गुरुवार, 8 मार्च 2012

अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं

           उत्तर प्रदेश के नवाबगंज गोंडा में 01 मार्च 1980 को जन्में अमरपाल सिंह आयुष्कर ने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से हिन्दी में एम0 ए0 किया है । साथ ही नेट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद नागालैंड के एक केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन।
            आकाशवाणी इलाहाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान हुई मुलाकात कब मित्रता में बदल गयी इसका पता ही न चला। लेकिन भागमदौड़ की जिंदगी और नौकरी की तलाश में एक दूसरे से बिछुड़ने के बाद 5-6 साल बाद फेसबुक ने मिलवाया तो पता  चला कि इनका लेखन कार्य कुछ ठहर सा गया है । विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं से गुजरने के बाद लम्बे अन्तराल पर इनकी दो कविताएं पढ़ने को मिल रही हैं और वह भी अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एवं होली की हुड़दंग के साथ।
पुरस्कार एवं सम्मान- 
           वर्ष 2001 में बालकन जी बारी इंटरनेशनल नई दिल्ली द्वारा “ राष्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार ” तथा वर्ष 2002 में “ राष्ट्रीय कविता एवं प्रतिभा सम्मान ”।
        शलभ साहित्य संस्था इलाहाबाद द्वारा 2001 में पुरस्कृत ।

यहां उनकी दो कविताएं-


 









किलकारी से सिसकारी तक

जब आंगन में पाँव  पड़ा
 तो नाम पिता का पाया
थोडा प्यार-दुलार मिला तो
थोडा मन मुरझाया
यौवन की दहलीज पार कर
पति के घर जब आई 
सात फेरों  में नाम कट गया
पति के नाम समाई
थोडा सा अधिकार मिला तो
थोडा मन मुरझाया
किलकारी आँगन में गूंजी
लाल हमारा आया
मन पति की केंचुल छोड़ा
फिर मुन्ना की अम्मा कहलाई
थोडा- सा आकाश मिला
तो थोडा - सा संग पानी
अपना नाम मैं रही ढूंढती
खुद को न पहचानी
किलकारी से सिसकारी तक
खूब  चक्कर  छानी
कब तक यूँ  रहेगा खारा मेरी आँख का पानी
कोई तो तोड़ेगा आकर
निद्रा सबके मनकी
कोई तो फोड़ेगा  आकर
गागर रखी पुरानी ।

केश  तुम्हारे

जब तुम्हारा निर्दोष  बचपन
खुले घुंघराले  बालों में चहकता
तो जीवन  की निश्चलता  का आभास  देता है
जब दो चोटियों  में बंधकर
यौवन के प्रांगन   में लहराता
तो- जीवन की स्वछंदता का आभाष देता है
जब निश्चलता स्वछंदता परिपक्व हो
प्रिय की बाँहों को शीतलता  देते हैं
तो- जीवन की मृदुता का पान करते  हैं
जब भोर तुलसी के फेरे लेती
भीगे बालों से मोती चुराती      
तो ममत्व के अंकुरण का आभास देती है
जब जुड़े  के रूप मैं आता
तो दृढ़ता, मर्यादा को साकार कर
जीवन के सत्य का साक्षात्कार कराता
पर जब कभी कोई दुश्शासन बन
निश्चलता, स्वछंदता, मृदुता, ममता और दृढ़ता को चुनौती देता
तो पांचाली का प्रण बन कुरुछेत्र - सा विद्ध्वंस  दोहराता ।
 
संपर्क सूत्र- 
              खेमीपुर अशोकपुर नवाबगंज गोंडा उ0प्र0 271303
              मोबा0-09402732653

गुरुवार, 1 मार्च 2012

गौरव सजवाण की कविता


 इंटर की पढाई कर रहे गौरव सजवाण का जन्म उत्तराखण्ड में टिहरी  जनपद के पलेठी नामक गांव में 25 जुलाई1996 को एक किसान परिवार में हुआ।
 इनकी कहीं भी प्रकाशित होने वाली पहिलौठी कविता है। वैसे पुरवाई पत्रिका का उद्देश्य बच्चों की रचनाधर्मिता को बढ़ावा देना है। चाहे इनकी रचनाओं का स्वाद कच्चापन एवं कसैलापन ही क्यों हो। इसके पहले हम बिजेन्द्र सिंह एवं मनवीर सिंह नेगी की कविताएं पढ़वा चुके हैं। जिंदगी कहने और कहने के बीच कैसे गुजरती है। गौरव सजवाण की कविताओं में बखूबी महसूसा जा सकता है।

गौरव सजवाण की कविता
 








कहने और कहने के बीच

बहती हवाओं को
बलखाती नदियों को
नीले समन्दर को
अनमापे आसमान को   
खड़ी चट्टान को
फैले मैदान को
सूरज की किरनों को
चांद की अंजोरिया को
टिमटिमाते तारों को
चक्कर लगाते ग्रहों को
कुछ नहीं कहा जा सकता
कुछ कहा जा सकता है तो
सिर्फ अपनी बुराइयों को
दूसरों की भलाइयों को
किसानों की मेहनत को
लहलहाते खेतों को
चींटियों की एकता को
बगुले के ध्यान को
कुत्ते की नींद को
गिलहरी के साहस को
और फिर चलती है जिंदगी
इसी कहने और कहने के बीच।
    

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें



                         बिहार के खगड़िया जिले में 12 जनवरी 1962 को जन्में कैलाश झा किंकर ने परास्नातक के साथ एल0 एल 0बी0 भी किया है।अब तक देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनकी कविताओं एवं गजलों का प्रकाशन हो चुका है।इनकी प्रकाशित कृतियों में- संदेश , दरकती जमीन,  चलो पाठशाला  सभी कविता संग्रह कोई कोई औरत  खण्ड काव्य हम नदी के धार में, देखकर हैरान हैं सब ,जिंदगी के रंग है कई  सभी गजल संग्रह  
 
           हिंदी गजल को आम लोगों की बोली भाषा में कह देना ही नहीं वरन सरल शब्दों को हथियार की तरह प्रयोग करना किंकर को समकालीन रचनाकारों से विशिष्ठ बनाती हैं। अपने देश को दागदार बनाने, लूटने खसोटने एवं भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे लोगों  की ठीक ठाक पड़ताल करते हैं किंकर।इनकी गजलें आशा की नई किरन दिखाती हैं जो देर तक   हमें आलोकित करती रहेंगी।

संपादन-कौशिकी  त्रैमासिक और स्वाधीनता संदेश  वार्षिकी
 





 
 


















कैलाश झा किंकर की ग़ज़लें -

     1-

वो अन्धकार में बैठे                  
जो इन्तजार में बैठे। 
                 
हिम्मत जुटा न  पाए जो                  
अब भी कछार में बैठे।                  
    
गाँवों का आँकड़ा लेते                  
ए. सी. की कार में बैठे।                   

बद-वक्त कुंडली मारे                  
जीवन की धार में बैठे।                 

विश्वास हो न पाता है                  
सचमुच बिहार में बैठे।

  
2-
                

 उजाले का वो जरिया ढूँढ़ता है
 वो कतरा में भी दरिया  ढूँढ़ता है।

 गई है माँ कमाने खेत उसकी
 वो बच्चा घर में हड़िया ढूँढ़ता है।

 न मीठी बात में आना कभी तुम
 अगर सामान बढ़िया ढूँढ़ता है।

 पला जो गाँव में बच्चा हमारा
शहर में बाग-बगिया ढूँढ़ता है।

 नहीं सुनता यहाँ कोई किसी की
 तू दिल्ली में खगड़िया ढूँढ़ता है।
 
  संपर्क: माँ, कृष्णानगर, खगड़िया- 851204
               मोबा0.09430042712,9122914589

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

नित्यानंद गायेन की तीन कविताएं


          20 जनवरी 1981 को शिखरबाली, 0 बंगाल में जन्में नित्यानंद गायेन की कवितायें और लेख सर्वनाम, अक्षरपर्वकृति ओर, समयांतर, समकालीन तीसरी दुनिया, जनसत्ता, हिंदी मिलाप  आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन का शतक।
अपने हिस्से का प्रेम नाम से एक कविता संग्रह प्रकाशित  अनवर सुहैल के संपादन में संकेत द्वारा कविता केंद्रित अंक।
संप्रति- अध्यापन

 
 




















नित्यानंद गायेन की तीन  कविताएं-

देवता नाराज़ थे

खाली हाथ
वह लौट आया
मंदिर के दहलीज से

नहीं ले जा सका 
धूप- बत्ती, नारियल
तो देवता नाराज़ थे

झोपड़ी में
बिलकते रहे
बच्चे भूख से
भगवान
एक भ्रम है
मान लिया उसने


मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें

कुछ साये
ऐसे भी होते हैं
जिनका कोई
चेहरा नहीं होता
नाम नहीं होता
केवल
भयानक होते हैं
नफ़रत की बू  आती है
भय का आभास होता है

कहीं भी हो सकते हैं
अयोध्या में
गोधरा में
इराक या अफगानिस्तान में
किसी भी वक्त

इंसानी खून से
रंगे हुए हाथ
इनकी पहचान है

कोई मज़हब नहीं इनका
ये साये
खुद के भगवान्  होते हैं

खुद नहीं उगते ये
मुद्दत से उगाया जाता है इन्हें

राख हुए सपने


गुलाबी के
सपने तो बहुत थे
उन्हें तोड़ने वाले
कहाँ कम थे

रंगीन चूड़ियों
का  सपना
सहृदय बालम
का सपना

सबको अपना
बनाने का सपना 

जलाई  जाएगी
उसे केरोसिन डालकर
नहीं था
ये सपना गुलाबी का
पर
राख हुए सब सपने
गुलाबी के साथ


गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

विनीता जोशी की दो लघु कविताएं-

विनीता जोशी



 



       उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा में जन्मीं युवा कवयित्री विनीता जोशी के गीत कविताएँ, लघुकथाएँ और बाल कविताएँ, कहानी, लेख, समीक्षा आदि का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं यथा कादम्बिनी, वागर्थ, पाखी, गुंजन जनसत्ता ,अमर उजाला, दैनिक जागरण ,सहारा समय, शब्द सरोकार में प्रकाशन हो चुका है। इन्होंने हिंदी साहित्य एवं अर्थशास्त्र में   एम.. किया है।
अभी हाल में एक कविता संग्रह  चिड़िया चुग लो आसमान पार्वती प्रकाशन इन्दौर से प्रकाशित हुआ है जिसका पिछले दिनों भोपाल में नामवर जी ने विमोचन किया।
सम्मान- बाल साहित्य के लिए खतीमा में सम्मानित।
सम्प्रति- अध्यापन।

विनीता जोशी की दो लघु कविताएं-



















 
















एहसास

एक्वागार्ड के
पानी जैसा
क्यों बनाना चाहते हो
प्यार को
इसे बहने  दो
पहाड़ी नदी की तरह
जिसमें एहसास हो।

मुझे

एक्वेरियम की
मछली
नहीं बनना
मुझे
नदी पार कर
सागर तक जाना है
और अनंत को पाना है।

सम्पर्क-  तिवारी खोला पूर्वी पोखर खाली
         अल्मोड़ा.263601;उत्तराखंड
         दूरभाष 09411096830