बुधवार, 20 अगस्त 2014

कुमाऊनी कविताएं:उमेश चन्द्र पन्त

                    



                            उमेश चन्द्र पन्त
 
                      ये कविताएं मुझे अरसा पहले मिल गई थीं । भोजपुरी और गढ़वाली कविताओं के प्रकाशन के बाद आज कुमाऊनी कविताएं प्रकाशित कर रहा हूं। और इन्हें प्रकाशित  करते हुए मुझे गर्व का अनुभव हो रहा है। इन कविताओं पर आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।



कुमाऊनी कवितायेँ


भाभर की भाबरियोव में नि भबरीणो
घर आओ
वां को छु अपण?
जब के नि रोलकाँ जला
कि कौलाकै मुख दिखाला?
फिर अपण जस मुख ल्ही बेर आला
आई ले 'टैमछु
आओअपन जड़-जमीन पछियाणो
याद करो ऊ गाड़-भीड़
जो तुमार पितरनैल कमाईं
ऊ घर-बार
जो अफुं है बेर ले बाहिक समाईं

अरे भायो लाली
तुम कुंछा-पहाड़ में के नहातन आब
जब तुमे न्हेता
बाहिक के चें

तुम कुंछा-नेता लोग नैल पहाड़ चुसी हालो
मैं कूं-तुमुल त पहाड़ छोड़ी हालो

आओ यारो यस नि करो
हमर पहाड़ बर्बाद है गो
के करो यारो
जब जड़ सुखी जाल
बोट हरी नि रै सकन
अपण गौं-घर छोड़ी बेर
कैक भल नि है सकन
पहाड़ अंतिम समय मैं छु
फिर जन कया---
हमुल मुख ले नि देख सक

दिनचर्या

'रात्ती-बियाणीउठकर
करती है वो 'गोठ-पात'
फिर 'गोरको 'हतियातीहै,

उजाला नहीं हुआ रहता,
जब तक वो
दो 'डाल' 'पोशखेत पंहुचा आती है.

'सास-सौरज्युको 'चाहाबनाकर देती है फिर
दूध 'ततातीहै 'मुनुके लिए वो
'रोट-सागका कलेवा बनाती है.

'सौरज्युकी निगरानी में छोड़ जाती है 'मुनुको
जब 'बणको वो जाती है
जंगल बंद होने ही वाला है, कुछ दिन में 'ह्यूनका
जंगलात का ऑडर जो 'ठैरा'.

बटोर लेना चाहती है वह
अधिक से अधिक
'शिरकी घास और 'दाबे'..अधिक से अधिक 'पाल्यो'.

बटोर लेना चाहती है वो
जंगल बंद होने से पहले 'ह्यूनका
जंगलात का ऑडर जो 'ठैरा'.

'दोफरीको आकर
'भातपकाती है वो
'कापेके साथ.

'इजा', 'बाबूकब 'आल'?
'मुनुके सवाल का जवाब ढूंढ़ते हुए
थोडा सा याद कर लेती है वो उनको
पोस्टिंग हैं सियाचिन में.

फिर 'सुतर' 'गिन्यातीहै
'इजरको जाती है
शाम को घास लेने के लिए.

'गाज्योका 'दुणपोईहुआ है, आजकल बहुत
माघ का है 'कल्योड़'
अतिरिक्त मेहनत तो करनी ही पड़ेगी.

'लाई-पालंगबनाना है रात के खाने में
'ह्वाकभी सुलगाना है 'सौरज्युके लिए 
शाम को 'गोरहतियाकर.
          
हाथ खाली नहीं है उसका काम करने से
फिर भी हाथ खाली है उसका.

चूड़ियाँ पहनने बाजार जाना था
कैसे जाये? 'सोबुतही नहीं हो पाता है काम 'आकतिरी'
मनीऑर्डर भी तो नहीं पंहुचा है उनका अभी तक
'मुनुका 'बालबाड़ीमें भी डालना है.

ऐसा ही कुछ सोचा करती है वो
जाती है जब बिस्तर पर
'चुली-भानिकर चुकने के बाद
कुछ और कहाँ सोच पाती है वह 
सिवाय अगले दिन के कामों को सोचने को छोड़ कर


उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'….

2 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक अभिव्यक्ति
    बहुत सुन्दर और भावुक
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    सादर ----

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
    कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------

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