बुधवार, 8 मार्च 2017

अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’ की कविताएं




     हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा हस्ताक्षर । आज ' अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस ' पर कवि मित्र अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’  की कविताएं प्रकाशित करते हुए हमें खुशी हो रही है।आपके महत्वपूर्ण विचारों की प्रतीक्षा में । - सम्पादक

अमरपाल सिंह ‘ आयुष्कर ’  की कविताएं -
1-दीदी

आज चौथी बार तिरस्कृत होकर लौटी
दीदी की तस्वीर
बाबूजी के जूते ,  अम्मा  की सांसें
भैया के सपने , छुटकी के खिलौने
और मेरी ख़ुशी ,
एक बार फिर
दीदी के हाथों की लकीरों  - सा कट गए
बाबूजी की जेब का हल्कापन
सभी दिलों को भारी कर गया
दीदी का घरोंदा
हल्केपन के भार से दब गया
पर ,
दीदी फिर घरोंदे बनायेगी
विश्वास की नीव डालेगी
आशा के दीपक जलायेगी
एक गुड़िया सजायेगी , प्यार करेगी उसे , बियाहेगी
पर ,
दीदी की भीगी आँखे , ढलती साँसे और सूनी माँग देख
क्या गुड़िया ससुराल जायेगी ?

 
 पेंटिंग - ममता सैंडवाल

2-सबूत

एक रात बाहर गुज़ार लौटी लड़की
अग्निपरीक्षा हेतु चक्षुकुण्ड ले दौड़ी
सारे मुहल्ले की आँखें
गुजरी रात का सच भी
ना  बचा सका उसे
कैसे बताये
सुनसान रास्ते पर ,बिगड़ी बस में
अजनबी पिपासु नेत्रों ,कुंठित शब्दों ,अमर्यादित भावों की
अनलशिखा में
कितनी देर, देती रही अग्निपरीक्षा
अवध हो या लंका
हर हाल में देना पड़ता है
भरमाई आँखों को सबूत अपने होने का |

3-शाश्वती

घुटाता  रहा उसे हर सफ़र
रसोई से दफ्तर तक, चूल्हे से ओवन तक
बिना तपे कहाँ दे  पायी स्वाद ?
सिल-बट्टे से लेकर मिक्सी तक
बिना पिसे कहाँ दे पायी रंग ?
पतीले की खुरचनी से होटल की मेज तक
खंघालती रही अपनी भूख ?
मोटी मारकीन से कांजीवरम तक में
चुभती रही हर आँख ?
फिर भी
पिता, पति, पुत्र ,परिवार
संजोए  संस्कार ,प्रथाएं
मंचित करती सार्थक भूमिकाएं
जीती उर्वर आशाएं   

लहलहाता उसका कर्मपथ
शाश्वत,सनातन ,अनवरत |
संपर्क-खेमीपुर, अशोकपुर,नवाबगंज जिला गोंडा,उत्तर प्रदेश
मोबाईल न. 8826957462     

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