मेरा नाम सौरभ
राय है
और मैं हिंदी
में कवितायेँ लिखता
हूँ । मेरी
उम्र 24 वर्ष वर्ष
है एवं मेरी
कविताओं के तीन
संग्रह प्रकाशित हो चुके
हैं जिनमे से
यायावर दिसम्बर 2012 को बैंगलोर
में रिलीज़ हुआ
। मेरी कवितायेँ
हिंदी की कई
किताबों में प्रकाशित
हो चुकी हैं
। इसके अलावा
हंस ने मेरी
कविताओं को अपने
जनवरी 2013 के अंक
में प्रकाशित किया
था । वागर्थ
एवं कृति ऒर
समेत कुछ और
पत्रिकाएँ अपने आगामी
अंकों में मुझे
प्रकाशित कर रहे
हैं । कई
अंग्रेजी के पत्र
पत्रिकाओं में भी
मेरे लेखन के
बारे में छप
चुका है ।
अर्नेस्टो चे ग्वेरा
हॉस्टल की दीवार
फांदकर
लड़की जब
लड़कों के कमरे
में लेट
बाप के पैसों
का
सिगरेट पीती है
उस भटकते हुए धुंए
में
थोड़ी धुंधली
थोड़ी और शर्मसार
दीवार पर चिपकी
हुई
चे की हैरान आँखें
क्या तुम्हे विचलित नहीं
करतीं
वियतनाम के आख़िरी
फटेहाल दर्ज़ी से सिलवाकर
अमरीकी साम्राज्यवाद का ठप्पा
लगवाकर
दाढ़ी बढ़ाकर
जब लड़के चे की
टी.शर्ट पहन
कोका.कोला पीते
हुए डकारते हैं
.
क्रांति
तो क्या
उस चुल्लू भर कोक
के चक्रवात में
तुम्हे डूबता हुआ चे
डूबती हुई क्रांति
दिखलाई नहीं देती
अंग्रेज़ी में गलियाते
बच्चे जब
कोलंबिया के किसानों
का
सारा ख़ून
चे छपी कॉफ़ी मग में
समेटकर
बात करते हैं
दुनिया बदलने की
उनकी बातों में दुनिया
कम
गाली ज़्यादा होती है
ऐसे में क्या
तुम्हे
उस मग पर
छपी तस्वीर के
चकनाचूर होने की
प्रतिध्वनि
सुनाई नहीं पड़ती
चे के नाम पर
छपी
बिकाऊ युवा ही
पूँजीवाद की क्रांति
है ।
सिनेमा
सूरज की आँखें
टकराती हैं
कुरोसावा की आँखों
से
सिगार के धुंए
से
धीरे धीरे
भर जाते हैं
गोडार्ड के
चौबीस फ्रेम ।
हड्डी से स्पेसशिप
में
बदल जाती है
क्यूब्रिक की दुनिया
बस एक जम्प
कट की बदौलत
और चाँद की
आँखों में
धंसी मलती है
मेलिएस की रॉकेट
।
इटली के ऑरचिर्ड
में
कॉपोला के पिस्टल
से
चलती है गोली
वाइल्ड वेस्ट के काउबॉय
लियॉन का घोड़ा
फांद जाता है
चलती हुई ट्रेन
।
बनारस की गलियों
में
दौड़ता हुआ
नन्हा सत्यजीत राय
पहुँचता है
गंगा तट तक
माँ बुलाती है
चेहरा धोता हुआ
पाता है
चेहरा खाली
चेहरा जुड़ा हुआ
इन्ग्मार बर्गमन के
कटे फ्रेम से ।
फेलीनी उड़ता हुआ
अचानक
बंधा पता है
आसमान से
गिरता है जूता
चुपचाप हँसता है
चैपलिन
फीते निकाल
नूडल्स बनता
जूते संग खाता
है ।
बूढ़ा वेलेस
तलाशता है
स्कॉर्सीज़
की टैक्सी में
रोज़बड का रहस्य
।
आइनस्टाइन का बच्चा
तेज़ी से
सीढ़ियों पर
लुढ़कता है ।
सीढ़ियाँ अचानक
घूमने लगती हैं
अपनी धुरी पर
नीचे मिलती है
हिचकॉक की
लाश !
एक समुराई
धुंधले से सूरज
की तरफ
चलता जाता है
।
हलकी सी धूल
उड़ती है ।
स्क्रीन पर
लिखा हुआ सा
उभरने लगता है
.
ला फ़िन
दास इंड
दी एन्ड
रील
घूमती रहती है
।
माओवाद
क्रान्ति.
कॉमरेड
चिल्लाता
गुज़रता है
जुलूस
दुहाई देता
माओ
लेनिन
गुअवारा की !
आगे वाला
दहाड़ता है.
मैंने मारा
!
भीड़ में
बच्चा रोता है.
हत्यारा !
डॉक्टर
डॉक्टर रविंद्रनाथ सोरेन
एम बी बी
एसए रांची
एम एसए पटना
चौड़ी छाती
कद लम्बा
चेहरे पर मुस्कान
!
जिस समाज में
सर उठाना
दूभर होता था
उस आदिवासी समाज के
अन्धकार ग्राम से निकल
पढ़ाई की
बीवी घर छोड़
चली गयी
फिर भी पेशे
से न डिगे
जहाँ के बाकी
डॉक्टर
कमपाउंडर से दवाई
का नाम पूछते
थे
वैसे कस्बे में
दवाखाना खोला
और आस पास
के ग्रामों के
कितने लोगों को बचा
लिया
कालाजारए मलेरियाए जोंडिस से
मरने से
मरीज़ कहता.
आपकी फीस नहीं
दे सकता
तो जेब से
निकाल
दवाई का पैसा
पकड़ा देते
बड़ों से श्रद्धा
बच्चों से बड़ा
स्नेह रखते
और आए दिन
चले जाते
हैजा पीड़ित ग्रामों में
स्कूटर पर स्वर
होकर
एक दिन
ऐसे ही किसी
ग्राम से
लौटते वक़्त
रोक लिया स्कूटर
चले गए गाँव
के एक होटल
में
जलेबी खाने
और जलेबी खाते खाते
ही
रुक गयी धड़कन
पड़ गया दिल
का दौरा
चल बसे पचास
से कम उम्र
में
उन्होंने अपनी उम्र
गरीबों में बाँट
दी
एक और दिन
प्रदुषण से लड़ते
लड़ते
एक और पत्ती
सूख गयी है
पक्ष विपक्ष ने
एक दुसरे को गालियाँ
देने का
मुद्दा ढूंढ लिया
है
डस्टबिन कूड़े से
थोड़ा और भर
गया है
किसान का बैल
भूखे पेट
हल जोतने से अकड़
गया है
पत्रकारों ने जनता
को
डरना शुरू कर
दिया है
मज़दूर कारखानों में पिस
रहें हैं
उनकी सांसें निकल रही
चिमनियों से
किसानों के घुटनों
के घाव
फिर से रिस
रहें हैं
हीरो हिरोइन का रोमांस
पढ़
युवा रोमांचित है
लड़की का जन्म
अनवांछित है
धर्मगत जातिगत नरसंहार
डेंगू मलेरिया कालाज़ार
हत्या ख़ुदख़ुशी बलात्कार
हाजत में पुलिस
की मार
ज़हरीले शराब की
डकार से
थोड़े और लोग
मर रहें हैं
कुछ मुष्टंडे
लो वेस्ट निक्कर पहन
रक्तदान करने से
दर रहे हैं
एक और सूरज
डूब रहा है
अपने घोटालों की फेहरिस्त
देख
मंत्री स्वयं ही ऊब
रहा है
अमीर क्रिकटरों के नखरे
और नंग धडंग
लड़कियों का नाच
देख
पब्लिक ताली पीट
रहा है
मुबारक हो ! मुबारक
हो !
भारतवर्ष में एक
और दिन
सकुशल बीत रहा
है
चिता
मुख से फेनिल
गाढ़ा खून उगलते
अन्दर से झुलसाती
आग
नाक के संकरे
सुरंगों में कैद
घिनौनी बूए जली
चर्बी की झाग
महसूस करो
तुम्हारे चेहरे की खाल
गल रही है
अन्दर मुड़कर धुंधलाती तुम्हारी
दृष्टि
लाल दरारों के जाल
सी तुम्हारी एक
आँख
और दूसरी अपने खोप
में सड़ी गली
सी
चीख भरी आग
की लहरों में
लथपथ
आहूत तुम आते
हो मुझतक
जले बाल की
बदबू से वातावरण
लाल
और खून तो
जैसे नसों से
फूटकर
सूख गया बुलबुले
छोड़ताए उबलकर
महसूस करो
अपने पिघले हुए दिमाग
को
जो तुम्हारे कान से
रिस रहा है
और ये खालीपन
तुम्हारे खोपड़े को अन्दर
खींच रहा है
विकृत कंकाल तुम्हारा हिलने
को
राख पर खून
में लथपथ उलीच
रहा है
धीरे धीरे मर
रहे हो
जल्दी आये मौत.
एकालाप कर रहे
हो
कहते थे आग
लगी है
तुम्हारे अन्दर
नंगे पड़े हो
पिघलकर
सच पूछो तो
क्या फर्क पड़ता
है
तुम आदमी होघ्
तरल के धुआं
पर इतना साधारण
अंत किसी आग
का
कभी नहीं हुआ
दाढ़ी बना डाला
घर में बैठे
जब मुझे घर
की याद आई
खुन्नस में मैंने
ब्लेड निकाला
नस काटने की हिम्मत
नहीं थी
दाढ़ी बना डाला
मेरी सूरत देखती
है कि बदला
नहीं.
जब उगने.उगाने
को कुछ नहीं
बचता
दाढ़ी उग.उग
आती है
नयी ब्लेड को चमकाकर
बेवकूफ की तरह
मैंने कहा.
श्अँधेरा छोटे.छोटे
बालों की तरह
उगा है
काटोगे तो फिर
से उग जायेगा
पर खुन्नस में मैंने
ब्लेड निकाला
नस काटने की हिम्मत
नहीं थी
दाढ़ी बना डाला
अँधेरा मेरे कमरे
के आकार का
अँधेरा था
मेरा साया दीवार
पर डोलता सा
तिनकों में बना
वो पिंजड़ा खोलता
सा
नहीं खुला !
पिंजड़ा सहित पेड़
पर उड़ जा
बैठाय
मैं स्वतंत्र हूँ
मेरा चेहरा एक समतल
सीढ़ी था
जिस पर मैं
चढ़ता.उतरता
नहींए चलता था
सामने लेनिन की तस्वीर
और उसकी दाढ़ी
अलबत्ताए टेबुल पर मेरी
मेरा कटघरा मेरी दाढ़ी
में सिमट गया
है
दाढ़ी में समय
खपाकर
दाढ़ी में कलम
खपाकर
ज़िन्दगी का अजीब
जोकर लगता हूँ
इसी खुन्नस में मैंने
ब्लेड निकाला
नस काटने की हिम्मत
नहीं थी
दाढ़ी बना डाला
मैं अपनी ही
दाढ़ी पर
उगा हुआ था
पता-
SOURAV ROY
T3, SIGNET APARTMENT, BEHIND HSBC, 139/1, 3RD CROSS, 1ST MAIN,
SARVABHOUMA NAGAR, BANNERGHATTA ROAD,
BANGALORE - 560076
T3, SIGNET APARTMENT, BEHIND HSBC, 139/1, 3RD CROSS, 1ST MAIN,
SARVABHOUMA NAGAR, BANNERGHATTA ROAD,
BANGALORE - 560076
सौरव भाई की धारदार कविताएँ ..बहुत -बहुत बधाई , पुरवाई को धन्यवाद इन्हें प्रस्तुत करने के लिए .
जवाब देंहटाएं-नित्यानंद गायेन
sundar kavitaen...
जवाब देंहटाएंprabhavshali kavitaen..
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