उत्तराखण्ड के अति दुर्गम क्षेत्र डुंगरालेटी ,चम्पावत में 1986 में जन्में हयात सिंह ने अभी हाल ही में लेखन की शुरूआत की है। इनकी रचनाएं कई प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। किसी ब्लाग में पहली बार प्रकाशन। स्वागत है इस युवा कवि का। आप सुधीजनों के विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।
पेंटिंग-जहीन,हिमाचल प्रदेश
हयात सिंह की कविताएं-
तुम हिंदी भवन में ही पड़े रहो
जरुरत तो बहुत है उन्हें तुम्हारी
और वो भी टकटकी लगाये
राह निहार रहे होते हैं रोज
शायद तुम इसलिए नहीं जाते वहाँ
कि सूरज नादानों की जिद पर
ग़र जमीं पर उतर आया तो जाने क्या हो जायेगा
जब सैकड़ों प्रकाश वर्ष की दूरी से
गर्मी और तपन का
ये हाल है
लेकिन इधर इसमें कुछ असमंजस भी है
सूरज तो एक है
नादानों को क्या मालूम
आकाशगंगा में कई और भी हैं सूरज
बस उनकी दूरी सैकड़ों नहीं हजारों प्रकाशवर्ष की है
अरे मैं बात कर रहा हूँ
उन बस्तियों की
उन गलियों की
जहाँ कुछ असहाय और मजलूम रहते हैं
जिनकी खातिर तुम
रोज कलम उठाते हो
और गढ़ देते हो
कवितायेँ कहानियाँ
दिल्ली का हिंदी भवन हो या
शिमला का गेटी थियेटर
तुम वातानुकूलित भवनों के भीतर
माइक के सामने
बड़ी जोर से चिल्लाते हो
कि किसान मजदूर को उसका हक़ मिलना चाहिए
फिर इक-दूजे के कहे-लिखे पर
दिनों, महीनों, वर्षों तक ढोल बजाये फिरते हो
मगर किसान-मजदूरों के बीच में
न जाने का तुम्हारा फैसला उचित ही है
वरना वो भी तुम जैसे नाकारा हो गए तो
क्या होगा इस देश का
इस दुनिया का
कौन करेगा मेहनत
होगा कैसे तब नवनिर्माण
पहली बार तुम्हारा कोई फैसला सही साबित हुआ
तुम हिंदी-भवन में ही पड़े रहो
तुम हिंदी भवन में ही पड़े रहो
तुम शिमला ,जयपुर भले कहीं भी जाते रहो
मगर किसान और मजदूरों के बीच।
प्रलय से बचना तुम जानते तो हो ना
उजाड़ दो
खेत-खलिहान
काट डालो जंगलों को
पहाड़ों को खोद डालो
आख़िर सभ्यता का प्रतीक
शहर जो बसाना है तुमको
सूख जाने दो
नदियों को
हो जाने दो भूस्खलन
मिटा दो गाँवों का नामोनिशान
आखिर विज्ञान का चमत्कार दिखाना जो है तुमको
खरीद ही लोगे खुद के लिये
जरुरत पड़ने पर ऑक्सीजन
दौलत का भंडार
जमा जो कर लिये हो
तुम्हें क्या जरुरत
अब और इंसानों की
रोबोट बना तो लिये हो
तुम खुद ही बुला नहीं लेते क्यों
फिर एक आपदा
आखिर तुम्हारे ये अणु-परमाणु
कब काम आयेंगे तुम्हारे
बुला लो प्रलय
कर दो इस युग का अंत
आयेगा नया युग
जहाँ मुझ जैसे कोसने वाले न होंगे
कविताओं में
टोकने वाले न होगें
कोई नहीं
हाँ जी कोई नहीं
बस सिर्फ तुम सिर्फ तुम
तुम प्रलय से खुद को बचाना
जानते तो हो ना।
कलम चलाने वाले
चिनी चिनाई
दीवारों की
लीपा-पोती करने वाले
टूटी
दीवारों की दर से
तांका-झाँकी करने वाले।
बस अपने ही
घर की छत से
टोका-टाकी करने वाले।
लाखों हैं
ऐसी कवितायेँ
और
हजारों करने वाले
इसीलिये तो
बनकर सांड
छुट्टे घूम रहे हैं
सत्ता के मद वाले
पिछले एक दशक से
देख रहा हूँ
गिनती के भी नहीं दिखते
सत्ता को सबक़ सिखाने वाले
इसकी कविता
उसकी कविता
कविता को शान समझने वाले
मूक-बधिर सी
कविता की ख़ातिर
बस आपस में लड़ने वाले।
दुःख और स्वयं
बढ़ता ही रहा
जब देखते रहते कलम चलाने वाले।
संपर्क-
हयात सिंह
डुंगरालेटी ,चम्पावत
उत्तराखण्ड 262524
मोबा0-09560716916
sundar kavitaen badhaee..hayat jee..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...
हटाएंशुक्रिया....
जवाब देंहटाएंसहज व गंभीर कविताएँ..बधाई……
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंशुक्रिया
हटाएंअर्थपूर्ण और सार्थक । बधाई ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...
हटाएं