शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

कल्पना बसेड़ा व कृष्ण कुमार की कविताएं-



 उमंग की एक किरण
      कल्पना बसेड़ा 
    कक्षा -12

 प्रातः नभ में उमंग भर दे
 अंधकार को त्याग जीवन में उजियारा कर दे
  अपनी सुंदर जीवंत किरणों से
   संसार में उजियारा कर दे।
 अपनी किरणों को संसार में फैला कर
 संसार को तू पावन कर दे।



  





















बचपन की यादें
   कृष्ण कुमार 
  कक्षा -12

 क्यों ना फिर से ढूंढ लें उस बचपन को
 जिसमें हजारों सपने सजाए
 क्यों ना याद कर लें उन पलों को
 जो माँ के आँचल में बिताए।

 लौट आए काश वो बचपन
 जिसमें हम खुशियों से नहाए
 हर खुशी मिल जाए चाहे
 बचपन फिर लौट के ना आएगा।

 आलम कुछ ऐसा था उसका
 चिंता की परछाई ना थी
 सुनहरी यादे छोड़ गया वो
 हमसे नाता तोड़ गया वो

 वही शरारत वही नजाकत
 वही दिखी थी सच्चाई
 अब तो तरस गई हैं आँखें
 देखने को अच्छाई
 
 अब तो बस संघर्ष बचा है
 दुःख में ही सुख ढूँढ लो
 देखना चाहो अपना बचपन तो
 अपनी आँखें मूँद लो

                                 प्रस्तुति- अंकित चौहान संपादक उमंग
                                           कक्षा-12
                                           रा00का0 देवलथल पिथौरागढ़
 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर, दोद्नो को बधाई...

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