रविवार, 8 सितंबर 2013

पूनम शुक्ला की कविताएं


                                                        पूनम शुक्ला
जन्म - ज्येष्ठ पूर्णिमा ,२०२९ विक्रमी । 
26 जून 1972
जन्म स्थान - बलिया , उत्तर प्रदेश 

शिक्षा - बी ० एस ० सी० आनर्स ( जीव विज्ञान ), एम ० एस ० सी ० - कम्प्यूटर साइन्स ,एम० सी ० ए ० । चार वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों में कम्प्यूटर शिक्षा प्रदान की ,अब कविता,गीत ,लेख ,संस्मरण,लघुकथा लेखन मे संलग्न ।
कविता संग्रह " सूरज के बीज " अनुभव प्रकाशन , गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित । सनद,सिताब दियरा,पुरवाई,बीईंग पोएट ईपत्रिका ,जनसत्ता दिल्ली,जन-जन जागरण भोपाल,जनज्वार,सारा सच,लोकसत्य,सर्वप्रथम ,गुड़गाँव मेल में रचनाएँ प्रकाशित ।पाखी,समालोचन ,फर्गुदिया ब्लाग,शब्दांकन,नव्या,दैनिक जागरण में प्रतीक्षित ।
1. शार्ट कट

शार्ट कट
हाँ है ये भी 
एक रास्ता
लक्ष्य पाने का
पर ऐसा
जिसकी जड़ें
चट कर दी गई हों
दीमकों द्वारा
जिसका न हो
कोई आधार
बस लुढ़कता,गिरता,
काँपता,सिसकता,
लार टपकाता,
डरता,कनखियों से
लोगों को निहारता,हारता
किसी भी तरह पहुँच गया हो
और गिनता हो पल
कि कब तक 
खड़ा रह पाऊँगा मैं,
अब हुआ धराशाई
अब लुढ़का,गिरा,पड़ा
कुचला जाऊँगा मैं ।

तो क्यों बनती हैं नीतियाँ
शार्ट कट की
क्यों बनती हैं सीढ़ियाँ
शार्ट कट की
लम्बी ही होती जा रही है लिस्ट
अरे कोई लगाम क्यों नहीं लगाता ?
शार्ट कट ही तो है कि
जगह-जगह रिजर्व 
कर दी गईं हैं सीटें
कमजोर को मजबूत जो बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बलत्कृत को 
कर दिया जाता है पुरस्कृत
उन्हें देवियाँ जो बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बाँट दिए जाते हैं
अनपढ़ों में लैपटाप
उन्हें जल्दी इंजीनियर बनाना है
शार्ट कट ही तो है कि
बच्चों में बाँट दिया जाता है
मिड डे मील
जल्दी गरीबी हटाना है ।

नहीं !
नहीं होगा बदलाव
ऐसे कभी नहीं 
होगा बदलाव
तय करना होगा
एक लंबा रास्ता
एक साफ सुथरा रास्ता
और तब जो लक्ष्य मिलेगा न
उसकी जडों ने
पकड़ रखा होगा
मजबूती से धरा को
और तब
बच्चा लैपटाप बेचने
बाजार नहीं जाएगा
अप्रशिक्षित डाक्टर द्वारा
नहीं होगी मौंतें
औरतें नहीं होगी बलत्कृत
अयोग्य शिक्षक नहीं धरेगा
कमजोर नींव
और तब
शायद मिड डे मील की भी
जरूरत न पड़े ।

2. एसिड अटैक

उजबुजाता
छनछनाता
तेज आक्रोश से भरा
चुस्त दुरुस्त द्रव्य
एसिड भरा हुआ है 
बोतलों में
जो साफ कर देता है
चकत्ते,धब्बे
चमका देता है
घर,आँगन,संसद
और तुम फेंक देते हो
उन्हें चेहरों पर
मासूमों पर
कमजोरों पर ।
फेकना है तो
फेको न एसिड
जो भरा है
तुम्हारे भीतर
क्यों ? भ्रष्टाचार देखकर
बनता है न एसिड
बलात्कार देखकर
भीतर कुछ खौलता 
ही होगा
गल्तियाँ देखकर 
बड़े अधिकारियों की
आक्रोश से 
भर जाते हो कि नहीं ?
नेताओं के निकम्मेपन पर
भीतर कुछ
उजबुजाता तो
जरूर होगा
तो क्यों नहीं 
करते अटैक ?
अपने भीतर बनते
एसिड से करो अटैक
ये एसिड चमका देगा
समाज,संसद,देश ।

पता - 50 डी ,अपना इन्कलेव ,रेलवे रोड,गुड़गाँव - 122001
मोबाइल - 9818423425


7 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा कल सोमवार [09.09.2013]
    चर्चामंच 1363 पर
    कृपया पधार कर अनुग्रहित करें
    सादर
    सरिता भाटिया

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  2. वर्तमान परिदृश्य के सच से साक्षात्कार कराती रचना....
    साभार.....

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  3. अच्छी रचनायें
    -नित्यानंद

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