सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

मेरी पहली कविता : रैदास की कठौत - आरसी चौहान









    आज हम  जिस दौर से गुजर रहे हैं शायद आजाद भारत में ऐसा षडयंत्र कभी नहीं रचा गया होगा जिसमें जनता की चीखों को बड़े शातिराना तरीके से दबाया जा रहा हो और हमारे हुक्मरान  धृतराष्ट्र की मुद्रा में विराजमान हों। जहां रोहित बेमिला एवं कन्हैया जैसे उदाहरण एक बानगी भर है। एक कविता जो पन्द्रह वर्ष पहले लिखा था जो कहीं भी प्रकाशित होने वाली संभवत: मेरी पहली कविता है। अखबार था वाराणसी से प्रकाशित होने वाला  ‘ गांडीव ’ और साल था 2001 जिसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी तब भी थी । केवल चेहरे बदल रहे हैं सिंहासन पर, आम आदमी वहीं का वहीं है।

 अगली पोस्ट जल्द ही जो वागर्थ के फरवरी 2016 अंक में  प्रकाशित मेरी तीन कविताओं पर होगी। फिलहाल प्रस्तुत है रैदास जयंती पर  मेरी पहली कविता। 

रैदास की कठौत


रख चुके हो कदम

सहस्त्राब्दि के दहलीज पर

टेकुरी और धागा लेकर

उलझे रहे

मकड़जाल के धागे में

और बुनते रहे

अपनी सांसों की मलीन चादर

इस आशा के साथ

कि आएगी गंगा

इस कठौत में

नहीं बन सकते रैदास

पर बन सकते हो हिटलर

और तुम्हारे टेकुरी की चिनगारी

जला सकती है

उनकी जड़

जिसने रौंदा कितने बेबस और

मजलूमों को।


संपर्क   - आरसी चौहान (प्रवक्ता-भूगोल)
राजकीय इण्टर कालेज गौमुख, टिहरी गढ़वाल उत्तराखण्ड 249121
मोबा0-08858229760 ईमेल- chauhanarsi123@gmail.com
 

 

रविवार, 7 फ़रवरी 2016

अशोक बाबू माहौर की कविता : धूप हथेली पर



    मध्य प्रदेश के मुरैना जिला में 10 जनवरी 1985 को जन्में अशोक बाबू माहौर का इधर रचनाकर्म लगातार जारी है। अब तक इनकी रचनाएं रचनाकार, स्वर्गविभा, हिन्दीकुंज, अनहद कृति आदि में प्रकाशित हो चुकी हैं।


  ई.पत्रिका अनहद कृति की तरफ से विशेष मान्यता सम्मान 2014.2015 से अलंकृति ।प्रस्तुत है इनकी एक कविता धूप हथेली पर

अशोक बाबू माहौर की कविता

  


















धूप हथेली पर 

धूप को समेटे 
हथेली पर 
बैठी है 
लाडली बिटिया 
मुस्कुराती,
पथ भी 
निगाहें भर 
उसे देखते 
हरी निर्मल घास भी
शब्द मंथन करती 
अंदर 
मन ही मन 
शायद समझ बैठी है 
खुद को 
अलौकिक शक्तियाँ,
तभी 
धूप को 
मसलती है 
चुटकियों में 
और सजाकर खेलती है 
खेल अनौखे

                       
संपर्क- 
ग्राम-कदमन का पुरा
तहसील-अम्बाह,जिला-मुरैना (मध्य प्रदेश) 476111 
मो-09584414669