिपा है
सौंदर्य
तभी तो
अर्धचन्द्र पर लिखी जाती है
कविताएं
अधूरे प्रेम की कहानियाँ
होती है
जग में मशहूर
अर्धसत्य के
खोजे जाते हैं साक्ष्य
और
अर्धतत्व की पूर्णता
पूजित होती है
नारी-नटेश्वर में ।


संपर्क - 

84, गुलमोहर कालोनी, गीता मंदिर के पीछे, रतलाम . प्र. 457001
मो. - 09039476881
-मेल - swrnlata@yahoo.in