उमेश चन्द्र पन्त
ये कविताएं मुझे अरसा पहले मिल गई थीं । भोजपुरी और गढ़वाली कविताओं के प्रकाशन के बाद आज कुमाऊनी कविताएं प्रकाशित कर रहा हूं। और इन्हें प्रकाशित करते हुए मुझे गर्व का अनुभव हो रहा है। इन कविताओं पर आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।
कुमाऊनी कवितायेँ
भाभर की भाबरियोव में नि भबरीणो
घर आओ
वां को छु अपण?
जब के नि रोल, काँ जला
कि कौला? कै मुख दिखाला?
फिर अपण जस मुख ल्ही बेर आला
आई ले 'टैम' छु
आओ, अपन जड़-जमीन पछियाणो
याद करो ऊ गाड़-भीड़
जो तुमार पितरनैल कमाईं
ऊ घर-बार
जो अफुं है बेर ले बाहिक समाईं
अरे भायो लाली
तुम कुंछा-पहाड़ में के नहातन आब
जब तुमे न्हेता
बाहिक के चें
तुम कुंछा-नेता लोग नैल पहाड़ चुसी हालो
मैं कूं-तुमुल त पहाड़ छोड़ी हालो
आओ यारो यस नि करो
हमर पहाड़ बर्बाद है गो
के करो यारो
जब जड़ सुखी जाल
बोट हरी नि रै सकन
अपण गौं-घर छोड़ी बेर
कैक भल नि है सकन
पहाड़ अंतिम समय मैं छु
फिर जन कया---
हमुल मुख ले नि देख सक
दिनचर्या
'रात्ती-बियाणी' उठकर
करती है वो 'गोठ-पात'
फिर 'गोर' को 'हतियाती' है,
उजाला नहीं हुआ रहता,
जब तक वो
दो 'डाल' 'पोश' खेत पंहुचा आती है.
'सास-सौरज्यु' को 'चाहा' बनाकर देती है फिर
दूध 'तताती' है 'मुनु' के लिए वो
'रोट-साग' का कलेवा बनाती है.
'सौरज्यु' की निगरानी में छोड़ जाती है 'मुनु' को
जब 'बण' को वो जाती है
जंगल बंद होने ही वाला है, कुछ दिन में 'ह्यून' का
जंगलात का ऑडर जो 'ठैरा'.
बटोर लेना चाहती है वह
अधिक से अधिक
'शिर' की घास और 'दाबे'..अधिक से अधिक 'पाल्यो'.
बटोर लेना चाहती है वो
जंगल बंद होने से पहले 'ह्यून' का
जंगलात का ऑडर जो 'ठैरा'.
'दोफरी' को आकर
'भात' पकाती है वो
'कापे' के साथ.
'इजा', 'बाबू' कब 'आल'?
'मुनु' के सवाल का जवाब ढूंढ़ते हुए
थोडा सा याद कर लेती है वो उनको
पोस्टिंग हैं सियाचिन में.
फिर 'सुतर' 'गिन्याती' है
'इजर' को जाती है
शाम को घास लेने के लिए.
'गाज्यो' का 'दुणपोई' हुआ है, आजकल बहुत
माघ का है 'कल्योड़'
अतिरिक्त मेहनत तो करनी ही
पड़ेगी.
'लाई-पालंग' बनाना है रात के खाने में
'ह्वाक' भी सुलगाना है 'सौरज्यु' के लिए
शाम को 'गोर' हतिया' कर.
हाथ खाली नहीं है उसका काम करने
से
फिर भी हाथ खाली है उसका.
चूड़ियाँ पहनने बाजार जाना था
कैसे जाये? 'सोबुत' ही नहीं हो पाता है काम 'आकतिरी'
मनीऑर्डर भी तो नहीं पंहुचा है
उनका अभी तक
'मुनु' का 'बालबाड़ी' में भी डालना है.
ऐसा ही कुछ सोचा करती है वो
जाती है जब बिस्तर पर
'चुली-भानि' कर चुकने के बाद
कुछ और कहाँ सोच पाती है
वह
सिवाय अगले दिन के कामों को
सोचने को छोड़ कर
उमेश चन्द्र पन्त 'अज़ीब'….
सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावुक
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर ----
आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों
कृष्ण ने कल मुझसे सपने में बात की -------
Ati sundar...
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