गुरुवार, 9 अगस्त 2018

अदनान कफ़ील ‘दरवेश’ की कविताएं




जन्म :30 जुलाई 1994, गड़वार, बलिया, उत्तर प्रदेश
शिक्षा: कंप्यूटर साइंस आनर्स (स्नातक), दिल्ली विश्वविद्यालय
सम्प्रति: जामिया मिल्लिया इस्लामिया में अध्ययनरत
प्रकाशन: हिंदी की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं तथा वेब ब्लॉग्स पर कविताएँ प्रकाशित
अदनान कफ़ील दरवेश से वैचारिक मुलाकाम वागार्थ पढ़ते हुए हुई थी।और फिर चल पड़ा हमारे उनके बिच बातों का सिलसिला। आप तो बस उनकी कविताओं को पढ़ते ही जाइये । कविताएं अपने आप ही आपसे संवाद करेंगी। इनकी कविताओं को पढ़ने के बाद संभावनाएं और बढ़ गई हैं इस युवा रचनाकार से भविष्य में। अभी हाल ही में भारत भूषणअग्रवाल सम्मान देने की घोषणा की गई है दरवेश को ढ़ेर सारी बधाइयों के साथ प्रस्तुत है इनकी कविताएं

अदनान कफ़ील ‘दरवेश’ की कविताएं
 
1-घर

 
ये मेरा घर है
जहाँ रात के ढाई बजे मैं
खिड़की के क़रीब
लैंप की नीम रौशनी में बैठा
कविता लिख रहा हूँ
जहाँ पड़ोस में लछन बो
अपने बच्चों को पीट कर सो रही है
और रामचनर अब बँसखट पर ओठंग चुका है
अपनी मेहरारू-पतोहू को
दिन भर दुवार पर उकड़ूँ बैठकर
भद्दी गालियाँ देने के बाद...

जहाँ बाँस के सूखे पत्तों की खड़-खड़ आवाज़ें आ रही हैं
जहाँ एक कुतिया के फेंकरने की आवाज़
दूर से आती सुनाई पड़ रही है
जहाँ पड़ोस के
खँडहर मकान से
भकसावन-सी गंध उठ रही है
जहाँ अनार के झाड़ में फँसी पन्नी के फड़फड़ाने की आवाज़
रह-रह कर सुनाई दे रही है
जहाँ पुवाल के बोझों में कुछ-कुछ हिलने का आभास हो रहा है
जहाँ बैलों के गले में बँधी घंटियाँ
धीमे-धीमे स्वर में बज रही हैं
जहाँ बकरियों के पेशाब की खराइन गंध आ रही है
जहाँ अब्बा के तेज़ खर्राटे
रात की निविड़ता में ख़लल पैदा कर रहे हैं
जहाँ माँ
उबले आलू की तरह
खटिया पर सुस्ता रही है
जहाँ बहनें
सुन्दर शहज़ादों के स्वप्न देख रही हैं।
अचानक यह क्या ?
चुटकियों में पूरा दृश्य बदल गया !
मेरे पेट में तेज़ मरोड़ उठ रहा है
और मेरी आँखें तेज़ रौशनी से चुँधिया रही है
तोपों की गरजती आवाज़ों से मेरे घर की दीवारें थर्रा रही हैं
और मेरे कान से ख़ून बह रहा है
अब मेरा घर
किसी फिलिस्तीन और सीरिया और ईराक़
और अफ़ग़ानिस्तान का कोई चौराहा बन चुका है
जहाँ हर मिनट एक बम फूट रहा है
और सट्टेबाजों का गिरोह नफ़ीस शराब की चुस्कियाँ ले रहा है।
अब आसमान से राख झड़ रही है
दृश्य बदल चुका है
लोहबान की तेज़ गंध आ रही है
अब मेरा घर
उन उदास-उदास बहनों की डहकती आवाज़ों और सिसकियों से भर चुका है
जिनके बेरोज़गार भाई पिछले दंगों में मार दिए गए।
मैं अपनी कुर्सी में धँसा देख रहा हूँ दृश्य को फिर बदलते हुए
क्या आप यक़ीन करेंगे ?
जंगलों से घिरा गाँव
जहाँ स्वप्न और मीठी नींद को मज़बूत बूटों ने
हमेशा के लिए कुचल दिया है
जहाँ बलात्कृत स्त्रियों की चीख़ें भरी पड़ी हैं
जिन्हें भयानक जंगलों या बीहड़ वीरानों में नहीं
बल्कि पुलिस स्टेशनों में नंगा किया गया।
मेरा यक़ीन कीजिये
दृश्य फिर बदल चुका है
आइये मेरे बगल में खड़े होकर देखिये
उस पेड़ से एक किसान की लाश लटक रही है
जो क़र्ज़ में गले तक डूब चुका था
उसके पाँव में पिछली सदी की धूल अब तक चिपकी है
जिसे साफ़ देखा जा सकता है
बिना मोटे चश्मों के।
मेरा यक़ीन कीजिये
हर क्षण एक नया दृश्य उपस्थित हो रहा है
और मेरे आस-पास का भूगोल तेज़ी से बदल रहा है
जिसके बीच
मैं बस अपना घर ढूँढ रहा हूँ... 


2- बरसात और गाँव


आज रात भर होगी बारिश
आज रात भर होगी बारिश
आज रात भर होगी बारिश
और मेरी स्मृति में कोई छप्परनुमा मकान टपकेगा
टप्-टप्-टप्
हम मुक्कियों में ईंट के टुकड़े भरेंगे
और खिड़कियों पर पीली पन्नियाँ कस-कस के बाँधेंगे
बारिश का पानी हमें रात भर भयभीत करेगा
बिजली की कड़कती आवाज़ से हम रात भर काँपेंगे
और उकडूं बैठे रहेंगे
इस तरह ठिठुरते और सिकुड़ते हुए पूरी रात कटेगी
और हम सोचेंगे कि अगली बरसात तक
इस कमरे को
किस तरह रहने लायक बना दें...


3-मेरी दुनिया के तमाम बच्चे

वो जमा होंगे एक दिन  और खेलेंगे एक साथ मिलकर
वो साफ़-सुथरी दीवारों पर
पेंसिल की नोक रगड़ेंगे
वो कुत्तों से बतियाएँगे
और बकरियों से
और हरे टिड्डों से
और चीटियों से भी..
वो दौड़ेंगे बेतहाशा
हवा और धूप की मुसलसल निगरानी में
और धरती धीरे-धीरे
और फैलती चली जाएगी
उनके पैरों के पास..
देखना !
वो तुम्हारी टैंकों में बालू भर देंगे
और तुम्हारी बंदूकों को
मिट्टी में गहरा दबा देंगे
वो सड़कों पर गड्ढे खोदेंगे और पानी भर देंगे
और पानियों में छपा-छप लोटेंगे...
वो प्यार करेंगे एक दिन उन सबसे
जिससे तुमने उन्हें नफ़रत करना सिखाया है
वो तुम्हारी दीवारों में
छेद कर देंगे एक दिन
और आर-पार देखने की कोशिश करेंगे
वो सहसा चीखेंगे !
और कहेंगे-
“देखो ! उस पार भी मौसम हमारे यहाँ जैसा ही है”
वो हवा और धूप को अपने गालों के गिर्द
महसूस करना चाहेंगे
और तुम उस दिन उन्हें नहीं रोक पाओगे !
एक दिन तुम्हारे महफ़ूज़ घरों से बच्चे बाहर निकल आयेंगे
और पेड़ों पे घोंसले बनाएँगे
उन्हें गिलहरियाँ काफ़ी पसंद हैं
वो उनके साथ बड़ा होना चाहेंगे..
तुम देखोगे जब वो हर चीज़ उलट-पुलट देंगे
उसे और सुन्दर बनाने के लिए..
एक दिन मेरी दुनिया के तमाम बच्चे
चीटियों, कीटों
नदियों, पहाड़ों, समुद्रों
और तमाम वनस्पतियों के साथ मिलकर धावा बोलेंगे
और तुम्हारी बनाई हर चीज़ को
खिलौना बना देंगे..

संपर्क-
 ग्राम/पोस्ट- गड़वार
 ज़िला- बलिया, उत्तर प्रदेश
 पिन: 277121  
मोबा 0-09990225150
ईमेल: thisadnan@gmail.com


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