शुक्रवार, 9 मई 2014

कर गुजरना है कुछ ग़र :उमेश चन्द्र पन्त "अज़ीब"



उमेश चन्द्र पन्त

कर गुजरना है कुछ ग़रतो जुनूं” पैदा कर
हक को लड़ना हैरगों में खूं” पैदा कर
वतन की चमक को जो बढ़ाये
तेरी आँखों में ऐसा नूर” पैदा कर  
वतन पे कुरबां होना शान हैमाना
तू बस अरमां” पैदा कर
शम्सीर” बख़ुदा मिलेगी तुझे तू
तू हाथों में जान” पैदा कर
अहले वतन को जरूरत है तेरी
तू हाँ कहने का ईमान” पैदा कर  
सीसा नहींहौसला-ए-पत्थर है उनका
तू साँसों में बस आंच” पैदा कर 
फ़तह मिलकर रहेगी तुझे  
हौसला पैदा कर
रौंद न पाएंगे तुझे चाह कर भी वे
कुछ ऐसा मंज़र” राहों में पैदा कर
होंगे "ख़ाक" वे, सामने जो आयेंगे
तू सीने में बस, "आग" पैदा कर..



मेरे हमसफ़र आ

तुझे ले के चलूँ

इन फिज़ाओं मै कहीं....


इन हवाओ क साथ 
तुझे कहीं उड़ा के ले के चलूँ

मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ

हुस्न की वादियों मैं


चाहत के समंदर मैं


बहाता ले चलूँ


मेरे हमसफ़र आ


तुझे दूर ले क चलूँ

तुझे एहसास दिलाऊं....


तुझे ये बताऊँ.....के तू मेरा है....


तू आया जब से..


मेरे जिन्दगी मैं नया सवेरा है

मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ

पर्वतों के पार..


एक घाटी मैं


जो है वादे-वफ़ा से सरोबार


मेरे हमसफ़र आ


तुझे ले के चलूँ....

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