जन्म:-25 दिसम्बर 1980, फरीदपुर, हुसेनगंज, फतेहपुर, उ0प्र0
शिक्षा:- एम0ए0(हिन्दी), बी0एड0।
लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। तीन-चार वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा लगभग इतने ही वर्षों तक इधर-उधर ’भटकने‘ के पश्चात सम्प्रति अध्यापन के साथ-साथ कवितायें, कहानियां, लघु कथायें एवं समसामायिक लेख आदि का लेखन
प्रकाशनः-कवितायें, कहानियां, लघु कथायें एवं समसामायिक लेख, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं ब्लाॅगों में प्रकाशन के अलावा अबतक दो कविता संग्रह प्रकाशित।
प्रेम नंदन की दो कविताएं-
1-निर्जीव होते गांव
हंसिये चीखते हैं
खुरपियाँ चिल्लाती हैं
फावड़े रो रहे हैं ।
हल, जुआ, पाटा,
कुचले जा रहे हैं
ट्रैक्टरों, कल्टीवेटरों के नीचे ।
धकेले जा रहे हैं गाय-बैल ,
भैंस-भैसें कसाई-घरों में ।
मूली , गाजर , धनिया, टमाटर ,
गोभी ,आलू, प्याज, लहसुन ,
दूध ,दही, मक्खन, घी ,
भागे जा रहे हैं
मुँह-अँधेरे ही शहर की ओर
और किसानों के बच्चे
ताक रहे हैं इन्हें ललचाई नजरों से !
खेतों पर काम करने में
अपमान समझने वाली
खेतिहरों की पूरी नौजवान पीढ़ी
खच्चरों की तरह पिसती है
रात-दिन शहरों में
गालियों की चाबुक सहते हुए ।
गाँव की जिंदगी
नीलाम होती जा रही हैं
शहर के हाथों ;
और धीरे- धीरे ...
निर्जीव होते जा रहे हैं गाँव !
2-बाजार
बाजार भरा है
खचाखच सामानों से
मन भरा है
उन सबको खरीदने के
अरमानों से
एक को खरीदता
दूसरी छूट जाती
दूसरे को खरीदता
तीसरे की कमी खलती
इस तरह
खत्म हो जाते हैं
पास के सारे पैसे
घर भर जाते लबालब सामानों से
पर, मन के किसी कोने में
कुण्डली मारे बैठा
अतृप्ति का कीड़ा
प्यासा है अब भी।
अजीब-सा रीतापन
कचोटता रहता मन को
खरीदकर लाई गई सभी इच्छाएँ
लगने लगती तुच्छ,
अगली सुबह फिर जा पहुँचता
बाजार
फिर खरीदता
अपनी कल की छूटी हुई इच्छाएं
पर, फिर भी रह जातीं
कुछ अधूरी वस्तुएॅ
जिन्हें नहीं खरीद पाता ।
अधूरी इच्छाओं की अतृप्ति
नहीं भोगने देती
पहले से खरीदी हुई
किसी भी वस्तु का सुख !
सम्पर्क -उत्तरी शकुन नगर , सिविल लाइन्स , फतेहपुर,
उ0प्र0-212601। दूरभाषः-09336453835