रविवार, 8 जनवरी 2017

आग भरो ठंडे शब्दों में - प्रेम नंदन


 










 जन्म - 25 दिसम्बर 1980, फरीदपुर, हुसेनगंज, फतेहपुर (उ0प्र0) |
शिक्षा - एम0ए0(हिन्दी), बी0एड0। पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा।
परिचय - लेखन और आजीविका की शुरुआत पत्रकारिता से। तीन-चार   वर्षों तक पत्रकारिता करने तथा लगभग इतने ही वर्षों तक इधर-उधर ‘भटकने’ के पश्चात सम्प्रति अध्यापन|
प्रकाशन- कवितायें, कहानियां एवं  लघुकथायें विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं ब्लॉगों में प्रकाशित।


1-तुम्हारा रंग




हर पल

हर दिन

हर मौसम में

बदलते रहते हो रंग मेरे दोस्त !

पता है तुम्हें ...

आजकल 

क्या है तुम्हारा रंग ?
                                    

2- आग भरो ठंडे शब्दों में

आग भरो ठंडे शब्दों में

बढ़ने दो भाषा का ताप

ठंडी भाषा

ठंडे शब्द 

हो जाते हैं घोर नपुंसक

इनसे बढ़ता है संताप

अगर भगाना है अॅधियारा 


खुश रखना समाज सारा 

तो कवि सुनो और ये समझो

आग भरो ठंडे शब्दों में

बढ़ने दो भाषा का ताप !

संपर्क – उत्तरी शकुन नगर, सिविल लाइन्स, फतेहपुर, उ०प्र०-212601,
दूरभाष– 09336453835
ईमेल - premnandan10@gmail.com
ब्लॉग – aakharbaadi.blogspot.in

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