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शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

सुरेश सिंह की गढ़वाली कविता : गों की याद






सोचणूं छो मांजी बैठी मैं अपड़ा डेरा मा
ओंड़ लगीं छ याद मांजी अपड़ा गों गुठ्यार की
तुम्हारु मिथैं खांणू खलैक स्कूल भेजणुं
फिर बाठ मा लेंण क एै जांणू
आज ओंणीं छ याद मांजी गों विड्वाल सेरा की

तुम्हारु मिथैं अपड़ा हाथ न खलाणूं
दिन भर दोर-ढकी भीतर मा सिलाणूं
धांड -धंधा करीक मांजी ओंदा थैं तुम घोर
सरासर चुल्हू जगैक तुम्हारु खांणु बनाणुं
झोली झंगोरा मा थै रसांण, अर भ्वीम बैठिक खांणू
आज ओंणीं छ याद मांजी अपणीं स्यूं सार्यों की

कन  खंलोंदी थैं मांजी लोंण मा काखड़ी
आग मा भड़ेक कोदा की बालड़ी
सोंण -भादों मा पकीं मंगुरी बाठा की सग्वाड़ी
अफू विघेक ल्योंदी थैं मां सरासर तोड़ी
आज ओंणीं छ याद मांजी गाथ भरीं रोठ्यो की

भाई -बैणों की हंसी मजाक चोक विड़वाल उखर्याली मा
साट्यों की कुटै ह्वेंदी थै चाची-बढ़ी की गिंजाल्योन
कन रसाण थै मांजी तिल ,चीनी और भंगजीर मा
आज ओंणीं छ याद मांजी चुल्हा खांदी अर मंगशीर की

कन रसांण थै मांजी बढ़ी जी की कोदा रोठ्यों मां
तिल-म्वर्या की चटणी अर लैंदी गोड़ी का दूध मा
गाथ की गथ्वाणीं अर छोल्यों का पांणी मा
आज ओंणीं छ याद मांजी लैंदी भैंसी -गोड़ी की

रोट-अरसा बंणदा थैं मां,गों की ब्यो -बरात्यों मा
खांणू खांणा की रीति रिवाज,मालू का पत्तों मा
काली दास की पकोड़ी अर घर्या चोंलू का भात मा
आज ओंणीं छ याद मांजी , बार -त्योहार अर शरादू की


ढोल-दमाऊ अर मुसख्याबाजू, ब्यो -बरात्यों की शान छा
देवतों कू नाचणूं अर पूजा-पिइे कू मान छा
ब्योली-बर की डोली -पांलकी ,स्वरा-भारों की भेट छा
आज ओंणीं छ याद मांजी , ढोल-दमाऊ अर ओज्यों की

चैत का महीना की फुल-फुलेर ,देहली देहल्यो कू खयाल छा
फ्योंली अर घुघती का फूल , महीना भर कू त्योहार छा
द्यो-ध्याण्यों कू मैत आंणू थोला-मेलों कू बुलावा छा
आज ओंणीं छ याद मांजी , थोला-मेलों का नोंऊ की

कातिक महीना की भैला-बग्वाली,दीया-बत्ती कू त्योहार छा
दंशू-विदेशू मा गंया नोंना,घर ओंणा की तैयारी मा
बुढ्या बै-बाबू की आंखी लगीं , दूर-दराज बाठ्यों मा
आज ओंणीं छ याद मांजी ,अपणीं चोक-डिडाल्यों की

घर ओंणू छो मांजी मैं भी, छोड़ी यूं शैहरु
भीड़-भिड़ाका अर गाड़ी का हल्ला न पटगै ह्वेग्यों बैरु
यूं शहरु सी बडिया हमारी ,मथल्या छान बडिया छ
आज ओंणीं छ याद मांजी , अपड़ी डांडी काठ्यों की।

सुरेश सिंह
एम एस सी द्वितीय वर्ष 
मोबा0-9568995137