साहित्य समृद्धि
की विरासत वाले हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड की भूमि से आने वाले खेम करण सोमन ने जिस
यथार्थ जीवन को देखा,सुना व भोगा है को अपनी कविताओं में अभिव्यक्ति
दी है। सामाजिक विषमता ,भ्रष्टाचार ,आतंकवाद व उग्रवाद जैसी खतरनाक बन चुकी बीमारियों से बचने का
आगाह भी करते हैं। स्त्री विमर्श का तमगा लगाये कलाकर्मियों की तरह शोर-शराबा नहीं
करते बल्कि अपनी बात बहुत दमदार तरीके से कहते हैं। ‘ स्त्रियों ने कथाएं कहीं ‘ कविता की बानगी के
साथ पढ़िए अन्य कविताएं।
कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास और आलोचना में रूचि और इन दिनों हिन्दी लघुकथा पर शोध।
रचनाएँ- कथाक्रम, कथादेश, नया ज्ञानोदय, पाठ, कृति ओर, साहित्य अमृत, आजकल, उत्तरा, दैनिक जागरण, अमर उजाला, आधारशिला, वर्तमान साहित्य, अलाव, सर्वनाम आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित।
खेमकरण ‘सोमन‘ की कविताएँ
1.क्या दे सकते हो मुझे
देखो
सूरज का रंग देखो
देखो अपने आसपास का रंग
देखो जंगल में सूरज से पैदा हुआ प्रकाश
देखो प्रकाश का रंग
देखो जंगल में रात का अन्धकार
देखो अन्धकार का रंग
देखो
जंगल के प्रकाश में देखो
देखो जंगल के अन्धकार में देखो
देखो रचता बसता/पैदा होता है तरह-तरह के जीवों
को जीवन
देखो बहती हुई नदी
देखो बहता हुआ मिनरल वाटर
तुम रहते हो जहाँ
क्या दे सकते हो मुझे
ऐसा प्रकाश/ ऐसा अन्धकार!
2. मिल गयी मुझे एक कहानी
कुछ दिन पहले देश की राजधानी में
कर देती हत्यारी भूख मेरी हत्या
और लाश मेरी! फेंक देती इधर-उधर/कहीं गन्दगी
में
घर था दूर
बैग चुराने वाले चुरा चुके थे/पैसे भी थे
उसी में
मैं रोने लगा/मुझे घर की याद आयी
क्षण-क्षण बाद आयी
भीड़ से निकलकर तभी एक सज्जन आये
आपबीती सुनी मेरी/दिया नव उत्साह
खाना खिलाया भरपेट
बिठाकर बस में/दिये पैसे भी
और कहा-हो सकता है
मिले हम कभी ओ मेरे दोस्त!
फिर कभी नहीं मिले वे
लेकिन/मिल गयी मुझे एक कहानी
कोई परेशान है तो भीड़ से निकलकर ध्यान रखना
है कैसे
भूखे व्यक्ति का सम्मान रखना है कैसे
खाना खिलाना है कैसे
देने भी हैं कुछ पैसे
भेजना कैसे है उसको अपने घर
बस में सही से बिठाकर
हाँ! ये कहते हुए
हो सकता है/मिले हम कभी ओ मेरे दोस्त!
3.तौर-तरीका
मिट्टी
मिला देती है अपने तौर-तरीके से
हर किसी को मिट्टी में
चाहे
कोई बचकर रहे
या न रहे!
4.गरीब बच्चे
गरीब बच्चे बारिश में रिसने वाले घर होते
हैं
गरीब बच्चे खण्डहर होते हैं
गरीब बच्चे कहीं भी उग आते हैं/घास होते हैं
गरीब बच्चे हँसते हैं तो भीतर से उदास होते
हैं
गरीब बच्चे सूखे पेड़ होते हैं
लेकिन आज जब देखा
गरीब बच्चे ने बचाया है अमीर बच्चों को/नदी
में डूबने से
तो लिखना पड़ा मुझे यह भी
गरीब बच्चे शेर होते हैं
गरीब बच्चे गाल पर लगे चाँटे होते हैं
गरीब बच्चे गरीबी के चाँटे होते हैं
गरीब बच्चे जीवन भर भार होते हैं
लेकिन आज जब देखा
गरीब बच्चे को पुलिस का बडा अधिकारी बनते
तो लिखना पड़ा मुझे यह भी
गरीब बच्चे दृढ़ होते हैं/पहाड़ होते हैं
गरीब बच्चे सूखी नदी/सूखी झील होते हैं
गरीब बच्चे न सुनी जाने वाली अपील होते हैं
गरीब बच्चे मॉल/शोरूम के सामने लगी ठेली होते
हैं
लेकिन आज जब देखा
एक अमीर महिला उठा रही है/गाँव के सभी गरीब
बच्चों की पढ़ाने-लिखाने की भारी जिम्मेदारी
तो लिखना पड़ा मुझे यह भी
गरीब बच्चे भी किसी के लिए गुड़ की ढेली होते
हैं
गरीब बच्चे की प्रतिभा गरीबी छीन लेती है
गरीब बच्चों का भविष्य गरीबी गिन लेती है
गरीब बच्चों का गरीबी में जनमना/मुरझाना होता
है
फिर भी गरीब बच्चों का दुनिया में रोज आना
होता है
गरीब बच्चे हवा पानी धूप की तरह हर जगह मिल
जाते हैं
लेकिन आज जब देखा
तुम सींच रहे/खिला रहे हो गरीब बच्चों की
पौध
तो लिखना पड़ा मुझे यह भी
गरीब बच्चों को खिलने दो तो खिल जाते हैं।
5- स्त्रियों ने कथाएं
कहीं
पुरूषों ने
कथाएं कहीं
स्त्रियों ने
भी कथाएं कहीं
पुरूषों में
कुछ ही पुरूष
समझ पाए
स्त्रियों ने
जो कथाएं कहीं
कथाएं नहीं
अपनी-अपनी व्यथाएं
कहीं।
संपर्क-
खेमकरण ‘सोमन’
शोधछात्र, प्रथम कुँज,
ग्राम व पोस्ट-भूरारानी, रूद्रपुर,
जिला ऊधम सिंह नगर, उत्तराखण्ड-263153
मोबाइल-09012666896, 09045022156
ईमेल- somankhemkaran@gmail.com