रविवार, 31 मार्च 2019

चन्द्र की कविताएं






 फेसबुक से हुई जान पहचान के इस असम के कवि की कविताएं


1-ये गेहूं के कटने का मौसम है

ये गेहूं के कटने का मौसम है..
इस मौसम में
देशी -परदेशी चिड़ियाएँ
उदास होती हुई
लौटेगीं
कपिली नदी के उस पार घने वन जंगलों में दूर कहीं
इस मौसम में
गेहूं के खेतों में झड़े हुए गेहूं के दानों को
पंडूक खूब खाएंगे
और फुर्र फुर्र उड़ जाएंगे बड़ी ही अफसोस के साथ
जब हम गेहूं को काट कर घर आंगन में ढोने लगेंगे
दाँने के लिए
इस मौसम में
गेहूं काटने के लिए
गांव जवार के सभी खेत मजदूर किसान
लोहारों के यहां
हंसुवे को पिटवाएंगे
धार दिलवाएंगे
ये गेहूं के कटने का मौसम है
इस मौसम में
हंसी खुशी मजदूरी मिलेगी खेत मजदूरों को
इस मौसम में
गेहूं के खेतों में बनिहारिन स्त्रियां
कटनी की लहरदार गीतें गाएंगी
तब झुरू झुरू बहेंगी
शीतल बयरिया भी
तब चिलकती धूप भी रूप को मुरझा देंगी
ये गेहूं के कटने का मौसम है दोस्तों !
इस मौसम में
चौआई हवाएँ भी खूब बहेंगी
और यह बहुत डर भी है
कि धूप तो तेज होगी ही
धूप में हम श्रमिकों की समूची देह जलेगी ही
लेकिन हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं
कि इस बार जले न गेहूं किसी का
न फंसे खेत में ही बारिश के चलते
न जमे खेत में ही गेहूं बारिश के चलते !!

 


2-"मोर बाबा कहते थे कि बाबू!"

मोर बाबा कहते थे कि बाबू
कहते थे कि बाबू!
ई दुनिया
ई जगतिया में
हम जेतना देखले -सुनले बानी
कि नेक - नेक अनेक आदमी
जल्दी जल्दी
जी के चुपचाप -चुपचाप
ढ़ह -ढ़ह के मर- मर जाला गांछ - विरिछ के जईसन -
आ बहुत चिरई -चुरूँगन के खातिर
विचार आ सनेह -प्यार के धार बरसा के गुजर जाला ,
गुजर जाला , एक दिन अचके में
आ बाऊर आदमी सैंकड़न बरिशों जी के भी
कुछू ना कर पावेला ...
और सुन बाबू!
कि मर जाला केहु भयावह रोग से
जइसे स्वामी विवेकानंद
कि मर जाला केहु ई दुनिया जगतिया के लोगन के बुरी चाल से
जइसे इसा मसीह
कि केहु मर जाला रे जेल औरी फांसी से
जइसे भगत सिंह
औरी बाबू !
हमनियों के भले माहापुरुख ना हईंजा
बाकिर ,
हमनियों के गरव से कहें के चाहीं
कि हमनियों के किसान -मजुर हईंजा दुनिया जगतिया के पेट पालेवाला
आ हमनियों के त
चुप्पे -चाप ढ़ह- ढ़ह के , मर -मर जाइल जाई
गांछ -विरीछ नियर ,
एक दिन अचके अनहरिया में मर - मर जाइल जाई -
चाहें कारजा के पहाड़ - पर्वत के नीचे चँपा के
चाहें हमनी के मिहनत के उचित दाम नाही मिलत बा ओहीसे
चाहें रोग -शोक चाहें सुखा चाहें बाढ़ आ महाँगाई डाईन के खतरनाख मार से
चाहें घामा में हल जोतते -
येही रे धरतिया पर लड़खड़ा के --!
चाहें मजबुरन सल्फास के जहर पूड़ीया खाके ..
मर मर जाइल जाई
रे मर मर जाइल जाई ..
बाकिर ,
हमनी के शहीद में गिनती ना होखी
हमनी के क़तहूँ मजार ना बनी
फूल ना चढी हमनी के लाश आ मजार पर
हमनी के मरला के बाद
माहापुरुख जईसन नाम ना होई
हमनी के मरला के बाद
ई देश के हजारन जोड़ी अंखिया ना रोई
हमनी के मरला के बाद
ई धारती के महान भगवान मर ज़ईंहें ऐ बाबू !!!!!!!


संपर्क -
खेरनी कछारी गांव
जिला -कार्बीआंगलांग असोम
मोबा0-09365909065

1 टिप्पणी:

  1. चन्दा एक संभावनाशील कवि हैं।कविता का वितान बेहद प्रभावशाली है।

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