मंगलवार, 8 अप्रैल 2014

उमा शंकर मिश्र की कहानी




     
 सरहद की सीमा


सरहद की कोई सीमा हम लोगों के लिए नहीं होती है। पक्षियों का झुंड सीमाओं पर उड़ रहा था।कल ही तो चांदमारी में अनेक पक्षी घायल थे। कुछ मर भी गये थे। लेकिन आज फिर वही अठखेलियां , वही उत्साह , वही उमंग , वही उल्लास कोई फर्क इन पक्षियों पर नहीं पड़ा था। कोई वीजा नहीं , कोई पासपोर्ट नहीं , कोई आदेश-निर्देश इन पंक्षियों पर लागू नहीं होता है।इनकी हर उडा़न इंसान को नयी दिशा देती है ।आशाओं की दुनियाँ में ये केवल उड़कर ही इंसान को शिक्षा देते हैं कि उड़ान भरना मेरी नियति है, मंजिलें नहीं और तुम लोगों को बहुत कुछ सीख लेनी है। प्रकृति से इंसान बहुत कुछ सीख सकता है , लेकिन किसको क्या पड़ी है?कौन किसको पूछता है? कंक्रीट से पीछे हुए ,ये जंगल ,ये चकाचौंध, ये रंग-बिरंगी दुनिया का भौतिकतावाद ये राजनीति ये ,कूटनीति ये ,पाश्चात्य संस्कृति की नकल से परिपूर्ण आधुनिक समाज भी बहुत कुछ कहते हैं।


        आज शंकर उदास था। हताश था। निराश था। लेकिन शंकर बीमार नहीं था। चांदमारी में मारे गये पक्षियों को देखकर वह दुःखी हो गया था। आज सीमाओं पर ड्यूटी कर रहे बड़े अधिकारियों से मिलने का मन बना रहा था। डर उससे कोसों दूर था। बहुत करेगें बात नहीं मानेगें और मुझे जेल में डाल देंगे। सीमाओं पर की गई बैरीकेटिंग पर भी कुछ पंछी बैठकर चहचहा रहे थे। उन्हें क्या पता कि दोनों देशों के राजनीति करने वाले आज तक अपनी राजनीति से कुछ हासिल नहीं कर पाये आतंकवाद ज्यों का त्यों रहा। कुछ वृद्धि अवश्य हो गयी थी।


       सुबह शंकर की पत्नि रंजना ने खेत में ही कलेवा ले जाकर दे दिया । सुनो तुम हमेशा दुःखी रहते हो इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला है । ये सेना के अधिकारी हैं अजीबो-गरीब होते हैं। कहीं बात का बतंगण न बना दे। यदि तुम्हें कुछ हो गया तो मेरी कृति का क्या होगा।


       शंकर ध्यान नहीं दिया। काम करने वाले परिणाम की परवाह नहीं करते हैं । सेना के मेजर जनरल से मिलने क बात सुनकर उनका सचिव कुछ अजीब-सा महसूस किये। एक धोती-कुर्ता पहने किसान की क्या जरूरत सेना के अधिकारी से।शंकर को सीमाओं पर सेना के अधिकारी ने देखा था। अतः मिलने की कोई विशेष औपचारिकता नहीं की गयी। कार्यालय में उसे अन्दर बुला लिया गया। बोलो- अधिकारी ने कहा । हम भी तुम्हारे जैसे एक किसान के ही बेटे हैं ।अपनत्व का प्रदर्शन करते देख शंकर की आँखे छलक आयी। साहब चांदमारी के रिहर्सल में पक्षियां प्रतिदिन घायल होते हैं या मर जाते हैं। इन्हें रोकिये साहब हाथ जोड़ता शंकर फरियाद किया।

       देखो शंकर मुझे भी मालूम है कि हर चहक के पीछे एक खुशी होती है।इंसान ने चहकना इन्हीं से सीखा है । हर उड़ान के पीछे एक आदर्श होता है। इंसान ने आदर्शों और उसूलों के पंख लगाकर उड़ना इन्हीं से अपनाया है। झुंड में रहकर एकता का प्रदर्शन और साथ साथ उड़कर समानता का संदेश भी इसमें छिपा है। नियति समय सूर्यास्त से पहले अपने घोंसले या आवास यानी वृक्षों पर आ कर बैठ जाना ये बताता है कि अनावश्यक रात्रि में न घुमा जाय। रात्रि में इनकी खामोशी भी पूरी रात्रि इंसान को शान्त होकर आराम करना ध्वनि प्रदूषण से रहित होकर जीवन बीताना भी इन्हीं से लिया गया है।

      हर काम हर साहित्य में  इसलिए इन्हें सम्मानित स्थान दिया गया है। मुसिबतों में भीड इन्हीं प्रणियों ने सीता जैसी असहाय माता का साथ निभाया है।तुम जाओ शंकर आज से चांदमारी और रिहर्सल जमीन पर रोक दिया जायेगा। घोसलों में पानी भरकर ये प्रयास किया जा सकता है।अब बन्दूकों की नाल ऊपर नहीं की जायेगी।ये पक्षी तो मेरे दिल में ही नहीं आत्मा में बसते हैं।शंकर जब कार्यालय से बाहर निकला तो कुछ पक्षी मडंराते हुए उसके ऊपर से गुजरे । सेना के अधिकारी और शंकर की मुस्कान में कुछ अर्थ था। और आंसुओं में एक मर्म भरी कहानी। दोनों के हाथ उपर उठे हुए थे। अभिवादन के लिए नहीं पक्षियों के लिए।



       


सम्पर्क उमा शंकर मिश्र
          ऑडिटर श्रम मन्त्रालय
          भारत सरकार
          वाराणसी मोबा0-8005303398

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