सोमवार, 28 सितंबर 2015

समीक्षा - नमि मेरी आँखें : गोवर्धन यादव

         



      स्टार पब्लिकेशंन प्रा.लि. से प्रकाशित कविता संग्रह नमि मेरी आँखेंमारीशस के यशस्वी कवि राज हीरामन का यह दसवाँ कविता संग्रह अभी हाल में ही प्रकाशित होकर आया है. इससे पूर्व आपके नौ कविता संग्रह (1) कविताएं जो छप न सकीं (2)छपकर रहीं कविताएं (3) चुभते फ़ूल(4) हंसते कांटॆ (5)अंधेरे का उजाला (6) उजाले का अंधेरा (7) धरती तले अंधेरा (8) एक जमीन आसमान पर (9) नेहा की निधि प्रकाशित हो चुकी हैं. नमि मेरी आँखें. सद्यः प्रकाशित है..


इस कविता संग्रह में कुल 43 कविताएँ प्रकाशित है, जिसमें अधिकांश कविताएं वियोग को लेकर लिखी गई हैं. कवि ने संग्रह को जो शीर्षक दिया है तथा अपने वक्तव्य में इस बात का उल्लेख भी किया है कि ये कविताएं उनकी दिवंगत पत्नि श्रीमती नमि की विरह पीडा में  लिखी गई हैं. उन्हें केन्द्र में रखकर कवि ने अपने जज्बातों को उजागर करने का उपक्रम किया है. जिन्हें मैंने काव्य-भाषा, काव्य-अवधारणा, आदि को लेकर अपने विवेक के आधार पर कुछ वर्गों में बांटने का उपक्रम किया है. यथा-(i)स्वप्न बुनती कविताएँ और उसकी छायाओं को लेकर लिखी गईं कविताएं –आज, आए मौसम जाए मौसम, साथ संग, याद आती हो, रे तकिया, अमरत्व, शांति दूत, तमाम परिवर्तन और उतार-चढाव, तथा पेबंद पे पेबंद

(ii) रागात्मक संबंधों को लेकर बुनी कविताओं में –कर ले श्रृंगार सखी, सपने में आई थीं तुम, कहीं, टूटा पर झुका नहीं. हौले-हौले, अर्सों का प्यार

(iii) वियोग को लेकर कविताओं में-  ख्वाब बुने, साधना, कुछ आंसू, जख्मों पर पैबंद, कितना अच्छा था, सखी कहकर जाती, दर्दे घाव का फ़ूल, के लिए, आ जाओ तुम ,अलविदा, बोलती लाशें, मेरा दर्द, अलग रास्ते

(iv) प्रेम में डूबे मन को लेकर लिखी गईं कविताओं में- मत पूछ. एक गीत गा रहा हूँ. शब्द आदि

( v) बादल को उमडता-धुमडता देखकर लिखी कविताएं- जा रे बारिश, आ रे बादल, बादल बन के आउंगा, रूठकर आया हूँ, बादल घोडा, बारिश की रात

(vi) अन्य में- बिकाऊ है देश, किसमें कितना दम है, दुनिया गोल है, गुरु के दोहे, दिया हूँ मैं, हां मैं दर्द बेचता हूँ, आ रे पंछी, रॊटी और वोट, दिन शाम हुआ, बिम्ब, सूरज जेल में, आँखें, लगा आग पूंछ में, सूरज खोता नहीं, नीलकण्ठ, तथा चाचा रामगुलाम. आदि कविताओं को भी वर्गीकृत किया जा सकता है, विविधताओं से भरे इस संग्रह के लिए लेखक साधुवाद का पात्र है. संग्रह में वर्णित कविताओं को पढते हुए कहा जा सकता है कि-


कवि के भीतर मौजूद व्याग्रता, व्याकुलता और अधीरता के बावजूद भी ध्यान, मनन, चिंतन, धीरता, मंथरता और गंभीरता के साथ उनकी कविता ज्यादा दिखाई देती है. इन कविताओं में प्रेम की मधुर आँच है, प्रणय की उष्मा है, और प्रेम का लौकिक सौंदर्य है, जो देश और दुनियां की सीमाएं स्वीकार नहीं करता. निश्चित ही कहा जा सकता है कि आपका प्रेम असीम और निश्छल रहा है. कवि ने अपने रागात्मक संबंधों को लेकर एक काव्यात्मक दुनिया निर्मित करते हुए अपने दुख-सुख, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद, संकल्प-स्मृतियों को अलग-अलग कोणॊं से उल्लेखित किया है. इन कविताओं को पढते हुए यह भी महसूस होता है कि तमाम तरह की ऎन्द्रिकता के बावजूद उनमें नारी के प्रति असीम सम्मान का भाव रहा है.


कवि ने अलक्षित रह जाने वाले प्रसंगों और भावों को पकडने की, एवं अपने आसपास के जीवन और जीवानुभवों में धंसते हुए उन तमाम बिंदुओं को पकडने की भी कोशिश की है. कविताएं तो कई बार डायरी के पन्नों की तरह पर्सनल बातों को उजागर करती प्रतीत होती हैं. पति-पत्नि के संबंधों पर आधारित कविताओं में एक ताप देखा जा सकता है, तो कहीं आलोचनात्मक टीपें भी हैं.


कवि अपने छॊटॆ-छॊटॆ निजी दुखों के बीच रहते हुए काव्य संभावनाओं का सफ़रनामा लिखने में उसका आत्मगत संसार बार-बार व्यक्त होता है. और उसने एक सचेत कवि की तरह अपने समय के सत्य को अपनी आँखों से देखने का और बतलाने का रास्ता चुना.कई छॊटी-छॊटी अन्य रचनाएं भी संग्रह में अपना विशेष स्थान बनाते हुए दर्ज हुई हैं,जिनकी गूंज देर तक मन में बनी रहती है.

संकलन की  कविताएं राज हीरामन के रचनाकार के आत्म का पारदर्शी प्रतिरूप है. छ्ल-छद्म, दिखावेपान और सारी बनावट से दूर, लाभ, लोभ वाली आज की खुदगर्ज दुनिया में, एक सरल, सहज,निष्कुंठ, निर्मल मन से हमारा सादर अभिवादन. 

पुस्तक समीक्षा : नमि मेरी आँखें कवि- राज हीरामन
संपर्क-

103, कावेरी नगर, छिन्दवाडा(म.प्र.) 480001
मोबा0-09424356400 (संयोजक म.प्र.राष्ट्रभाषा प्रचार समिति)
 छिन्दवाडा                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                            

रविवार, 20 सितंबर 2015

बेटियों का भी हो सम्मान : प्रदीप लाल आर्य





उत्तराखण्ड के टिहरी गढ़वाल में जन्में बी0 0 की पढ़ाई कर रहे प्रदीप लाल आर्य ने इधर कुछ कविताएं लिखने की कोशिश की है। एकाध पत्र -पत्रिकाओं में छपने के बाद पहली बार किसी ब्लाग में । स्वागत है इस युवा स्वर का।


1- बेटियों का भी हो सम्मान 

जग में फैलेगा जब ज्ञान
होगा तभी बेटियों का सम्मान
जो रखते  बेटों से लगाव
और बेटियों को देते घाव
बेटा यदि घर लौटे  देर
बोलेंगे बेटा है शेर 
दुनियाँ की है कैसी सोच
और बेटियों के सपने नोच 
बेटियां होती हैं नन्हीं जान
हंसती -खेलती , सुन्दर संतान
अगर कभी हो जाती देर
प्रश्नों के रख देंगे ढेर
बेटों को देते सम्मान
फिर बेटियों का क्यों अपमान ?

2- क्यों करते पेड़ों का नाश

क्यों करते पेड़ों का नाश
इन्हीं से मिलती हमको सांस
करोगे सब पेड़ों से प्यार
यही हमारे सच्चे यार
क्यों इनसे अपना मुख मोड़ा
पेड़ों को हमने क्यों तोड़ा
पेड़ हमें देते हैं जीवन
फिर क्यों छिनते इनसे यौवन
जब मानव को है यह ज्ञान
काम करते फिर क्यों अज्ञान
पेड़ों पर न हथियार चलायें
अपनी मौत खुद क्यों बुलायें
पेड़ों पर है निर्भर जीवन
फिर क्यों छिनते इनसे यौवन
पेड़ों के कारण मिलता पानी
इन्हें काटने की फिर क्यों ठानी
पेड़ तो हैं पृथ्वी का गहना
न काटो इन्हें मानो कहना
इनको देख के मन खुश होता
फिर क्यों इनको दुश्मन माने
पेड़ हमें देते हैं छाया
यही तो है प्रकृति की माया
पेड़ रोकते हैं प्रदूषण
फिर क्यों करते इनका शोषण
काटोगे तो हर्ज हमारा
इन्हें बचाना फर्ज हमारा।


संपर्क-

प्रदीप लाल आर्य
राजकीय महाविद्यालय , चन्द्रबदनी , नैखरी टिहरी गढ़वाल , उत्तराखण्ड
Email- parya0497@gmail. Com
Mo-9756461704



रविवार, 13 सितंबर 2015

शैलेय की चार कविताएँ


कविमित्र खेमकरण सोमनके माध्यम से शैलेय  की ये कविताएं प्राप्त हुई हैं। शैलेय को इनकी छोटी छोटी कविताओं के लिए जाना जाता है। इधर के कुछ वर्षों में इनकी कई पुस्तकें प्रकाशित और चर्चित भी हुई हैं।
 


शैलेय की चार कविताएँ
 1.प्लीज

क्या कहा
एक मछली
सारे तालाब को गंदला कर देती है?
लौट आना पड़ता है??

निरी मूर्खता

आओ
जरा इधर आओ
मेरे पास

कभी सूरज को देखा है?
अकेला ही
सारे संसार में उजाला करता है

इतना ही नहीं
रात के दौरान भी
वह
चाँद सितारों की टीम भेज देता है
वैसे भी
कैसी भी मछली हो
नदी तो कभी गंदा नहीं होती

पोखर बनाकर
पानी न सड़ाओ!
मछली को
अपने बहाव में बहने दो प्लीज!

हाँ,
शिकार का इतना ही शौक है अगर
तो कितने साँप हैं
जहर भी मिटेगा
कुछ मांस भी मिलेगा!!


 2. संस्कार

जो छोड़ता ही जाता है अपनी
धरती
न चाहते हुए भी
डूब जाता है समुद्र में

संभव है
भागमभाग में ही उखड़ जाए
दम

इसलिए
जब कभी जान पर बन आए
आदमी को
आत्मा भिड़ा देनी चाहिए

वैसे भी
आप तो मानते ही हैं कि
आत्मा अमर है
अजर है सदैव ही

फिर
बच्चे भी हमें देख रहे हैं कि
अपनी जमीन पर
आखिर कैसे खड़ा रहा जाता है।

 3.हमेशा ही

लोग कहते हैं/रात गई
बात गई

लेकिन
मैं गाता हूँ
जैसा कि पाता हूँ
हमेशा ही/रात ढह जाती है
बात रह जाती है।

 4.घर

दो आदमी हों
या कि सौ देश
कभी-कभी बहस
झगड़े तक भी पहुँच जाती है
युद्ध हो जाते हैं
नरसंहार..........

दुनिया में
केवल घर ही है
जो
रूठे हुए की भी चिन्ता करता है।


सम्पर्क- 
शैलेय
बीटा-24, ऑमैक्स, रूद्रपुर, जिला-ऊधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड-263153
मो0-09760971225


शनिवार, 5 सितंबर 2015

संस्मरण-जब मैं बीड़ी पीता था-रणीराम गढ़वाली



     समकालीन रचनाकारों में अपनी पहचान बना चुके रणीराम गढ़वाली का जन्म 06 जून 1957 को ग्राम मटेला जिला पौड़ी गढ़वाल , उत्तराखण्ड में हुआ था। इनकी कहानियां देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रही हैं। अब तक इनकी प्रकाशित कृतियों में -पखेरू, पतली गली का बंद मकान, खण्डहर, बुराँस के फूल, देवदासी, व शिखरों के बीच (कहानी संग्रह) प्रकाशित। आधा हिस्सा ( लघु कथा संग्रह)  तथा  दो बाल कहानी संग्रह। शीघ्र ही दो कहानी संग्रह मेरी चुनिंदा कहानियां व पिता ऐसे नहीं थे, जनवरी विश्व पुस्तक मेले तक प्रकाशित।

अनुवाद-  कन्नड़, तेलगू ,व असमिया भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद।
सम्प्राप्ति- उत्तरांचल जनमंच पुरस्कार व साहित्यालंकार की उपाधि से सम्मानित।
सम्पादन-  काव्य संग्रह हस्ताक्षर का सम्पादन।
     अभी हाल ही में श्री गढ़वाली जी के बड़े भाई का आकस्मिक निधन हुआ है । शिक्षक दिवस पर शिक्षक सदृश्य भाई को पुरवाई परिवार नमन करता है । प्रस्तुत है संस्मरण- जब मैं बीड़ी पीता था


                      कवि मित्र गणेश गनी की वाल से साभार

      यह घटना तब की है जब मैं स्कूल पढ़ता था। तब मुझे बीड़ी पीने की लत लग गई थी। उस वक्त मुझे यह पता नहीं था कि बीड़ी पीना सेहत के लिए कितनी हानिकारक होती है। ;इसे पीने से कैंसर, टी. बी. व दमा जैसी गम्भीर बीमारियां लग जाती हैं।द्ध जब मेरे पास बीड़ी नहीं होती थी तो मैं चुपके से अपने पिता की जेब में से बीड़ी चुरा लिया करता था। सुबह स्कूल जाते हुए मै आधी बीड़ी पीता और फिर उसे बुझाकर आधी बीड़ी मैं हाफ टाइम में पीता था। पिता के जेब से बीड़ी चुराने की खबर न तो कभी पिता को ही लगी और न ही घर में किसी को पता चला कि मैं बीड़ी पीता हूँ। लेकिन एक बार मेरे बड़े भाई साहब दिलाराम गढ़वाली गाँव आए हुए थे। वे दिल्ली रेलवे में नौकरी करते थे। एक दिन जब वे अपने ससुराल जाने लगे तो उन्होंने मुझे भी साथ चलने को कहा। मैं बड़ा खुश हुआ और उनके साथ चलने के लिए जल्दी से तैयार हो गया था। क्योंकि इससे पहले मैं कभी भी उनके ससुराल नहीं गया था। जब हम दोनों भाई बाजार में पहुँचे तो उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘यहाँ सिगरेट मिलती हैं?’’
    ‘‘हाँ...।’’ मैंने कहा।
    ‘‘कौन-कौन सी...?’’

    मैंने तुरन्त ही उन्हें कुछ नाम बताते हुए कहा, ‘‘पनामा, गोल्डन गोल्ड फ्लैक, कवैंडर्स...विल्स...।’’ और भी कई नाम थे जो अब मुझे याद नहीं हैं। लेकिन जितनी बिकती थी वे सभी बता दिए थे।

    मेरे शब्दों को सुनकर वे मुस्कराते हुए बोले, ‘‘इनमें सबसे अच्छी सिगरेट कौन सी है?’’
    ‘‘गोल्डन गोल्ड फ्लैक।’’ मैंने तत्परता से जवाब दिया।
    भाई साहब ने मेरे बताए अनुसार गोल्डन गोल्ड फ्लैक की एक डिब्बी ले ली थी। बाजार से भाई साहब के ससुराल के लिए चढ़ाई का रास्ता था। इसलिए चढ़ाई चढने के बाद पहाड़ की चोटी पर पहुँचकर जब हम सुस्ताने के लिए बैठे तो भाई साहब ने मेरी ओर सिगरेट की डिब्बी बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ले सिगरेट पी।’’

    उनके इस ब्यव्हार को देखकर मैं घबरा गया था। मेरे चेहरे का रंग उतर गया था। अपनी घबराहट पर काबू पाने की कोशिश करते हुए मैंने कहा, ‘‘दद्दा मैं सिगरेट नहीं पीता।’’
    ‘‘अगर तू सिगरेट नहीं पीता तो बाजार में बिकने वाली सिगरेटों के बारे में तुझे कैसे पता कि गोल्डन गोल्ड फ्लैक अच्छी है? इसका मतलब यह है कि तू सिगरेट पीता है। ले सिगरेट पी? डर मत...। जो काम करना है वह सामने करो। चोरी-चोरी नहीं। पीता है तो पी।’’

   मैंने एक बार दद्दा की ओर देखा और फिर मैं डिब्बी में से सिगरेट निकाल कर पीने लगा तो दद्दा मुस्कराते हुए बोले, ‘‘इसका मतलब है कि तू पिता की जेब में से भी बीड़ियां चुराकर पीता होगा।’’
   मैंने हाँ में अपना सिर हिला दिया था।
   ‘‘चोरी करना बुरी बात है। बीड़ी पीनी है तो पिता से मांगो। छोटी-छोटी चीजें चोरी करते-करते आदमी बड़ी-बड़ी चोरियां करने लगता है। आज के बाद कभी भी पिता की जेब से बीड़ी मत चुराना। मैं तुम्हारे लिए दिल्ली से तुम्हारे नाम पर, तुम्हारे स्कूल के पते पर खर्चा भेज दिया करूँगा।’’

   दद्दा की बातें सुनकर मेरी नजरें झुक गई थी। मैंने सिगरेट तो ले ली थी। लेकिन अब मेरी हालात ऐसी हो गई थी कि न तो मैं सिगरेट ही फेंक पा रहा था और न ही मेरा सिगरेट पीने का मन ही कर रहा था। मैं दद्दा की नजरों में अपने आपको एक अपराधी महसूस करने लगा था। उस वक्त तो जैसे-तैसे मैंने वह सिगरेट पी ही ली। लेकिन मैंने उसी वक्त अपने मन में निश्चय किया कि आज के बाद मैं कभी बीड़ी नहीं पियूँगा, और न ही मैं पिता की जेब से बीड़ी चोरी करूँगा। जब तक दद्दा गाँव में रहे। मैं उनसे दूरियां बनाए रहा। हमेशा एक ही डर रहता था कि वे अन्य लोगों के सामने मुझे बीड़ी पीने के लिए न कह दें।

   उसके बाद जब दद्दा छुट्टियाँ बिताने के बाद वापस दिल्ली लौटे मैंने राहत की सांस ली। लेकिन उसके बाद मैंने आज तक कभी बीड़ी नहीं पी। अब से छः महीने पहले जब मैं दिल्ली में दद्दा के घर उनसे मिलने जाता तो वे इस बात को छेड़ते हुए हँसने लगते थे। उस वक्त मैं उनसे कहता, ‘‘दद्दा...कोई भी बड़ा अपने से छोटे के लिए यह नहीं कहता कि बीड़ी पी और आपने मुझे सिगरेट पिलवा दी।’’

   दद्दा हँसते हुए कहते, ‘‘समझदार के लिए इशारा ही काफी होता है। प्यार से जो काम होता है वह जोर-जबरदस्ती से नहीं होता। मैं तुझे थप्पड़ मारता तो तू आज भी बीड़ी पी रहा होता। मुझे पूरा यकीन था कि तू अब फिर कभी बीड़ी नहीं पिएगा। और वही हुआ जो मैं चाहता था।’’

   आज दद्दा नहीं हैं। लेकिन दद्दा की बातें व उनकी यादें मेरे लिए प्रेरणास्रोत बनकर मेरे जीवन को सींच रही हैं।

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