रविवार, 23 सितंबर 2018

ईश्वर की अनुपस्थिति में एवं अन्य कविताएं :आरसी चौहान





 बहुत दिनों बाद उपस्थित हूं कुछ कविताओं के साथ 


1- ईश्वर की अनुपस्थिति में

ऐसी हो धरती
जहां भोरहरी किरणों सा मुलायम
और मां की ममता की तरह
पवित्र हों आदमी

उनके अकुलाए हाथ
बनाने में हों माहिर
खुशियों का मानचित्र

हवाओं को लपेट कर
रख सकें सिरहाने
ऐसा हुनर हो उनमें

जीवन के घाटों पर
बांट सके एक दूसरे का सुख दुख
और जुड़ा सकें एक ही छाया तले
ऐसी हो धरती
ईश्वर की अनुपस्थिति में ।





2-खूबसूरत धरती के बारे में

वे लिख रहे हैं सदियों से
और नहीं लिख पा रहे हैं
आदमी को आदमी

वे लिखना चाहते हैं
नदियों को नदियां
और नदियां हो जा रही हैं रेत

वे पहाड़ों के बारे में भी
चाहते हैं लिखना
उनमें उगे जंगलों
और झाड़ियों के बारे में भी
कि
देखते ही देखते बदल जा रहे हैं
आग के गोलों में पहाड़

पृथ्वी को लिखना चाहते हैं पृथ्वी
कि पृथ्वी घूमते हुए
रणभूमि में बदल जा रही है

बच्चे जिनपर अभी तक लिखी गयी हैं
बहुत सारी कविताएं
उन्हें फूलों की तरह मुस्कराते
हिरन की तरह उछलते कूदते
खरगोश के बालों की तरह मुलायम
बताया गया है

यहां तक कि
ये बच्चे तो
दो देशों को बांटने वाली सरहदों को भी 
नहीं जानते
बंदूक , बारुद और बमों से भी अनभिज्ञ
ये नहीं जानते
युद्ध में मारे गये अपने पिताओं
और उनके हन्ताओं को
छल कपट और ईर्ष्या द्वेष का गणित
तो बिल्कुल नहीं समझते
ये तितलियों की तरह उड़ना चाहते हैं
सपनों में परियों से बतियाना चाहते हैं

इनकी प्रार्थनाओं में
आदमी को देवता
नदियों को बलखाती हुई
पहाड़ों को आसमान चूमता हुआ
और पृथ्वी को लिखा है जननी
हम इनके भूगोल को कब समझ पायेंगे
और लिख पायेंगे एकदिन एक
खूबसूरत धरती के बारे में ?



 3- बहुत दिनों से



बहुत दिनों से लिखना चाहता हूं

एक कविता

स्कूल जाते बच्चों पर

जो दुनिया को फूल की तरह

खिलाना चाहते हैं

और इकट्ठा हों रहे हैं

तमाम तमाम स्कूलों में

हर सुबह

हरसिंगार के फूलों की तरह

स्कूलों के फेफड़ों में

भर रहें हैं ताजी हवा से महकते

और स्कूल हो रहे स्पंदित



एक और कविता लिखना चाहता हूं

किसानों के लिए

जिनके हल के फाल तोड़ रहे सन्नाटा

कठोर चट्टानों के

फड़फड़ाते पन्नों पर

दर्ज कर रहे बीजों के एक एक अक्षर

ओर पृथ्वी को रंग देना चाहते हैं

हरियाई फसलों से



एक कविता और लिखना चाहता हूं

सरहद पर जूझते जवानों के लिए

जिनका होना

हमारे देश का सुरक्षित होना है



पर जो बच्चे

अभी स्कूलों से लौटे नहीं हैं

जिन किसानों का कलेवा

उनके हलक के नीचे उतरा नहीं है

घर वापसी के लाख वादों के बावजूद

जो जवान अब कभी लौट नहीं सकते

उन पर कविताएं न लिख पाने के लिए

क्षमा चाहता हूं देशवासियों।


 संपर्क -आरसी चौहान (जिला समन्वयक - सामु0 सहभागिता )
        जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी आजमगढ़ उत्तर प्रदेश 276001
        मोबाइल -7054183354
        ईमेल- puravaipatrika@gmail.com


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