03 जनवरी 1989 को जपला झारखंड में जन्में विनोद सागर जीविकोपार्जन हेतु फोटोग्राफी का काम करते हुए कविता,कहानी, गीत, ग़ज़ल, हाइकु, क्षणिका आदि में सृजनरत हैं। अब तक इनके दो कविता संग्रह गंगा और मुखौटा प्रकाशित हो चुके हैं। इस नये स्वर का पुरवाई ब्लाग में स्वागत है।
सम्मान -दुष्यंत कुमार सम्मान 2014
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला सम्मान 2015
विनोद सागर की कविता
देखो अबुआ राज में
चोर-डकैतों की भरमार, देखो अबुआ राज में।
हैं सैकड़ों बेरोजगार, देखो अबुआ राज में।
राज्य का विभाजन सौभाग्य था या दुर्भाग्य अपना,
अस्थिर बनी रही सरकार, देखो अबुआ राज में।
जिन-जिन काबिल हाथों को किताबों की दरकार थीं,
हैं उन हाथों में हथियार, देखो अबुआ राज में।
गूंजती थी जिस जंगल में चिड़ियों की किलकारियां,
है वहां बारुदी अंगार, देखो अबुआ राज में।
देखो सत्ता की लोभ में बेच कर ईमान अपने,
नेता बने ईमानदार, देखो अबुआ राज में।
ना भीतर सुरक्षित और ना बाहर सुरक्षित लड़कियां
खुलकर हो रहा बलात्कार, देखो अबुआ राज में।
सभी नदियां जा-जाकर मिल रहीं अपने ‘सागर’ से,
ऐसे खो रहा जनाधार, देखो अबुआ राज में।
साभार- दैनिक भास्कर के साहित्यिक कॉलम में प्रकाशित
सम्पर्क - मुहल्ला- पो0 - जपला
पलामू, झारखंड -822116.
मोबा0- 09905566775
ई-मेल -vinodsagarwriter@gmail.com
वर्तमान राजीनतिक परिस्थितियों पर सीधे प्रहार करती कविता... बधाई ...सागर जी.
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