लघु कथाएं-
1. अमरपाल सिंह आयुष्कर
जन्म :१ मार्च १९८० ग्राम खेमीपुर,नवाबगंज
जिला गोंडा ,उत्तर - प्रदेश
दैनिक जागरण, हिदुस्तान ,कादम्बनी,आदि में रचनाएँ प्रकाशित
बालिका -जन्म गीत पुस्तक प्रकाशित
२००१ मैं बालकन जी बारी संस्था द्वारा रास्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार
२००३ बालकन जी बारी -युवा प्रतिभा सम्मान
आकाशवाणी अल्लाहाबाद से कार्यक्रम प्रकाशित
परिनिर्णय- कविता शलभ संस्था अल्लाहबाद द्वारा प्रकाशित
सम्प्रति -प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक हिंदी (केंद्रीय विद्यालय rangapahar, दीमापुर नागालैंड
फुटकर
ट्रेन
तेज़ रफ़्तार से
भागी जा रही
थी मैं पत्रिका
के पन्ने पलट-पलट कर
थक चुका था।
दोपहर हो चली
थी, मेरी भूख
भी एक्सप्रेस रफ़्तार
पकड़ रही थी
,ट्रेन एक संभ्रांत
स्टेशन पर रुकी
,और मेरे पांव
उस दुकान पर
,दिमागी मोल भाव
, सकुचाते -सकुचाते हाथ
जेब तक जाकर
लौट आये " इ
पैक कर दूं
भाई साहब 'बीस
रूपये के तो
हैं.....? मेरी नकारात्मक
मुद्रा देखकर ,मुह
खोल हँसता लिफाफा
संत हो गया । सस्ते स्टेशन का
इंतज़ार करती मेरी
भूख ट्रेन की
रफ़्तार में शामिल
होने लगी । लोगों
को भूख नाचती
होगी ,पर आज
में भूख को
नचा रहा था । तभी मेरी नज़र
ट्रेन में गर्मागर्म
समोसे बेंच रहे
लड़के पर पड़ी
,मेरे हाथ में
पड़े दस के
नोट ने फडफडा
के कहा -दो
समोसे देना । लड़के
ने निरीहता से
कहा -फुटकर नहीं
है साब ....खुल्ला
खुल्ला समझे " नोट
ने टूटने के
लिए संभ्रांत चेहरों
की तरफ गुजारिश
की ,सभी चेहरे
मुस्करा कर न
करते गये । खन
-खन करती हथेली
लिए वो फटेहाल
लड़की मेरे कम्पार्टमेंट
में दाखिल हुई
,उसने मेरे आगे
हाथ फैलाया. मैंने
संभ्रांत अदा के
साथ सर हिलाया । लड़की के हाथ
में ढेरों फुटकर
.....धीरे से बुलाया
...दस का नोट
बढ़ाते हुए फुसफुसाया
....फुटकर ? वह सकपकाई
.....हाँ ! हाँ ...ई
है न बाबूजी
! ई एक .....दुई
...पांच....ई पूरा
साढ़े नौ ....अठन्नी
कम । बिना एक
पल रुके मैं
बोल पड़ा .......'जरा
अगल-बगल वालों
से मांगकर दस
पूरा कर दे
न ।'
वह
ईमानदारी से अठन्नी
मांगने में जुट
गई । मेरी नजर
उसकी हथेली पर
टिकी थी . कि
कब अठन्नी गिरे
और मैं समोसे
लूं ।
संपर्क-
अमरपाल सिंह आयुष्कर
ग्राम- खेमीपुर,नवाबगंज
जिला- गोंडा ,उत्तर प्रदेश
मोबा0-
09402732653
2-डा0 राजेन्द्र प्रसाद यादव
जन्म -15 जनवरी 1975
शिक्षा -एम0ए0 प्राचीन इतिहास, पी0 एच0 डी0 ,बी0 एड0,आयुर्वेद रत्न,सर्टिफिकेट कोर्स इन योगा
प्रकाशन-विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में
सम्प्रति-सहायक अध्यापक
सह शिक्षा
इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण हो जाने के बाद रमा के पिता महेश ने रमा को स्नातक कक्षा में प्रवेश दिलाने हेतु विचार करना शुरू किया।लेकिन इस कार्य के संबंघ में उनके मन में द्वन्द्वात्मक स्थिति उत्पन्न हो गई। द्वन्द्व इस बात का था किवह अपनी पुत्री का प्रवेश किसी महिला कालेज में करवायें या सह शिक्षा के कालेज में।
इस बात का निर्णय करने के लिएवह अपने मित्र राजेश रंजन के पास गये।रातेश रंजन की सलाह स्पष्ट थी।उन्होंने कहा महेश जील ड़कियों के व्यक्तित्व का जिस प्रकार का विकास सह शिक्षा वाले कालेज में हो सकता है वैसा विकास महिला कालेज में नहीं हो सकता।इसका कारण यह है कि लड़कियां सह शिक्षा वाले कालेज में लड़कों से बहुत कुछ सीखती हैं।लड़कों के आत्मविश्वास,साहस एवं संघर्ष करने की क्षमता से परिचित होकर लड़कियां अपना बेहतर विकास कर सकती हैं।यही नहीं समाज में स्त्री पुरूषों के संबंधकिस प्रकार से समाज के उत्थान के लिए बेहतर ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं।इसका बीजारोपड़ तो सह शिक्षा वाले कालेज में बेहतर रूप से हो सकता है।
राजेश रंजन की इन सारी बातों स संतुष्ट होकर रमा के पिता ने उसका प्रवेश एक सह शिक्षा वाले कालेज में दिलवा दिया।
संपर्क-पहिया बुजुर्ग,बांसेपुर डड़वा अतरौलिया आजमगढ़ उ0 प्र0 223223
मोबा0-09198841245
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