08/03/1983
प्रवीण कुमार श्रीवास्तव
उभरते हुए
युवा कवि
हैं जिनकी
कविताएं, कहानी,
लघुकथाएँ, हाइकू ,गीत, ग़ज़ल
आदि विभिन्न
पत्र -पत्रिकाओं
में प्रकाशित
हो चुकी हैं।ये
कविताएं मुझे
अर्से पहले
मिल गई
थीं।लेकिन अपनी कुछ विषम परिस्थितियों
के चलते
पोस्ट नहीं
कर पा
रहा था
जिसका हमें
बहुत मलाल
था।आज 65वें
गणतंत्र दिवस
के अवसर
पर पोस्ट
करते हुए
हमें हर्ष
हो रहा
है कि
देर आए
दुरूस्त आए।
फ्रेंच दाढ़ी
पर नामक
कविता यह
सोचने पर
मजबूर करती
है कि
क्या हम
वाकई आजाद
हैं या
आजादी की
साफ- सुथरी
हवा में
सांस ले
रहे हैं।सोचने
पर विवश
करती
है। डा0 महबूब ऊल हक
और अमर्त्य
सेन की
मानव विकास
की अवधारणा
कहां खाक
छान रही
है। प्रवीण
कुमार श्रीवास्तव
की कविताओं
में बखूबी
देखा जा
सकता है।
इस नये
स्वर का
पुरवाई ब्लाग
पर स्वागत
है।
प्रस्तुत है यहां
उनकी दो
कविताएं-
फ्रेंच दाढ़ी पर
उलझे बिखरे मटमैले
बालों वाली
कलूटी सी बच्ची
बीन रही थी
मुहल्ले के कूड़ेदान
से
कुछ पालीथीन
प्लास्टिक के टुकड़े
माई ने कह
रखा है
उसे
पूरे दिन में
भर लाना
है
एक पूरी बोरी
साथ में है
छोटा भाई
जो पा गया
है
कूड़े में पड़ी
पालीथीन में बंधी
रोटियां
कुतरे जा रहा
था
जल्दी -जल्दी खुश
होता हुआ
कुछ देर बाद
रोज की तरह
काम की चीजें
यानी कि
पालीथीन या कबाड़
में बिक
सकने वाले
सामान छोड़कर
बीनेगा बेकार की
चीजें
मतलब टूटे खिलौने
माचिस की डिब्बियां
धागे
न जाने क्या-
क्या
और सड़क पर
बैठ
ईजाद करने की
कोशिश करेगा
कुछ नया
और जब
देखेगी उसकी बहन
तब चिल्लाएगी गला
फाड़कर
हरामी
और खींचेगी उसके
बाल
फिर धर देगी
उसकी
पीठ पर
दो- तीन मुक्के
गचागच
और जब रोने
लगेगा वो
तो गुदगुदायेगी उसके
पेट में
फिर दोनों
सफेद मोटे-
से दांत
दिखाकर हंसेंगे
लोट जाएंगें सड़क
पर हंसते-
हंसते
कबाड़, धागा , डिब्बी
भूलकर
आज भी हो
रहा था
सब कुछ वही
कि अचानक
घट गया कुछ
नया
क्लिक
सामने मोटरसाइकिल पर
बैठे
आदमी ने
खींच ली फोटो
उनकी
और बढ़ गया
अपने रस्ते
पल भर अवाक
रहने के
बाद
लोट -पोट हो
गये दोनों
प्रेस फोटोग्राफर की
फ्रेंच दाढ़ी पर।
चलन के सिक्के
और नोट
चलन का एक
छोटा सिक्का
दो फैली हुई
आंखें
और उसी के
इर्द -गिर्द
सिमटी हुई
आशाएं और उम्मीदें
खर्च
रोटी से शुरू
और रोटी
पर खत्म
और फिर शुरू
होता है
सपना उसी सिक्के
का
चलन के कुछ
मझोले नोट
दो सिकुड़ी हुई
आंखें
बिजली -पानी का
बिल
बिट्टू की फीस
रोजमर्रा का खर्च
और
बीवी का दिल
इन हकीकतों के
बीच
सपनों की जगह
कहां?
चलन के अनगिनत
सबसे बड़े
नोट
दो बंद आंखें
क्लब- डांसर, बीयर-
बार
रेसकोर्स, कैसीनो, शेयर,
सट्टा
सपनों से परे
हकीकत।
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