उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग में 14 जून 1973 को कौशलपुर,
बसुकेदार, में जन्में डॉ उमेश
चमोला ने सामाजिक एवं साहित्यिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कार्य किये हैं । इनके कार्यों
को देखते हुए उत्तराखण्ड , उत्तरप्रदेश,
मध्यप्रदेश, दिल्ली,पंजाब एवं छत्तीसगढ़ की कई साहित्यिक संस्थाओं ने सम्मानित भी
किया है। अब तक इनकी लोकसाहित्य,पर्यावरण एवं बालसाहित्य
पर आधारित दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।पन्द्रह से अधिक राष्ट्रीय संकलनो
में रचनाओं के प्रकाशन के साथ देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
सम्प्रति - राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्
उत्तराखण्ड देहरादून में शिक्षक-प्रशिक्षक के रूप में कार्यरत।
वर्तमान में अराजकता, हैवानियत, कुटिलता ईर्ष्या-द्वेष
और भ्रष्टाचार जैसी बुराईयां जिस तरह चरम पर पहुंच गयी हैं और मानवता चित्कार रही है
,डॉ उमेश चमोला ने बड़े सिद्दत से उजागर किया है अपनी कविताओं
में। प्रस्तुत है डॉ उमेश चमोला की कविताएं-
लाल मेरा खो गया है
दिल में उसके मैं बसी थी,
होंठ पर मेरे हंसी थी,
अब न जाने किस निशा में,
खो गया है?
लाल मेरा खो गया है।
था अहिंसा का पुजारी,
शमशीर उसके हाथ में है,
अब तो दुधारी,
नफरतों के बीच अब वह,
बो गया है,
एक महकता फूल था वह,
करता नहीं कभी ,
भूल था वह,
अपनी महक वह,
आज सारी खो गया है।
जब कभी मैं रोती थी,
वह पोंछता था अश्रु मेरे,
हर घड़ी वह सामने था,
रात,सन्ध्या और सवेरे,
अब मेरा दिल खुद मुझी पर,
रो गया है।
प्रेम की वंशी बजाता था कभी वह,
नाचता था और सभी को भी,
नचाता था कभी वह,
वासना की नींद में शायद,
कहीं वह सो गया है।
शैतान ! सावधान
इन्सानी
जिस्म को पहने,
तुम
एक खतरनाक शैतान हो,
वैसे
तुम्हारी शैतानियत,
कभी-कभी
तुम्हारे इन्सानी जिस्म
में
भी झलकने लगती है।
तुमने
मुझे बेरहमी से मारा,पीटा,घसीटा,
लाठियों
के निर्मम प्रहार से,
गोलियों
की बौछार से
मुझे
छलनी करना चाहा,
तुमने
सोचा तुम्हारे ऐसा करने से
मैं
मर जाऊँगा,
हकीकत
यह है कि मैं जिन्दा हूं,
मैं
कभी नहीं मरता,
हर
युग में तुमने मुझे मारना चाहा,
हर
बार तुम मुझे मार न सके,
मैं
घायल तो हूं
पर
मेरा दिल अभी भी धड़कता है,
मेरी
आंखों में नवजीवन का सपना
पल
रहा है।
इन्सानियत
का लबादा ओढ़े शैतान,
सावधान,
जिन्दा
हूं मैं इन्सान।
सम्पर्क - डॉ उमेश चमोला
एस0सी0ई0आर0टी देहरादून उत्तराखण्ड
मोबाइल-7895316807
ई मेल-u.chamola23@gmail.com