बुधवार, 28 फ़रवरी 2018

जब केसरिया-हरे मिलेंगे : डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर'



सभी साथियों को होली की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत है कवि मित्र  डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' का एक गीत
 

जब केसरिया-हरे मिलेंगे
 
रंग भरेंगे पिचकारी में,
प्रेम-दया-सद्भाव के।
दहन करेंगे इस होली में,
भाव सभी टकराव के।

भूख-ग़रीबी, भय-लाचारी,
मिटे भ्रष्टता की बीमारी।
अविचल-अटल तिरंगे नीचे
स्वर्णिम-युग की दावेदारी।

देख रहे सतरंगी सपने,
कम हों दिवस अभाव के!

समरसता के शोषक हैं जो,
हिंसा के उद्घोषक हैं जो।
उनको भी बासंती कर दें,
काले रँग के पोषक हैं जो।

बहुत हुआ अब नहीं सहेंगे,
नारे विष-विलगाव के!

श्वेत रंग से हृदय धुलेंगे,
अपनेपन से भरे मिलेंगे।
विजय-चक्र की गाथा गढ़ते,
जब केसरिया-हरे मिलेंगे।

गाएँगे समवेत सुरों में,
गीत सरस समभाव के!


सम्पर्क:
24/18, राधा नगर, फतेहपुर (उ.प्र.)-212601
वार्तासूत्र : +91 9839942005
ई-मेल : doctor_shailesh@rediffmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें