कहीं खुल न जाये दुपट्टे की गांठ !
दोस्तो ! बहुत दिनों
से नेट पर लगभग अनुपस्थित सा रहा हूं मैं। वजह मेरा पीसी कोमा में चला गया था। अब सब
कुछ ठीक ठाक है। आज अपने एक इलाहाबादी दोस्त की कुछ कविताएं पोस्ट कर रहा हूं। इस समय
ये नागालैण्ड के एक विद्यालय में अध्यापन का कार्य कर रहे हैं। इनकी कुछ कविताएं
देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
आगे हम आपको जल्द ही
केशव तिवारी ,विजय सिंह, भरत प्रसाद ,महेश चन्द्र पुनेठा, हरीश चन्द्र पाण्डे ,शंकरानंद,
संतोष कुमार चतुर्वेदी, रेखा चमोली, शैलेष गुप्त वीर, विनीता जोशी, यश मालवीय , कपिलेश
भोज ,नित्यानंद गायेन, कृष्णकांत, प्रेम नन्दन एवं अन्य समकालीन रचनाकारों की रचनाओं
से रुबरु कराते रहेंगे। आशा है आप सबका स्नेह व प्यार पहले की तरह मिलता रहेगा।
अमरपाल सिंह आयुष्कर
की कविताएं.
जिन्दगी
कागजों की कश्तियों
. सा बह रहा
एक बच्चे की जुबानी
कह रहा
जिन्दगी मुट्ठी से
गिरती रेत है
या हथेली थक चुकी करतब
दिखाकर
मांगती पैसे अठन्नी
एक है
धूप से सींचे फटे से
होंठ ले
खा रहा रोटी बुधौवा
नेक है
या किसी बंजर की माटी
सींचकर
लहलहाता. सा तना इक
खेत है ।
अम्मा
हमारा आंगन उतना बड़ा
जितना परात
पर अम्मा न जाने कैसे न्योत लेती
होली,दिवाली,तीज,त्यौहार
बाबा के शब्दों में
बरात ।
इंतज़ार
बाज़ार गई बेटी
माँ की सांसे बाप की इज्जत
गठिया ले गई दुपट्टे के कोने में
कभी भी फट सकता है कोना
बाज़ार की वीरानी में
उछल सकता है कोई कंकड़
फंस सकता है
दुपट्टा किसी पहिये में
डर है
कहीं खुल न जाये दुपट्टे की गांठ !
शायद , इसीलिए सहमी
है दरवाजे पर
टिकी बाप की आँखे और माँ की साँस !
संपर्क सूत्र.
अमरपाल सिंह आयुष्कर
ग्राम खेमीपुर,नवाबगंज
जिला गोंडा ,उत्तर प्रदेश
मोबा0.
09402732653