2 अक्टूबर1995 को टिहरी गढ़वाल के खासपट्टी पौड़ीखाल के बाँसा की खुलेटी(गौमुख) नामक गांव में दलित परिवार में जन्में बिजेन्द्र सिंह ने राज्य स्तर पर खेल के अलावा विभिन्न क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किया है।स्कूल में हमेशा पढ़ाई में प्रथम आने पर सम्मानित भी हुए हैं। प्रवाह ,भाविसा और पुरवाई पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित । वर्तमान में श्री गुरूराम राय पब्लिक स्कूल देहरादून में अध्ययनरत। आप सुधीजनों के विचारों की हमें प्रतीक्षा रहेगी।
बिजेन्द्र सिंह की कविता
किसने सोचा था
कि
जो हाथ कल
तक
दूसरे को बधाइयां देते
मिल रहे थे
वो एक दूसरे
को
काटने के लिए
तैयार हैं
जो लोग कल
तक
एक दूसरे को
गले लगाकर
खुशी मना रहे
थे
वे एक दूसर
का
गला काटने के
बाद भी
दुखी न थे
आखिर ऐसा क्या
हुआ कि
इंसानियत को पीछे
छोड़
ये लोग धरम
को भगवान मान
बैठे हैं
और दुश्मन बन बैठे
हैं
उन तमाम लोगों
के
जिन्हें शायद ये
पहचानते भी न
होंगे
आखिर क्यों
हल्के मनमुटाव पर भी
जला बैठते हैं
कहीं घर
और उजड़ जाता
है
तमाम इंसानियत का बसेरा
आखिर कब समझेंगे ये लोग
कि सालों से
चलती आ रही
इन हिंसाओं से कोई
लाभ नहीं हुआ
हुआ है तो
सिर्फ
इंसानियत का नाश
अब वक्त आ
गया है
समझने का
एक दूसरे का
दुख दर्द बांटने का
नहीं तो वह
दिन दूर नहीं
जब इंसानियत लोगों को
छू तक नहीं
पायेगी
संपर्क. खासपट्टी पौड़ीखाल के बाँसा की खुलेटी(गौमुख)
टिहरी गढ़वाल
Mo-8171244006
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