मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

खेमकरण सोमन की कविताएं


ऊधम सिंह नगर,  उत्तराखण्ड में 02 जून 1984 को जन्‍में युवा कवि खेमकरण सोमन के गीत, कवि‍ता, कहानी, लेख, समीक्षा आदि‍ का वि‍भि‍न्‍न पत्र-पत्रि‍काओं में प्रकाशन हो चुका है। उनकी तीन कवि‍तायें।



खेमकरण सोमन की कविताएं-  



























जिस तरह
    
 जाने के बाद असमय माँ के
 हो जाना था
 इस घर को दो
 आँगन को चूल्हे को भी
 छोटे भाई-बहनों का तीतर-बीतर और
 एहसास दर-दर अनाथ का
 कुशलता से लेकिन
 लिया संभाल डगमगाते घर को
 आँगन को चूल्हे को
 और बचा लिया
 भाई-बहनों को तीतर-बीतर होने से
 और अनाथ भी
 नई आईं भाभी ने
 जिस तरह
  झरने का पानी
 गिरता है पहाड़ के चरणों में
  हम भाई बहनें
 ठीक उसी तरह
 प्रणाम करते हैं 
 अपनी भाभी माँ को।


क्योंकि

ताकत की बातें
मैं नहीं करता

मै करता हूँ
सम्मान की बातें

क्योंकि
मैं जानवर नहीं
एक इन्सान हूँ।

फिर ये बताओ

जरा सोचो और
फिर ये बताओ कि-

क्या ये भी
एक हत्या नहीं जब
एक व्यक्ति कर देता है हत्या
अपने ही
सपने
विचार
इच्छाओं की ।




 संपर्क सूत्र -                   
                           खेमकरण सोमन
                           प्रथम कुंज, अम्बिका विहार,
                            ग्राम व डाक-भूरारानी, रूद्रपुर
                           जिला-ऊधम सिंह नगर
                           उत्तराखण्ड-263153
                           मो0न0-  09012666896

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

अरुण आशीष की कविता

संक्षिप्त परिचय







        
 


     






    


      अरुण आशीष बचपन से ही कविताएं लिखते रहे हैं। हास्य व्यंग की कविताओं के बाद गंभीर साहित्य की ओर लेखन अभी जल्दी ही। इनकी कविताएं अपने आस-पास से ही सामाग्री उठाकर उन्हें विस्तृत आयाम प्रदान करती हैं।  यहां पर उनकी एक कविता ज़िन्दगी जो अपने कथ्य ,शिल्प एवं गझीन बिंबों व प्रतीकों से ध्यानाकर्षित करती है । जो इन्हें एक संभावनाशील कवि के रूप में स्थापित होने का संकेत दे रही है। आदमी की जिन्दगी कितने उतार- चढ़ाओं से भरी है । इस कविता में बड़े सिद्दत से महसूस किया जा सकता है।
         कानपुर मेडिकल कालेज से एम बी बी एस अंतिम वर्ष की पढ़ाई कर रहे अरुण आशीष  का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चिलिकहर नामक गाँव में 1 जुलाई 1984 में हुआ। अपनी कविताओं के प्रकाशन को लेकर ये कभी गंभीर  नहीं रहे। बेब पत्रिकाओं में छिटपुट कविताएं प्रकाशित। 
   यहां उनकी एक कविता-  
                                             
ज़िन्दगी  




 















सर्कस में परदे के पीछे से झांकती
सकुचाती शर्माती वो छाया
कौतुहल से अपने परिचय को आतुर
इंतजार करती अपनी बारी का
मंचासीन होते ही
दिखाया उसने अदम्य आत्म
-विश्वास
बिना किसी डर के
दिखाना करतब
पतली डोर के सहारे चलना
लपक के झूल जाना
एक से दूसरे झूले पर
कभी लटक जाना ऊँचाई से
करना कभी लपटों का सामना
विविधता लिए मुस्कान के साथ
करना अ
खेलियाँ
नाचते हुए 

लाउड स्पीकर की धुन पर
रिझाना
कभी क्रोध कर डराना
विचित्र भाव भंगिमा धारण कर
कराना  अपना साक्षात्कार 

हर बाधाओं को लांघती
तोड़ती प्रत्येक सीमाओं को
जोड़ती कई विधाओं को परस्पर
कई रूपों के बावजूद भी
अभिन्न  
इसी का नाम है ज़िन्दगी

                                         .
संपर्क सूत्र
-
          कक्ष संख्या 116 एबी एच 4
               गणेश शंकर विद्यार्थी स्मारक चिकित्सा 
              महाविद्यालय कानपुर उत्तर प्रदेश
              मोबाइल
- 09450779316


शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

कैलाश गौतम की एक भोजपुरी कविता

  पुण्यतिथि ०९ दिसम्बर पर मैं अपने प्रिय कवि की एक भोजपुरी कविता पोस्ट कर रहा हूं। आप सुधीजनों के विचारों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।   संपादक

कैलाश गौतम  08-01-1944 से 09-12-2006


अमवसा मेला




 












भक्ति के रंग में रंगल गाँव देखा
धरम में करम में सनल गाँव देखा
अगल में बगल में सगल गाँव देखा
अमवसा नहाय चलल गाँव देखा
एहु हाथ झोरा, उहू हाथे झोरा
कान्ही पे बोरी , कपारे पे बोरा
कमरी में केहू, रजाई में केहू
कथरी में केहू, दुलाई में केहू
आजी रगांवत हई गोड़ देखा
घुघुटवै से पूछे पतोहिया कि अइया
गठरिया में अब का रखाई बतइहा
एहरे हउवै लुग्गा ओहर हउवे पूड़ी
रमायन के लग्गे हौ मडूआ के ढूढ़ी
चाउर चिउरा किनारे के ओरी
नयका चपलवा अचारे के ओरी

अमवसा मेला, अमवसा मेला
हइ हउवै भइया अमवसा मेला।।
मचल हउवै हल्ला चढ़ावा उतारा
खचाखच भरल रेलगाड़ी निहारा
एहर गुर्री-गर्रा ओहर लोली लोला
बिच्चे में हउवै सराफत से बोला
चपायल केहू, दबायल हौ केहू
घंटन से उप्पर टंगायल केहू
केहू हक्का-बक्का, केहू लाल-पीयर
केहू फनफनात हउवै कीरा के नीयर
बप्पा रे बप्पा, दइया रे दइया
तनी हमें आगे बढ़े देत्या भइया
मगर केहू दर से टसकलै टसकै
टसकलै टसकै, मसकले मसकै
छिड़ल हौ हिताई-नताई चरचा
पढ़ाई लिखाई, कमाई चरचा
दरोगा बदली करावत हौ केहू
लग्गी से पानी पियावत हौ केहू
अमावास के मेला अमावस मेला
इहइ हउवै भइया अमावस मेला।।

जेहर देखा ओहरै बढ़त हउवै मेला
सरगे सीढ़ी चढ़त हउवै मेला
बड़ी हउवै साँसत कहले गिनाला
एही भीड़ में संत गिरहस्त देखा
सबै अपने अपने में हौं ब्यस्त देखा
टाई में केहू, टोपी में केहू
झुसी में केहू अलोपी में केहू
अखाड़न के संगत के पंगत देखा
कहीं रासलीला कहीं परबचन हौ
कहीं गोष्ठी हौ कहीं भजन हौ
केहू बूढ़िया माई के कोरा उठावै
तिरबेनी मइया में गोता लगावै
कलपबास में घर के चिंता लगल हौ
कटल धान खरिहाने वइसे परल हौ

अमवसा मेला,अमवसा मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा मेला।।
बहुत दिन पर चम्पा-चमेली भेटइलीं
बचपन दूनों सहेली भेंटइली
आपन सुनावै आपन सुनावै
दूनों आपन गहना गदेला गिनावैं
असों का बनवलू असों का गढ़वलू
तू जीजा का फोटो अब तक पठवलू
इन्हैं रोकैं इन्हैं टोकैं
दूनौ अपने दुलहा तारीफ झोंकै
हमें अपनी सासू पुतरी तू जान्या
हम्में ससुर जी पगरी तू जान्या
शहरियो में पक्की देहतियो में पक्की
चलत हउवै टेम्पो चलत हउवै चक्की
मनैमन जरै गड़ै लगली दूनौं
भयल तू-तू मैं-मैं लड़े लगली दूनौं
साधू छोड़ावै, सिपाही छोड़ावै
हलूवाई जइसे कराही छोड़वै

अमवसा मेला,अमवसा का मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा मेला।।
कलौता माई झोरा हेरायल
बुद्धू बड़का कटोरा हेरायल
टिकुलिया माई टिकुलिया के जोहै
बिजुलिया भाई बिजुलिया के जोहै
मचल हउवै मेला में सगरो ढुंढाई
चमेला बाबू चमेला माई
गुलबिया समत्तर निहारत चलैले
मुरहुवा-मुरहुवा पुकारत चलैले
छोटकी बिटिउवा के मारत चलैले
गोबरधन सरहज किनारे भेटइली
गोबरधन के संगे पउँड़ के नहइली
घरे चलता पाहुन दही-गुड़ खिलाइत
भतीजा भयल हौ भतीजा देखाइत
उहै फेंक गठरी परइलैं गोबरधन
फिर-फिर देखइलैं धरइलैं गोबरधन

अमवसा मेला ,अमवसा मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा मेला।।
केहू शाल सुइटर दुशाला मोलावै
केहू बस अटैची ताला मोलावै
केहू चायदानी पियाला मोलावै 
सोउरा केहू मसाला मोलावै
नुमाइस में जाते बदल गयलीं भउजी
देखते डरामा उछल गयलीं भउजी
भइया बेचारू जोड़त होउवैं खरचा
भुलइलै भूलै पकौड़ी मरचा
बिहाने कचहरी, कचहरी चिन्ता
फटल हउवै कुरता फटल हउवै जूता
खालित्ता में खाली केराया बूता
तबौ पीछे-पीछे चलत जात हउवन
गदेरी में सुरती मलत जात हउवन
अमवसा मेला अमवसा मेला
इहइ हउवै भइया अमवसा मेला।।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

ध्रुव हर्ष की कविताएं-



 संक्षिप्त परिचय

      वर्तमान समय में कविता का फलक जिस तरह विस्तृत हुआ है और नये रचनाकारों ने साहित्याकाश में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है उनमें  ध्रुव हर्ष भी अग्रसर हैं। चाय के प्यालों पर मढ़े थे और पश्चिम में नामक कविताएं अलग अलग पृष्ठभूमि में  होने के बावजूद भी ध्यानाकर्षित करती हैं।
         15 जनवरी1989 को उत्तर प्रदेश में गोंडा जिले के बनकसिया शिवरतन सिंह मनकापुर में जन्मे ध्रुव हर्ष  - महाभारत इन कंटेम्पररी इंडियन इंग्लिश नावेल, पर  इलाहाबाद विश्वविद्यालय  से डी फिल कर रहे हैं। इनकी रचनाएं  दैनिक जागरण, अमर उजाला अन्य पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
आजकल अंग्रेजी साहित्यिक पत्रिका -कांफ्लुएंस के संपादन में जुटे हैं । नाटकों का संवाद, रूपांतरण गीत ,पटकथा लेखन के साथ-साथ अंग्रेजी कविताएं लिखने का शौक ।  

  यहां उनकी दो कविताएं-


 



















चाय के प्यालों पर मढ़े थे .....
 
चाय के प्यालों पर मढ़े थे
उसके होंठों के कश
जो कहीं साथ बैठे
फुर्सत के क्षणों में हमने पी थी
और तभी निहारा था
अपनी इन आँखों से
उसके सुर्ख होंठों को
मुझे पहली बार लगा
होंठों से ज्यादा स्वादिष्ट कुछ नहीं
आँखों से ज्यादा ठंडी कुछ नहीं
उसके स्पर्श से ज्यादा कोमल कुछ नहीं
उसको मुझसे ज्यादा आकर्षक कुछ नहीं
वो सब कुछ महसूस किया
और कहना चाहता था 
पर कुछ कह सका
हिचक थी और आज भी है
हिजड़े - सा मन उछल कूद कर
शांत हो गया
और दुबक गया खुद से
आज फिर गया था देखने
उसी होटल में
कुछ बदले नहीं थे
मेज़-कुर्सियां
टेबल पर रखे प्लेट-प्याले
पर कश नहीं थे उसके लाली के
जिसे  मैं चूम लेता


 


 
पश्चिम में.....

पश्चिम में
सूरज की लाली
नीले कैनवास पर
किसी प्रेमी की तरह
जब टूट कर पसरा
तो वो थके मादे
फटे चीथड़े
कपड़ों में भीगे
मेरे अपने  ही
थोड़े खून हाड़ों के सांचे 
जो इस धरती पर एलियन  हैं
जिनका दूर तक कोई मजहब नहीं
बस मुफ्लिशी के हाथों  बिकें
जिन्होंने सुबह शाम एक कर
रोटी के एक टुकड़े का जुगाड़ कर लिया था 
और मिट्टी के जूठे कुल्हड़ में
पानी डालकर  टुकड़े को डुबो रहे थे
चिल्ला रहे बच्चों को
एक थपकी देकर सुला दिए थे
आज उनके फटी चादरों में
कुछ सिक्कों को पड़े देखा
आज शायद वो  धनिया की चटनी
बना के खा सकें
और होंठों पर अनजान सी मुस्कान लाकर
दुआओं  के नाव को पत्थर पर तैरा सकें



















संपर्क       
                  हालैंड हॉल छात्रावास २८
          इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद
          मोबाइल 8004018007