जो मारे जाते
वे एक हाँक में
दौड़े आते सरपट गौओं की तरह
वे बलि-वेदी पर गर्दन डालकर
मुँह से उफ्फ भी नहीं करते
बिलकुल भेड़ों की तरह..
वे मंदिर और मस्जिद में
गुरूद्वारे और गिरिजाघर में
कोई फर्क नहीं समझते
उनके लिए वे देव-थान
आत्मा का स्नानघर होते !
वे उन देव थानों को
बारूदों से उड़ाना तो दूर
उस ओर पत्थर भी नहीं फेंक सकते
वे उन देव-थानों को
अपने हाथों से तोड़ना तो दूर
उस ओर ठेप्पा भी नहीं दिखा सकते
वे याद नहीं रखते
वेदों की ऋचाएँ/कुरान की आयतें
वे केवल याद रखते
अपने परिवार की कुछेक जरूरतें
वे दिन भर खटते-खपते हैं-
तन भर कपड़ा/सर पर छप्पर
और पेट भर भात के लिए....
वे कभी नहीं चाहते
सता की सेज पर सोना
क्योंकि वे नहीं जानते
राजनीति का व्याकरण
भाषा का भेद
उच्चरणों का अनुतान
हाँ !
वे रोजी कमाते हैं
रोटी पकाते हैं
और चूल्हे में
रोटी सेंकते भी हैं
लेकिन वे नहीं जानते
आग से दूर रहकर
रोटी सेंकने की कला !
पता : नावाडीह, बोकारो, झारखण्ड-829144
मोबाईल : 9931552982
वे नहीं जानते
जवाब देंहटाएंआग से दूर रहकर
रोटी सेंकने की कला !
achhi kavitayen
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता ..बधाई शिरोमणि महतो को
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