रविवार, 10 अगस्त 2014

अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं





                                                      अमरपाल सिंह
           

           उत्तर प्रदेश के नवाबगंज गोंडा में 01 मार्च 1980 को जन्में अमरपाल सिंह आयुष्कर ने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से हिन्दी में एम0 ए0 किया है । साथ ही नेट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दिल्ली के एक केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन।
            आकाशवाणी इलाहाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान हुई मुलाकात कब मित्रता में बदल गयी इसका पता ही न चला। लेकिन भागमदौड़ की जिंदगी और नौकरी की तलाश में एक दूसरे से बिछुड़ने के बाद 5-6 साल बाद फेसबुक ने मिलवाया तो पता  चला कि इनका लेखन कार्य कुछ ठहर सा गया है । विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं से गुजरने के बाद लम्बे अन्तराल पर इनकी दो कविताएं पढ़ने को मिल रही हैं । 


पुरस्कार एवं सम्मान


           वर्ष 2001 में बालकन जी बारी इंटरनेशनल नई दिल्ली द्वारा -राष्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार  तथा वर्ष 2002 में  राष्ट्रीय कविता एवं प्रतिभा सम्मान ।
        शलभ साहित्य संस्था इलाहाबाद द्वारा 2001 में पुरस्कृत ।



                                                  चित्र  नेट से साभार


अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं-

1-  अजन्मा कर्ज़दार

जान  गयी हूँ माँ मरना नियति है मेरी

और मुझे मारना तुम्हारी मजबूरी

पर मैं नहीं चाहूंगी

मेरी हत्या तुम्हे अभिशप्त करे

ये भी नहीं चाहती
माँ 
 
तुम्हे होना पड़े लगातार चौथी बार

पदाक्रांत

बेटी हूँ जानती हूँ नहीं हूँ

तुम्हारे प्रत्यर्थ

पर हूँ आज इतनी समर्थ

तीन माह के जीवनदान के बदले

चुका सकती हूँ

ममत्व का क़र्ज़ 


अपने नन्हे कोमल हाथों से करके

 अपना आत्मोत्सर्ग।

2-मृदुल याचना 

 
मैं भी आना चाहती हूँ संसार में


पीना चाहती हूँ ममत्व की बूँद 


पाना चाहती हूँ पिता का दुलार , भैया का प्यार 


कुछ पल की साँसें , कुछ पल का आगार


क्या मुझे दोगी माँ ?


देखना चाहती हूँ अखिल ब्रम्हांड में 


पूजनीया नारी की गरिमा

कुछ पल के लिए आँखे , कुछ पल का आभार 


क्या मुझे दोगी माँ ?


खेलना चाहती हूँ , जीवन संघर्ष की  द्यूतक्रीड़ा


जीतना , हारना, बनना, बिखरना 


कुछ पल के लिए पाँव और कुछ पल का अधिकार 


क्या मुझे दोगी माँ
?

पढना चाहती हूँ मानव मन का रहस्य 


कुटिलता ,कलुषता ,द्वेष ,पाप 


प्रेम, दया ,ममता ,पुन्य का पाठ 


कुछ पल की जुबान
, कुछ पल का आराम 

क्या मुझे दोगी माँ ?


बनना चाहती हूँ सीता ,सती ,शक्ति और कल्पना


 छूना चाहती हूँ धरा और आकाश 

एक घर, एक प्यार ,एक संसार


कुछ पल का अवसर और सम्मान 

क्या मुझे दोगी माँ ?




संपर्क- अमरपाल सिंह आयुष्कर 
          नवाबगंज गोंडा ;उ0प्र0

13 टिप्‍पणियां:

  1. nice message & well written Amar pal.. great work

    --Vibhash

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  2. Amarpal Singh ji apne bhut achhi rachna likhi hai
    kya aap apni rachnao ko jyada se jyada logo tak phuchana chahte hai, Looking to publish Online Books, in Ebook and paperback version, publish book with best
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