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गुरुवार, 28 नवंबर 2019

युवा कवि शिरोमणि महतो की कविताएं


  समकालीन रचनाकारों में प्रमुख स्थान रखने वाले शिरोमणि महतो  की कविताएं सरल शब्दों में बड़ा वितान रचती हैं कवि अपने लोक से कितना जुड़ा है । यह तो इन कविताओं को पढने के बाद ही जान पाएंगे।
युवा कवि  शिरोमणि महतो की कविताएं-
1-दुःख

हरे-भरे पेड़ पर ही अक्सर होता है-बज्रपात
पूर्णिमा के पूरे चांद को ही लगता है-ग्रहण
ठीक बांध जब भर जाता है छपाछप
अगाध पानी में मछलियाँ तैरती है-निर्बात
तभी टूट जाती है-मेढ़
खेतों में लहलहा रही होती है फसलें
तभी आ जाती है-बाढ़
और दहा जाती है फसलों को

और,
जब होना था राज्याभिशेक
तभी मिला-बनवास !

जीवन हुलस रहा होता है सुख से
तभी आ टूटता है-दुःखों का पहाड़
सुख की पीठ पर सवार होकर चलता है-दुःख !

2-बचपन के दिन


पेड़ों के पत्तों से
चुअता पानी ठोप-ठोप
और उसके नीचे बैठे
हम खेलते रहते गोंटी
भींग जाता हमारा माथा
डर लगता-कहीं सर्दी न हो जाय
फिर भी हम टस-से मस नहीं होते

आम के फलों से
फूटती सिन्दूर की लाली
और कड़ी धूप में
हम फेंक रहे होते टाल्हा
आम झाड़ने के लिए
पसीने से तर-बतर होता हमारा षरीर

जब झाड़ लेते कोई पका हुआ आम
और चाव से चखते तो ऐसा लगता
मानो हमने चख लिया हो
धरती के भीतर का स्वाद और मिठास

आज बाजार से तौलकर नहीं ला सकते
वह स्वाद और मिठास !

जब कभी हम लौटते
बचपन के दिनों की ओर
छोटे होने लगते हमारे पांव
और हमारा कद
हम जाके उलझ जाते
पुटुस की झड़ियों से
जहाँ हमने लुक-छिपकर किया था
पहली बार अनगढ़ प्यार....!



पता  : नावाडीह, बोकारो, झारखण्ड-829144   
मोबाईल  : 9931552982

सोमवार, 27 जून 2016

युवा कवि शिरोमणि महतो की कविताएं



     समकालीन रचनाकारों में प्रमुख स्थान रखने वाले शिरोमणि महतो  की कविताएं सरल शब्दों में बड़ा वितान रचती हैं कवि अपने लोक से कितना जुड़ा है । यह तो इन कविताओं को पढने के बाद ही जान पाएंगे।
युवा कवि  शिरोमणि महतो की कविताएं
नदी

मेरी माँ मेरे सर पर
हाथ रखती है
और एक नदी
छलछलाने लगती
-मेरे ऊपर

मेरी बहन कलाई में
राखी बांधती
और एक नदी
उडेल देती सारा जल
-मुझ पर

मेरी पत्नी होठों पर
एक चुम्बन लेती
और एक नदी
हिलोरे मारने लगती
-मेरे भीतर

माँ बहन और पत्नी
एक स्त्री के कई रूप
और एक नदी के
कई प्रतिरूप !

कोदो भात

कोदो गोंदली मंहुआ
अब देखने को नहीं मिलते
उखड़ गई इन फसलों की खेती
जैसे हम उखड़ गये अपनी जड़ों से !

आज कोदो का भात दुर्लभ है
लेकिन कहावत अभी जिन्दा है-
हाम तो बाप पके कोदो नायं खाईल हियो
पहले कोदो चावल से भी ज्यादा भोज्य था
तभी तो बनी थी-यह कहावत

धीरे-धीरे चावल भी छूटता जा रहा
और उसकी जगह लेता जा रहा
अब चौमीन-चाईनीज फूड....

जैसे-जैसे कोदा से चावल
और चावल से चाईनीज फूड
वैसे-वैसे भारत से इंडिया
होता जा रहा अपना देश....!
पता  : नावाडीह, बोकारो, झारखण्ड-829144  मोबाईल  : 9931552982

सोमवार, 18 मई 2015

शिरोमणि महतो की दो कविताएं

 हम झारखण्ड के युवा कवि शिरोमणि महतो की कविताएं प्रकाशि कर रहे हैं। झारखण्ड में जीवन&यापन करते हुए वहाँ की जनपदीय सोच को अभिव्यक्त करना जोखिम भरा काम है। हमने शिरोमणि महतो की उन कविताओं को तरजीह दी है। जिसमें उनका जनपद] उनका परिवेश  मुखर होता है। बेशक अपने परिवेश के शिरोमणि महतो अच्छे प्रवक्ता हैं। इस उत्तर आधुनिक समय में झारखण्ड और वहां की चिन्ताएं विश्व&पटल पर रखने का कौशल शिरोमणि महतो में है। वह बड़ी बारीकी से आस&पास विचरण करते समय की चुनौतियों को महसूस करते हैं और अपनी जिम्मेदारियां समझते हैं कि ऐसे कठिन समय में एक लोकधर्मी कवि की क्या भूमिका होनी चाहिएA
 
शिरोमणि महतो की दो कविताएं--

कर्म और भाग्य

जिसका भाग्य साथ होता
उसके साथ लागू होता-
न्यूटन का तृतीय गति-सिद्धांत
कर्म के बराकर मिलता-फल

जिसका भाग्य मंद होता
उसके कर्म का भी फल मिलता
जैसे एक कड़ाही साग
सीझने के बाद बचता-एक कलछुल !

और जिसका भाग्य तेज होता
उसका कर्म-फल गई गुना अधिक होता
जैसे एक पैला चावल
खदककर हो जाता-एक डेगची भात !



 














औरतें

किसी दूसरे ग्रह से
नहीं आती आरतें
सबके घरों में होती हैं
द्वार की तरह....
भीतर जीवन का सार
और बाहर अनंत बिस्तार

औरतें हमारे लिए
दोनो हैं-उत्पाद और उत्पादक

सभी औरतें
एक जैसी नहीं होतीं
वे सभी क्षेत्रों में
दो धु्रवों में खड़ी दिखती
हैं....

कुछ औरतें
सींच रही हैं-
जीवन की जड़ो को
अपनी गोद में
खिला रही हैं-सृष्टि  को !

और कुछ औरतें
अपने उन्नत उरोजों से
उठा लेना चाहती है-
समूचा ब्रह्माण्ड !

औरतें-
चुनौती बनती जा रही हैं
औरतों के लिए....!



 



















शिरोमणि महतो
शिक्षा-  - एम हिन्दी

सम्प्रति-  - अध्यापन एवं महुआ पत्रिका का सम्पादन

प्रका- - - कथादेश, हंस, कादम्बिनी, पाखी, वागर्थ, कथन, समावर्तन, पब्लिक एजेन्डा, समकालीन भारतीय साहित्य, सर्वनाम, युद्धरत आम आदमी, शब्दयोग, लमही, पाठ, पांडुलिपि, हमदलित, कौशिकी, नव निकश, दैनिक जागरण पुनर्नवा विशेषांक ,दैनिक हिन्दुस्तान, जनसत्ता विशेषांक, छपते-छपते विशेषांक, राँची एक्सप्रेस, प्रभात खबर एवं अन्य दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।

पता- - - नावाडीह बोकारो झारखण्ड -829144

                         मोबाईल-09931552982

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

शिरोमणि महतो की कविताएं






हम झारखण्ड के युवा कवि शिरोमणि महतो की कविताएं प्रकाशि कर रहे हैं। झारखण्ड में जीवन&यापन करते हुए वहाँ की जनपदीय सोच को अभिव्यक्त करना जोखिम भरा काम है। हमने शिरोमणि महतो की उन कविताओं को तरजीह दी है। जिसमें उनका जनपद] उनका परिवेश  मुखर होता है। बेशक अपने परिवेश के शिरोमणि महतो अच्छे प्रवक्ता हैं। इस उत्तर आधुनिक समय में झारखण्ड और वहां की चिन्ताएं विश्व&पटल पर रखने का कौशल शिरोमणि महतो में है। वह बड़ी बारीकी से आस&पास विचरण करते समय की चुनौतियों को महसूस करते हैं और अपनी जिम्मेदारियां समझते हैं कि ऐसे कठिन समय में एक लोकधर्मी कवि की क्या भूमिका होनी चाहिएA



शिरोमणि महतो की कविताएं&







 1- भावजें

भावजें बहुत शीलवती होती हैं
उनके व्यवहार से छलकता
शीतलता का तरह प्रवाह
वे हमें देखते ही
काढ़ लेती हैं.
लम्बा-सा घूंघट
और वे लगती बिल्कुल छुईमुई की तरह
झुकी डालियों की तरह
लोग कहते-
भावजें शुभ होती हैं
भैसुरों के लिए
अगर राह चलते
उनका मुख दिख जाये
तो समझो-यात्रा सफल !
इनसे सटी हुई
किसी चीज को
स्पर्श कर जाने से
हम छुआ जाते हैं
फिर हमारे सर पर
छिड़का जाता है
सोनापानी या गंगाजल
शायद रिश्तों में
पवित्रता की शुरूआत
यहीं से हुई हो
माँ-और बहन के रिश्तों से
अधिक महान होता
यह संबंध !
भावजों का सिर
हमेशा झुका रहता.
इनके ही सर पर टिका होता है
हमारे परिवार के
अभिमान का आकाश!


2- अखरा


गाँव की छाती में
होता-अखरा
जहाँ करमा में
लगता है-गहदम झूमर
औरतों के लिए
सबसे सुरक्षित स्वतंत्र
स्थान है-अखरा
धरती की आंत
जहाँ पुरूषों का दम्भ
पच जाता है !
जहाँ चौखट से बाहर
औरतें खोल पाती हैं
अपने पाँव और
अपनी आत्मा के अतल को
औरतें अखरा में
खुलकर नाचती है
पांवों के थके जाने तक
आत्मा के भर जाने तक !
जब पहली बार
टूटी होगी पुरूषों की अकड़
दरकी होगी दम्भ की दीवारें
तब जाके बना होगा
धरती की छाती में
अखरा, आत्मा की तरह!
जिसमें स्त्रियों के पांव
थिरके होंगे धड़कन की तरह
और स्त्रियों ने लिया होगा
खुली हवा में सांस
और मुक्त आकाश के नीचे
मुक्त कंठ से गाया होगा
मुक्ति का गान!।


संपर्क.  नावाडीह बोकारो झारखण्ड
9931552982


मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

शिरोमणि महतो की दो कविताएं





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शिक्षा  - एम हिन्दी

सम्प्रति  - अध्यापन एवं महुआ पत्रिका का सम्पादन

प्रका - - कथादेश, हंस, कादम्बिनी, पाखी, वागर्थ, कथन, समावर्तन, पब्लिक एजेन्डा, समकालीन भारतीय साहित्य, सर्वनाम, युद्धरत आम आदमी, शब्दयोग, लमही, पाठ, पांडुलिपि, हमदलित, कौशिकी, नव निकश, दैनिक जागरण पुनर्नवा विशेषांक ,दैनिक हिन्दुस्तान, जनसत्ता विशेषांक, छपते-छपते विशेषांक, राँची एक्सप्रेस, प्रभात खबर एवं अन्य दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।

 शिरोमणि महतो की दो कविताएं

भात का भूगोल

पहले चावल को
बड़े यत्न से निरखा जाता
फिर धोया जाता स्वच्छ पानी में
तन-मन को धोने की तरह

फिर सनसनाते हुए अधन में
पितरों को नमन करते हुए
डाला जाता है-चावल को
अधन का ताप बढ़ने लगता है
और चावल का रूप-गंध बदलने लगता है

लोहे को पिघलना पड़ता है
औजारों में ढलने के लिए
सोना को गलना पड़ता है
जेवर बनने के लिए
और चावल को उबलना पड़ता है
भात बनने के लिए
मानो
सृजन का प्रस्थान बिन्दु होता है-दुख !

लगभग पौन घंटा डबकने के बाद
एक भात को दबाकर परखा जाता है
और एक भात से पता चल जाता
पूरे भात का एक साथ होना
बड़े यत्न से पसाया जाता है मांड
फिर थोड़ी देर के लिए
आग में चढ़ाया जाता है भात को
ताकि लजबज रहे

आग के कटिबंध से होकर
गुजरता है-भात का भूगोल
तब जाके भरता है-
मानव का पेट-गोल-गोल !



छोटे शहर में प्यार

छोटे शहर में प्यार
पनपता है धीरे-धीरे
पलता है लुक-छुपकर
आँखों की ओट में
हृदय के तल में

छोटे शहर में
फैल जाती है-प्यार की गंध
इस छोर से उस छोर तक
धमधमा उठता है-
पूरा का पूरा-छोटा शहर

छोटे शहर का आकाश
बहुत नीचा होता
और धरती बहुत छोटी
जहाँ परींदे पंख फैलाकर
उड़ भी नहीं सकते

छोटे शहर में
प्रेमियों के मिलने के लिए
कोई गुप्त सुरक्षित जगह नहीं होती
कोई सिनेमा घर होता
बाग-बगीचे
और ही किलाओं का खण्डहर
जहाँ दो-चार पल
जिया जा सके एक साथ
और सांसो की आँच से
सेंका जा सके प्यार को !

छोटे शहर में
प्रेमियों का मिलना कठिन होता है
वहाँ हर घर के कबूतर
हरेक घर की मुर्गियों को पहचानते हैं
दो प्रेमियों को मिलते देखकर
कोई मुर्गा भी शोर मचा सकता है !

छोटे शहर में दो प्रेमी
एक-दूसरे को देखकर
मुस्कुरा भी नहीं सकते
आँखों की मुस्कुराहट से
करना होता है-संवाद
और संवेदना का आदान-प्रदान !

छोटे शहर में प्यार
बहुत मुश्किल से पलता है
पूरा का पूरा छोटा शहर
बिंद्या होता है-
घरेलू रिश्तों की डोर से
जिसमें प्रेम के मनके गूँथे नहीं जाते !

छोटे शहर में
चोरी-छिन्नतई जायज है
गुंडई-लंगटई जायज है
यहाँ तक कि-मौज मस्ती के लिए
अवैध संबंध भी जायज है
किन्तु प्यार करना पाप होता
एक जघन्य अपराध होता
प्रेम करनेवालों को चरित्रहीन समझा जाता है

छोटे शहर में प्यार को
हवा में सूखना पड़ता है
धूप में जलना पड़ता है
आग निगलना पड़ता है
और खौलते हुए तेल में
उबलना पड़ता है
इसके बावजूद साबुत बचे तो
लांघनी पड़ती हैं-
और कई अलंघ्य दीवारें !

वैसे तो
छोटे शहर में
प्रेम से ज्यादा
पेट के सवाल लटके हुए होते
हवाओं में काँटों की तरह
जो आत्मा को कौंचते रहते हैं
और कई बार
प्रेम-भूणावस्था में ही नष्ट हो जाता है !
    
छोटे शहर में प्यार
अक्सर अपने पड़ाव तक
नहीं पहुँच पाता
उसे झेलना पड़ता है-
विरह
या फिर-निर्वासन 
!

पता - - नावाडीह बोकारो झारखण्ड -829144

मोबाईल

9931552982 - 9931552982