संपादिका ऋता शेखर का हिंदी हाइगा के लिए महायज्ञ-"हिंदी-हाइगा"
-डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
हाइकु, हिंदी हाइकु, हाइगा और अब हिंदी हाइगा. जापान से नि:सृत यह विधा अब केवल जापानी भाषा की ही नहीं रह गयी, बल्कि दुनिया की अन्य भाषाएँ भी इस पर अपना प्यार छलका रही हैं. जिस प्रकार अरबी भाषा की काव्य-विधा ग़ज़ल ने अपने मोहपाश में विभिन्न भाषाओँ को क़ैद कर लिया, वही कशिश हाइकु में भी है. हिंदी के साहित्यकार भी हाइकु काव्य-विधा के आकर्षण, भाव ग्राह्य-क्षमता, गंभीरता तथा गहराई से प्रभावित हुए और हाइकु हिंदी साहित्य में उपस्थित हो गया. आज विपुल मात्रा में हाइकु लिखे जा रहे हैं. पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं. नए-नए संकलन आ रहे हैं. आज हाइकु पर गोष्ठियां व सेमिनार आयोजित हो रहे हैं। ये सब निश्चित रूप से हाइकु की दिनोंदिन बढ़ती जा रही लोकप्रियता के प्रमाण हैं.
जापानियों की हर तकनीक का विकास नैनो टेक्नोलोजी अर्थात सूक्ष्म तकनीक पर आधारित है और उनके निरंतर विकास करने व गतिशील होने का सर्वाधिक प्रबल प्रमाण यह 'सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की ओर प्रवाह' है। संभवत: इसी सोच का परिणाम हाइकु भी रहे होंगे. जब जापानी साहित्य के अभियंताओं ने सूक्ष्मतम छंद की कल्पना की होगी तो निश्चित रूप से 'गागर में सागर' या 'बिंदु में सिन्धु' की तलाश में हाइकु ने अपना आकार ग्रहण कर लिया होगा. इस सूक्ष्मतम छंद को प्रतिष्ठा प्रदान करने का श्रेय मात्सुओ बाशो (१६४४-९४) को जाता है. सत्रहंवी सदी में जापान में उद्भूत इस छंद को वर्तमान में अनेक भाषाओँ ने आत्मसात कर लिया है. भारत में हाइकु लाने का श्रेय कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर को जाता है. वर्तमान में हिंदी ने हाइकु के साथ-साथ हाइगा का भी अनुकरण किया है. हाइगा जापानी चित्रकला तकनीक की एक विशिष्ट शैली है, जिसका तात्पर्य है- 'चित्र हाइकु'. इसे हम इस प्रकार से भी कह सकते हैं की हाइकु को उसी के अनुकूल चित्र के साथ समायोजित कर देने की कला हाइगा है. हाइगा की शुरुवात भी सत्रहंवी सदी में जापान में ही हुई. अत: हाइगा को हाइकु आधारित चित्रमय कविता कह सकते हैं.
हिंदी में हाइकु के जितने प्रयास हुए हैं, उस दृष्टि से हाइगा के प्रयास बहुत नहीं हुए हैं. हिंदी हाइगा के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास व कार्य अभी भी न्यून हैं. इस क्रम में सुश्री ऋता शेखर 'मधु' का नाम आज की तारीख में अग्रणी है, जिन्होंने इंटरनेट में एक ब्लॉग (www.hindihaiga.blogspot.com) के माध्यम से हिंदी हाइगा के उन्नयन का बीड़ा उठाया है. विभिन्न हाइकुकारों के हाइकुओं को हाइगा का रूप प्रदान कर ब्लॉग के माध्यम से पूरी दुनिया के समक्ष परोसने का यह श्रमसाध्य कार्य वह पूरी तन्मयता एवं सक्रियता से पिछले दो वर्षों से निरंतर कर रही हैं. उनकी इस लगन एवं समर्पण का ही प्रतिफल है कि उनके संपादन में 'हिंदी हाइगा' पुस्तक का प्रकाशन संभव हो सका. जहाँ तक मेरी जानकारी है हिंदी हाइगा के सन्दर्भ में इस प्रकार का यह प्रथम प्रयास है। यह एक समवेत संकलन है, जिसमें देश-विदेश के हिंदी के छत्तीस उत्कृष्ट हाइकुकारों के चुनिन्दा हाइगा सम्मिलित किये गए हैं। वरिष्ठ हाइकु-लेखिका एवं उत्कृष्ट चित्रकारा ऋता शेखर जी के संपादन एवं संयोजन में प्रकाशित यह पुस्तक 'हिंदी हाइगा' अपने आप में अनूठी एवं विशिष्ट है.
हिंदी हाइगा के क्षेत्र में छिटपुट प्रयासों से दूर यह पुस्तक एकदिशीय लक्ष्य एवं पूर्ण समर्पण का परिणाम हैं. इस सार्थक परिणाम का पूरा श्रेय नि:संदेह 'मधु' जी को जाता है, जिन्होंने एक-एक हाइकुरूपी मनकों को इस प्रकार से इस मालारूपी पुस्तक में पिरोया है कि इस पुस्तक का पाठक-दर्शक पढ़कर-देखकर न केवल 'वाह-वाह' कह उठता है, बल्कि दांतोंतले उंगली दबाने को भी मज़बूर हो जाता है. उत्कृष्ट कार्य सदैव स्वयं बोलता है और यही कार्य इस हिंदी हाइगा पुस्तक में भी किया गया है, जिसकी आभा से चकाचौंध हुए बिना रह पाना मुश्किल है.
इस संकलन में जहाँ एक ओर हिंदी हाइकु के शलाका-पुरुष रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु' जी के हाइगा हैं, वहीँ वरिष्ठ हाइकु-लेखिकाओं डॉ. सुधा गुप्ता, डॉ. हरदीप संधू व डॉ. भावना कुंवर के भी हाइगा भी शामिल हैं. कुछ अन्य स्थापित हाइकुकारों एवं प्रतिभावान नए हाइकूकारों को भी इस संकलन में स्थान मिला है. हाइकु के अन्य स्थापित रचनाकारों में स्वयं संपादिका ऋता शेखर 'मधु', डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति, रवि रंजन, डॉ. अनीता कपूर तथा प्रियंका गुप्ता आदि के नाम प्रमुख हैं. हाइकुकार दिलबाग विर्क, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, रचना श्रीवास्तव, डॉ. जेन्नी शबनम, रश्मिप्रभा, नवीन सी. चतुर्वेदी तथा एम. कुश्वंश आदि के हाइगा भी संकलन की आभा में वृद्धि करते हैं.
बड़े आकार की तिरपन पृष्ठ की यह पुस्तक विद्या प्रेस, पटना से प्रकाशित है, जिसके सभी पृष्ठ पूर्णतया रंगीन एवं लेमिनेटेड हैं. पुस्तक का मूल्य पांच सौ उञ्चास रुपये मात्र है.
हिंदी हाइगा के विकास-क्रम में इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए सुश्री ऋता शेखर 'मधु' जी को कोटिक बधाइयाँ। हिंदी हाइकु और हिंदी हाइगा जगत को भविष्य में भी उनसे इस तरह के और संकलनों की अपेक्षा रहेगी।
संपर्क-
अध्यक्ष- अन्वेषी संस्था
24/18, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)-212601
वार्तासूत्र- 9839942005, 8574006355
ई-मेल: doctor_shailesh@rediffmail.com
-डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'
हाइकु, हिंदी हाइकु, हाइगा और अब हिंदी हाइगा. जापान से नि:सृत यह विधा अब केवल जापानी भाषा की ही नहीं रह गयी, बल्कि दुनिया की अन्य भाषाएँ भी इस पर अपना प्यार छलका रही हैं. जिस प्रकार अरबी भाषा की काव्य-विधा ग़ज़ल ने अपने मोहपाश में विभिन्न भाषाओँ को क़ैद कर लिया, वही कशिश हाइकु में भी है. हिंदी के साहित्यकार भी हाइकु काव्य-विधा के आकर्षण, भाव ग्राह्य-क्षमता, गंभीरता तथा गहराई से प्रभावित हुए और हाइकु हिंदी साहित्य में उपस्थित हो गया. आज विपुल मात्रा में हाइकु लिखे जा रहे हैं. पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं. नए-नए संकलन आ रहे हैं. आज हाइकु पर गोष्ठियां व सेमिनार आयोजित हो रहे हैं। ये सब निश्चित रूप से हाइकु की दिनोंदिन बढ़ती जा रही लोकप्रियता के प्रमाण हैं.
जापानियों की हर तकनीक का विकास नैनो टेक्नोलोजी अर्थात सूक्ष्म तकनीक पर आधारित है और उनके निरंतर विकास करने व गतिशील होने का सर्वाधिक प्रबल प्रमाण यह 'सूक्ष्म से सूक्ष्मतम की ओर प्रवाह' है। संभवत: इसी सोच का परिणाम हाइकु भी रहे होंगे. जब जापानी साहित्य के अभियंताओं ने सूक्ष्मतम छंद की कल्पना की होगी तो निश्चित रूप से 'गागर में सागर' या 'बिंदु में सिन्धु' की तलाश में हाइकु ने अपना आकार ग्रहण कर लिया होगा. इस सूक्ष्मतम छंद को प्रतिष्ठा प्रदान करने का श्रेय मात्सुओ बाशो (१६४४-९४) को जाता है. सत्रहंवी सदी में जापान में उद्भूत इस छंद को वर्तमान में अनेक भाषाओँ ने आत्मसात कर लिया है. भारत में हाइकु लाने का श्रेय कविगुरु रवीन्द्रनाथ टैगोर को जाता है. वर्तमान में हिंदी ने हाइकु के साथ-साथ हाइगा का भी अनुकरण किया है. हाइगा जापानी चित्रकला तकनीक की एक विशिष्ट शैली है, जिसका तात्पर्य है- 'चित्र हाइकु'. इसे हम इस प्रकार से भी कह सकते हैं की हाइकु को उसी के अनुकूल चित्र के साथ समायोजित कर देने की कला हाइगा है. हाइगा की शुरुवात भी सत्रहंवी सदी में जापान में ही हुई. अत: हाइगा को हाइकु आधारित चित्रमय कविता कह सकते हैं.
हिंदी में हाइकु के जितने प्रयास हुए हैं, उस दृष्टि से हाइगा के प्रयास बहुत नहीं हुए हैं. हिंदी हाइगा के क्षेत्र में किये जा रहे प्रयास व कार्य अभी भी न्यून हैं. इस क्रम में सुश्री ऋता शेखर 'मधु' का नाम आज की तारीख में अग्रणी है, जिन्होंने इंटरनेट में एक ब्लॉग (www.hindihaiga.blogspot.com) के माध्यम से हिंदी हाइगा के उन्नयन का बीड़ा उठाया है. विभिन्न हाइकुकारों के हाइकुओं को हाइगा का रूप प्रदान कर ब्लॉग के माध्यम से पूरी दुनिया के समक्ष परोसने का यह श्रमसाध्य कार्य वह पूरी तन्मयता एवं सक्रियता से पिछले दो वर्षों से निरंतर कर रही हैं. उनकी इस लगन एवं समर्पण का ही प्रतिफल है कि उनके संपादन में 'हिंदी हाइगा' पुस्तक का प्रकाशन संभव हो सका. जहाँ तक मेरी जानकारी है हिंदी हाइगा के सन्दर्भ में इस प्रकार का यह प्रथम प्रयास है। यह एक समवेत संकलन है, जिसमें देश-विदेश के हिंदी के छत्तीस उत्कृष्ट हाइकुकारों के चुनिन्दा हाइगा सम्मिलित किये गए हैं। वरिष्ठ हाइकु-लेखिका एवं उत्कृष्ट चित्रकारा ऋता शेखर जी के संपादन एवं संयोजन में प्रकाशित यह पुस्तक 'हिंदी हाइगा' अपने आप में अनूठी एवं विशिष्ट है.
हिंदी हाइगा के क्षेत्र में छिटपुट प्रयासों से दूर यह पुस्तक एकदिशीय लक्ष्य एवं पूर्ण समर्पण का परिणाम हैं. इस सार्थक परिणाम का पूरा श्रेय नि:संदेह 'मधु' जी को जाता है, जिन्होंने एक-एक हाइकुरूपी मनकों को इस प्रकार से इस मालारूपी पुस्तक में पिरोया है कि इस पुस्तक का पाठक-दर्शक पढ़कर-देखकर न केवल 'वाह-वाह' कह उठता है, बल्कि दांतोंतले उंगली दबाने को भी मज़बूर हो जाता है. उत्कृष्ट कार्य सदैव स्वयं बोलता है और यही कार्य इस हिंदी हाइगा पुस्तक में भी किया गया है, जिसकी आभा से चकाचौंध हुए बिना रह पाना मुश्किल है.
इस संकलन में जहाँ एक ओर हिंदी हाइकु के शलाका-पुरुष रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु' जी के हाइगा हैं, वहीँ वरिष्ठ हाइकु-लेखिकाओं डॉ. सुधा गुप्ता, डॉ. हरदीप संधू व डॉ. भावना कुंवर के भी हाइगा भी शामिल हैं. कुछ अन्य स्थापित हाइकुकारों एवं प्रतिभावान नए हाइकूकारों को भी इस संकलन में स्थान मिला है. हाइकु के अन्य स्थापित रचनाकारों में स्वयं संपादिका ऋता शेखर 'मधु', डॉ. श्याम सुन्दर दीप्ति, रवि रंजन, डॉ. अनीता कपूर तथा प्रियंका गुप्ता आदि के नाम प्रमुख हैं. हाइकुकार दिलबाग विर्क, प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, रचना श्रीवास्तव, डॉ. जेन्नी शबनम, रश्मिप्रभा, नवीन सी. चतुर्वेदी तथा एम. कुश्वंश आदि के हाइगा भी संकलन की आभा में वृद्धि करते हैं.
बड़े आकार की तिरपन पृष्ठ की यह पुस्तक विद्या प्रेस, पटना से प्रकाशित है, जिसके सभी पृष्ठ पूर्णतया रंगीन एवं लेमिनेटेड हैं. पुस्तक का मूल्य पांच सौ उञ्चास रुपये मात्र है.
हिंदी हाइगा के विकास-क्रम में इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए सुश्री ऋता शेखर 'मधु' जी को कोटिक बधाइयाँ। हिंदी हाइकु और हिंदी हाइगा जगत को भविष्य में भी उनसे इस तरह के और संकलनों की अपेक्षा रहेगी।
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अध्यक्ष- अन्वेषी संस्था
24/18, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)-212601
वार्तासूत्र- 9839942005, 8574006355
ई-मेल: doctor_shailesh@rediffmail.com
लाजवाब कार्य मधु जी द्वारा ,बधाई की पात्र हैं आप
जवाब देंहटाएंबधाई मधु जी को.
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