शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

उमा शंकर मिश्र की कहानी : दिल और गम

स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी अग्रीम शुभ कामनाओं के साथ प्रस्तुत है कहानीकार उमा शंकर मिश्र की कहानी : दिल और गम


     कभी कभी गाँव की भटकती हुई पगडंडी भी विकास के रास्ते से जा मिलती है । कभी कभी निरर्थक विचार भी किसी आविष्कार का कारण बन जाते हैं।कभी कभी प्यार के दो पल भी मौत का दामन थाम लेते हैं। इस तरह की विचारधारा सुलेमान के मन मस्तिष्क के झंकृत कर रहा था।आज गाँव में विकास का चौपाल लगाया जा रहा था। सुबह से ही मीडिया और कुछ खरीदे हुए श्रोता गाँव में इधर उधर भटक रहे थे। जिन लोगों को विकास की रूप रेखा तक नहीं मालूम थी । यही आज नये नये कपड़े पहनकर चौपाल के आस पास मंडरा रहे थे।कंक्रीट के जंगलों से आये इन शहरी लोगों को गांव की हरियाली राश तो नहीं आ रही थी लेकिन 6 घंटे का कार्यक्रम करना तो था ही। इसी के लिए तो सरकार से 10 लाख रू0 मिले हैं कुछ कार्य तो दिखाना ही पड़ेगा।

     सरकारी ऑफिसर सूट पहने पहले भाषण देना प्रारम्भ कर दिया । श्रोता गण कम होने के कारण यह स्थानीय युवक से पूछ रहा था कि भीड़ कम क्यों है।उत्तर में गांव  की एक दो निर्धन महिलायें जो खाना खाने के लिए बुलायी गयी थी। उत्तर दिया स्कूल कालेजों की छुटटी यदि हो जाती तो भीड़ में कुछ इजाफा हो जाता ।पुलिस के कुछ कर्मचारी बैठे मुस्करा रहे थे। जितना विपक्ष को खतरा बताया गया था।वह कहीं भी दिख नहीं रहा था।मुख्य नेता जी दोपहर के 2 बजे पधारे बड़ी जोर शोर से नारे लग रहे थे किराये पर आने वाले कार्यकर्ता लिए हुए पैसे के बदले गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे थे।

     उधर प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका रंजना ने स्कूल न बन्द करने का ऐलान किया।परीक्षा सिर पर है और थोड़ी वाह वाही के लिए बच्चों का  भविष्य चौपट नहीं किया जायेगा।जूनियर हाई स्कूल के अध्यापकों ने हां में हां मिलाया और समर्थन कर दिया।किसी भी चुनाव या चौपाल के लिए शिक्षण संस्थाओं का दुरूप्योग नहीं होने दिया जायेगा।

     मुख्य नेताजी ने अपनी लिस्ट पढ़ा । इस गांव में 3 सरकारी कार्यालय है इस हम लोगों की सरकार ने बनाया है। भीड़ से आवाज आयी सब ढह गया है केवल ऊपर से आज ही चूना लगाया गया है । बिरला सीमेन्ट की बोरी में चूना था हम लोगों ने अपनी आंखो से देखा है नेताजी पेरशान हो गये । दो सरकारी स्कूल हम बनवाने जा रहे हैं। भीड़ से आवाज आयी  उसी स्कूल की बगल में कान्वेन्ट स्कूल चलेगा और वेतन सरकार से लेकर अध्यापक उस प्राइवेट स्कूल में मदद करेगें।यही होता आया है।अगल बगल जाकर देख लें कृपया । आवाज में साक्ष्य था,शक्ति थी,आभार था। अतः जिलाधिकारी जो बहुत देर से तमाशा देख रहे थे जांज का ऐलान किया । नेताजी अपने कार्यकर्ताओं को लेकर चल दिये इस देश के गांव का विकास इसलिए नहीं होता है कि लोग हर काम में अड़चने पैदा करते हैं।

    उधर सूलेमान रंजना की मदद से उच्च न्यायालय में एक रिट दाखिल कर दिया ।उच्च न्यायालय के एक बेन्च ने जांच करने का आदेश दे दिया। जिलाधिकारी का स्थानान्तरण तत्काल कर दिय गया। जांच निष्पक्ष कराने के लिए सरकार को निर्देश दे दिये गये। तथा उस नेता को जिसने गांव में चौपाल लगाया था। उस गांव की तरफ न जाने का निर्देश भी उस आदेश में ही था।

    निष्पक्ष जांच आरम्भ हुई कोर्ट के सख्त रूख के कारण जो नेता गांव में चौपाल लगाये थे। सब जांच के दायरे में आ गये थे। नये जिलाधिकारी इतना घुमावदार निकला कि जांच के परिधि को बढ़ान के लिए कुछ अच्छे नागरिकों से कोर्ट में सप्लीमेन्टरी दाखिल करा दिया। चारों तरफ हाहाकार मचा था। जांच में पिछले 10 साल से चौपाल लगाने में 10 लाख रू0 के दुरूपयोग को पकड़ा गया। जो सड़कें बनायी गयी थीं ।एक भी मौके पर मिली ही नहीं। पगडंडिया जैसे मुह चिढ़ा रही थी।

      मनरेगा में 1 करोड़ ,विधायकी का सारा पैसा,सांसद फंड का सारा धन भ्रष्टाचार की वेदी पर बलिदान किया गया था। जिलाधिकारी गांव के थे । अतः जांच में उनका सहयोग बेमिशाल था। ईमानदारी का जलवा जौ जमीर के सख्त रूख के कारण गुलाम बना हुआ था। आज खुशी का इजहार कर रहा था।

    बेईमानों का दिल जो ईमानदारी को गम दिया था।आज ही गम की परिभाषा को जाना पहचाना और अपने भाग्य को कोसते हुए पुलिस की गाड़ी में बैठ गये।सत्ता की लड़ाई में यह सब होता रहता है।नेताजी अपने आदमियों को समझ रहे थे।नये जिलाधिकारी ने अपने सात दिन के कार्यकाल में गांव की विकास को नजदीक से देखने के लिए दो दिन स्वंय चौपाल लगाने का निर्णय लिया आज
चौपाल के पहले दिन ही जमीन पर बिछी हुई पुरानी दरी पर लोग बैठे थे ।

     नाश्ता में गाँव के जंगली बेर ,कुछ नीबू ,कुछ पपीता आया था।उसे बड़े गाँव के अधिकारी खा रहे थे। उन्हें वह बहुत ही स्वादिष्ट और अच्छे लग रहे थे।दूर दूर तक कहीं जिन्दाबाद के नारे का नामोनिशान ही नहीं था।वातावरण ध्वनि प्रदूषण मुक्त था। पक्षियों की चहचहाहट सबको प्रसन्न कर रही थी दिल में आज गम नहीं था।
सम्पर्क:  उमा शंकर मिश्र
          ऑडिटर श्रम मन्त्रालय
          भारत सरकार
          वाराणसी मोबा0-8005303398

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