अमरपाल सिंह आयुष्कर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
अमरपाल सिंह आयुष्कर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 5 अगस्त 2012

कहीं खुल न जाये दुपट्टे की गांठ !

कहीं खुल न जाये दुपट्टे की गांठ !   






          दोस्तो ! बहुत दिनों से नेट पर लगभग अनुपस्थित सा रहा हूं मैं। वजह मेरा पीसी कोमा में चला गया था। अब सब कुछ ठीक ठाक है। आज अपने एक इलाहाबादी दोस्त की कुछ कविताएं पोस्ट कर रहा हूं। इस समय ये नागालैण्ड के  एक विद्यालय  में अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। इनकी कुछ कविताएं देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
         आगे हम आपको जल्द ही केशव तिवारी ,विजय सिंह, भरत प्रसाद ,महेश चन्द्र पुनेठा, हरीश चन्द्र पाण्डे ,शंकरानंद, संतोष कुमार चतुर्वेदी, रेखा चमोली, शैलेष गुप्त वीर, विनीता जोशी, यश मालवीय , कपिलेश भोज ,नित्यानंद गायेन, कृष्णकांत, प्रेम नन्दन एवं अन्य समकालीन रचनाकारों की रचनाओं से रुबरु कराते रहेंगे। आशा है आप सबका स्नेह व प्यार पहले की तरह मिलता रहेगा।

अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं.

जिन्दगी 

कागजों की कश्तियों . सा बह रहा
एक बच्चे की जुबानी कह रहा
जिन्दगी मुट्ठी से गिरती रेत है
या हथेली थक चुकी करतब दिखाकर
मांगती पैसे अठन्नी एक है
धूप से सींचे फटे से होंठ ले
खा रहा रोटी बुधौवा नेक है
या किसी बंजर की माटी सींचकर
लहलहाता. सा तना इक खेत है ।


अम्मा

हमारा आंगन उतना बड़ा 
जितना परात  
पर अम्मा न जाने कैसे न्योत लेती
होली,दिवाली,तीज,त्यौहार
बाबा के शब्दों में बरात

इंतज़ार 

बाज़ार गई बेटी 
माँ की सांसे बाप की इज्जत
गठिया ले गई  दुपट्टे के कोने में  
कभी भी फट सकता है कोना
बाज़ार की वीरानी में 
उछल सकता है कोई कंकड़
फंस सकता है  
दुपट्टा किसी पहिये में 
डर है 
कहीं खुल न जाये दुपट्टे की गांठ !
शायद , इसीलिए सहमी है दरवाजे पर 
टिकी बाप की आँखे और माँ की साँस !

संपर्क सूत्र.

अमरपाल सिंह आयुष्कर
ग्राम खेमीपुर,नवाबगंज
जिला गोंडा ,उत्तर  प्रदेश
मोबा0. 09402732653

गुरुवार, 8 मार्च 2012

अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं

           उत्तर प्रदेश के नवाबगंज गोंडा में 01 मार्च 1980 को जन्में अमरपाल सिंह आयुष्कर ने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से हिन्दी में एम0 ए0 किया है । साथ ही नेट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद नागालैंड के एक केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन।
            आकाशवाणी इलाहाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान हुई मुलाकात कब मित्रता में बदल गयी इसका पता ही न चला। लेकिन भागमदौड़ की जिंदगी और नौकरी की तलाश में एक दूसरे से बिछुड़ने के बाद 5-6 साल बाद फेसबुक ने मिलवाया तो पता  चला कि इनका लेखन कार्य कुछ ठहर सा गया है । विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं से गुजरने के बाद लम्बे अन्तराल पर इनकी दो कविताएं पढ़ने को मिल रही हैं और वह भी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एवं होली की हुड़दंग के साथ।
पुरस्कार एवं सम्मान- 
           वर्ष 2001 में बालकन जी बारी इंटरनेशनल नई दिल्ली द्वारा “ राष्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार ” तथा वर्ष 2002 में “ राष्ट्रीय कविता एवं प्रतिभा सम्मान ”।
        शलभ साहित्य संस्था इलाहाबाद द्वारा 2001 में पुरस्कृत ।

यहां उनकी दो कविताएं-


 









किलकारी से सिसकारी तक

जब आंगन में पाँव  पड़ा
 तो नाम पिता का पाया
थोडा प्यार-दुलार मिला तो
थोडा मन मुरझाया
यौवन की दहलीज पार कर
पति के घर जब आई 
सात फेरों  में नाम कट गया
पति के नाम समाई
थोडा सा अधिकार मिला तो
थोडा मन मुरझाया
किलकारी आँगन में गूंजी
लाल हमारा आया
मन पति की केंचुल छोड़ा
फिर मुन्ना की अम्मा कहलाई
थोडा- सा आकाश मिला
तो थोडा - सा संग पानी
अपना नाम मैं रही ढूंढती
खुद को न पहचानी
किलकारी से सिसकारी तक
खूब  चक्कर  छानी
कब तक यूँ  रहेगा खारा मेरी आँख का पानी
कोई तो तोड़ेगा आकर
निद्रा सबके मनकी
कोई तो फोड़ेगा  आकर
गागर रखी पुरानी ।

केश  तुम्हारे

जब तुम्हारा निर्दोष  बचपन
खुले घुंघराले  बालों में चहकता
तो जीवन  की निश्चलता  का आभास  देता है
जब दो चोटियों  में बंधकर
यौवन के प्रांगन   में लहराता
तो- जीवन की स्वछंदता का आभाष देता है
जब निश्चलता स्वछंदता परिपक्व हो
प्रिय की बाँहों को शीतलता  देते हैं
तो- जीवन की मृदुता का पान करते  हैं
जब भोर तुलसी के फेरे लेती
भीगे बालों से मोती चुराती      
तो ममत्व के अंकुरण का आभास देती है
जब जुड़े  के रूप मैं आता
तो दृढ़ता, मर्यादा को साकार कर
जीवन के सत्य का साक्षात्कार कराता
पर जब कभी कोई दुश्शासन बन
निश्चलता, स्वछंदता, मृदुता, ममता और दृढ़ता को चुनौती देता
तो पांचाली का प्रण बन कुरुछेत्र - सा विद्ध्वंस  दोहराता ।
 
संपर्क सूत्र- 
              खेमीपुर अशोकपुर नवाबगंज गोंडा उ0प्र0 271303
              मोबा0-09402732653