भारत सरकार,सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय में प्रथम श्रेणी अधिकारी। पहली कहानी 1987 में ’नैतिकता का पुजारी’ लिखी। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं यथा-हंस,कथादेश,समकालीन भारतीय साहित्य,साक्षात्कार,पाखी,दैनिक भास्कर, नयी दुनिया, नवनीत, शुभ तारिका, अक्षरपर्व,लमही, कथाक्रम, परिकथा, शब्दयोग, इत्यादि में कहानियॉ प्रकाशित। पॉच
कहानी-संग्रह ’आखिरकार’ (2009), ’धर्मसंकट’(2009), ’अतीतजीवी’ (2011), ’वामन अवतार’ (2013), और ’आत्मविश्वास’ (2014) प्रकाशित। ’ऑगन वाला घर’ शीर्षक से एक उपन्यास प्रकाशनाधीन।
समाज में फैल रही सामाजिक बुराइयों जिनमें लड़कियों के प्रति
पैशाचिक सोच वालों से सचेत रहने की जिस मार्मिक पीड़ा से एक मां गुजर रही है उसकी महीन
बुनावट इस कहानी में बखूबी देखा जा सकता है। कहानी के बारे में बहुत कुछ कहने की जरूरत
नहीं है । तो आइये पढ़ते हैं मनीष कुमार सिंह की कहानी नया आकाश ।
नया आकाश
मॉ ने आवाज देकर रिमझिम को पार्क से बुलाया,'' कितनी देर से तेरा इंतजार कर रही थी ...... दिन भर खेलती रहेगी या पढ़ाई में भी कुछ ध्यान देगी ?''
''कहॉ मम्मी, आधा घंटा पहले ही तो निकली थी। देखो ना सारे बच्चे खेल रहे हैं। अभी टाइम ही कितना हुआ है!'' उसने घड़ी में अंकित समय की बात न करके चारों ओर फैली सूरज की रोशनी की तरफ इशारा किया। दिन ढ़लने में वाकई काफी समय शेष था। मॉ ने इस पर ध्यान न देकर कहा, ''पहले घर चलो फिर बात करेंगे।''
रास्ते में मॉ ने समझाने का काम आरम्भ किया। ''देखो बेटी, पार्क में खेलने वाले सारे लोगों से हमें क्या मतलब। तुम अब बड़ी क्लास में आ गयी हो। जमाना ठीक नहीं है। अपनी पढ़ाई की तरफ देखो। पार्क में कई तरह के लोग आते हैं। परसों मैंने देखा कि एक कोने में तुम दो लड़कों के साथ पौधा रोप रही थी। रिमझिम, जमाना ठीक नहीं है।'' वाक्यांश का अर्थ व आशय वह समझ नहीं पायी, न ही कई तरह के लोगों की बात उसके पल्ले पड़ी। पर पौधा लगाने की बात पर उसने कहा, ''मम्मी, हमारे स्कूल में इन्वायरनमेंट अवेयरनेस पर मैडम सिखाती हैं कि स्टूडेंटस् को खाली जमीन पर पेड़ लगाने चाहिए। हरियाली से हमें ऑक्सीजन मिलती है। मैं वही कर रही थी। वे लड़के हमारे स्कूल के ही हैं। पास में उनका घर है।''
अब तक घर आ गया था। मॉ ने बड़े प्यार से कहा, ''देखो बेटी, वह सब ठीक है, लेकिन तुम लड़की जात हो। तुम्हें अपनी हिफाजत करना सीखनी चाहिए। तुम अभी तक बच्ची बनी हुई हो। ऐसे कैसे चलेगा?'' रिमझिम पुन: अपनी मॉ की बात का संदर्भ नहीं समझ पायी। वह कमरे में मौजूद पेंटिंग और हस्तकला के नमूने देखने लगी। इनमें से कुछ उसने बनाये थे। उसने सोचा कि मॉ पढ़ाई पर ध्यान देने की बात कह रही है। बोली, ''मम्मी, मेरे मार्क्स पिछले यूनिट टेस्ट में कितने अच्छे आये थे! पूर्णिमा और रुचि को भी पीछे छोड़ दिया था। मैं पढ़ती तो हॅू। अब क्या दिन भर घर में बैठकर बोर होऊॅ? मम्मी, आपने टी.वी. भी तो बंद करवा दिया है।''
''बेटा, तुम्हारे भले के लिए ही ना,'' मॉ वास्तम में बेहद गम्भीर थी, ''तुम अखबार नहीं पढ़ती हो? टी.वी. में खबरें नहीं देखती?'' मॉ ने अप्रत्यक्ष रुप से किसी दिशा में संकेत किया। रिमझिम अपनी धुन में खोयी हुई थी। मॉ ने समझ लिया कि उसकी तेरह साल की लड़की को न तो बात समझ में आ रही है और न ही वह ध्यान दे रही है। गुस्से को दबाकर उसने शांति से कहा, ''बेटा, यह दुनिया इतनी सीधी नहीं है, तुम अभी बच्ची हो।'' यह कहकर उसने अपनी पुत्री को और असमंजस में डाल दिया। अभी तो मॉ उसे बड़ी मान रही थीं। देर तक चले इस एकतरफा सम्बोधन में मॉ ने देखा कि रिमझिम अपनी पेंसिल से कागज पर लकीरें खींचती तो कभी हफ्ते भर पहले खरीदी गयी अपनी ब्रेसलेट को निकालती और पहनती। बात की समाप्ति मॉ ने यह कहकर किया कि अगर कुछ ऊॅच-नीच हुआ तो वह पंखे से लटक कर अपनी जान दे देगी, क्योंकि उसके लिए इज्जत जान से ज्यादा प्यारी है।
अखबारों व टी.वी. में ऐसी-वैसी खबरें आती रहती थी, पर पिछले दिनों जब मॉ को लगातार यह पढ़ने को मिला कि तीन महीने से लेकर तेरह साल की बच्चियों को अस्पताल के डॉक्टरों, कर्मचारियों, निकट सम्बन्धियों, नितांत परिचित लोगों, बड़ी उम्र के पड़ोसियों व अनजान व्यक्तियों ने अपनी हवस का शिकार बनाया तो वह कॉप उठी। किस पर यकीन करे? चौबीसों घंटे कैसे बच्ची की सुरक्षा करे? इसी रिहायशी इलाके में जब ऐसी दो घटनाऍ एक के बाद एक अल्प अंतराल पर हुई तो वह अपनी सहेलियों व पड़ोसिनों से इस पर चर्चा करने को विवश हुई। घरेलू औरतों की चर्चा कैसी होगी! सबने इस भय को किसी और घटना से जोड़कर और वृहद् किया तथा भगवान का नाम लेकर रह गयीं। कुछेक ने टी.वी.ए फिल्मों को कोसा तो कोई पुलिस की नाकामयाबी को मुख्य दोषी मानती थी। एकाध ने तो घर के संस्कारों को भी दोष दिया। यह बताया कि कैसे यहीं पर उनके जान-पहचान के घरों में लड़कियों को उनके घरवालों ने कितनी उलटी-सीधी छूट दे रखी है। सारा दोष औरों का नहीं है। कुछ घर का नियंत्रण भी होना चाहिए। इस बात पर मॉ पूर्णतया सहमत दिखी। उस महिला ने खास तौर पर एक घर का इस विषय में जिक्र किया। मॉ उस चीज को पकड़कर रखना चाहती थी जो उसके नियंत्रण में था। दुनिया-जहान को सुधारा नहीं जा सकता है, लेकिन खुद अपनी औलाद को तो समझा सकते हैं।
एक किशोर लड़की ने अपने हाल में बने मित्र के साथ घरवालों को बिना इत्तिला किये घूमना-फिरना शुरु किया। एक दिन कुछ असामाजिक तत्वों ने लड़के को मार-पीटकर अधमरा कर दिया और लड़की के सम्मान को नष्ट किया। इस बात पर दुख प्रकट करने के अलावा महिलाओं ने प्राय: एक स्वर में लड़की की अतिरिक्त स्वतंत्रता को गलत ठहराया। क्या जरुरत थी एक अनजान से लड़के के साथ घूमने की? क्या जानती थी वह उसके बारे में?
मॉ ने निश्चय किया कि वह अपने पति से इसी दम बात करेगी। लड़की के बारे में मॉ को हर बात पिता को नहीं बतानी चाहिए। पर यह सवाल ऐसा था जो माता-पिता दोनों को मिलकर हल करना था। उसकी बेटी भोली है। दुनिया से अनजान है लेकिन प्राकृतिक द्दष्टि से बड़ी हो गयी है। बड़ी होती जा रही है। शरीर के हिसाब से समझ विकसित नहीं हुई है। यह सदैव आनुपातिक हो कोई जरुरी नहीं। जमाना हाड़-मांस को देखता है। मन का भोलापन नहीं। अब देखो ना, इसी की क्लास की दूसरी लड़कियॉ कितनी तेज हैं। राह चलते वह उसी के उम्र की लड़कियों को कई लड़कों के साथ घूमते देखती हैं।
वैसे तो घरवालों ने रिमझिम को अलग से कोई मोबाइल नहीं दिया था। वह अपनी मॉ की मोबाइल पर गेम खेलती थी। इधर कुछ दिनों से उसकी एक सहेली का एस.एम.एस. आता था। एक दिन मॉ ने इनबॉक्स में देखा कि वैलेन्टाइन डे की पूर्वसंध्या पर कुछेक ऐसे एस.एम.एस. थे जो इस उम्र की लड़कियों के लिए बेहद बेहूदे कहे जाएगें। ''तुम्हारी ऐसी लड़कियों से दोस्ती है? इस तरह की बातें करते हैं।'' वह फट पड़ी। ''मैं तुम्हारे क्लास टीचर से मिलॅूगी। अपनी संगत ठीक रखो।''
''मैंने क्या किया है?'' वह बेचारी परेशान होकर पूछ बैठी। समझ नहीं पा रही थी कि आजकल उसकी मॉ इतना सब क्यों उसे सुनाती-समझाती रहती है। ''तुमने कुछ किया नहीं है...,'' मॉ ने अपने प्रारम्भिक आवेश को पीछे रखकर धैर्यपूर्वक अभिभावकीय दायित्व से आगे कहने लगी, ''पर मैं समझा रही हॅू कि आज जमाना कैसा है, लड़की को क्या-क्या सावधानी रखनी चाहिए।''
मॉ को अपनी मॉ की कही बात याद आयी। लड़की की मॉ की पीछे भी ऑखें होनी चाहिए। घर में रिमझिम के पापा से दीर्घ वार्ता के पश्चात् वे इसी निष्कर्ष पर पहॅुची कि मॉ-बाप के आर्त्त कोलाहल से द्रवित होकर भेडि़ए अपने कारनामे बंद नहीं कर देगें। अपना ध्यान खुद रखना होगा। कहीं और से नवीन आलोक विकीर्ण होने की सम्भावना क्षीण है। रिमझिम मासूम है। इस विषय में उन्हें कोई संशय नहीं था। अपनी औलाद है। उसके बारे में सब जानती है। पर घर के बाहर स्कूल है, सड़कें-पार्क हैं, सहेलियों का प्रभाव है। लम्पट लोग शिक्षक, पड़ोसी आदि के वेष में हो सकते हैं, कैसे निपटे उनसे....? एक बार रिक्शे से आते हुए एक बड़े स्कूल परिसर के बाहर मॉ ने देखा कि विद्यार्थियों का हुजूम इकठ्ठा था। छुट्टी का समय होगा। बारहवीं तक का स्कूल था। एक लड़की दो-तीन लड़कों के साथ कुछ अलग बैठकर मोबाइल पर कुछ कह रही थी। वह असहमतिपरक मुद्रा में सिर हिलाने लगी। क्या जमाना आ गया है! अभी से...।
बाहर वाले कमरे में पतिदेव अपने किसी मित्र से बात कर रहे थे। मित्र की आवाज आ रही थी-''इंसान खाने-पीने और पहनने-ओढ़ने तक में आज कंजूसी कर सकता है लेकिन सिक्यूरिटी के सवाल पर कम्प्रोमाइज नहीं कर सकता। आजकल पढ़े-लिखे तबके इसी बेसिस पर आर्गेनाइज्ड हुए हैं। नहीं तो साहब आज कौन किससे बिना किसी रिजन के बात करता है?'' मित्र के विचार पर पति सहमति दर्शा रहे थे। यहॉ बैठी मॉ ने यही अनुमान लगाया। मित्र ने आगे कहा, ''भई आजकल नौकरों, सिक्यूरिटी गार्ड्स इन सभी का पुलिस वेरिफिकेशन होता है। फिर भी क्राइम का आलम यह है कि किसी को किसी पर भरोसा नहीं रहा। जनाब ज्वाइंट फैमिली अब रही नहीं। पुराने संस्कार कौन सिखाएगा? नये जमाने के बच्चे स्कूल-कॉलेज, इंटरनेट, टी.वी., फिल्मों वगैरह से ज्यादा इंफ्लुएंस होते हैं। कई मॉ-बाप के पास टाइम नहीं है अपनी औलाद के साथ समय गुजारने का।'' थोड़े में उन्होंने समकालीन समाज का विहंगम चित्र प्रस्तुत किया।
बैठे-बैठे मॉ की कब ऑख लग गयी पता नहीं चला। उसे सहसा यह प्रतीत हुआ कि रिमझिम उसे हिलाकर उठाने का प्रयास कर रही है- मम्मी देखो मुझे नवरात्रि में किसी ने नहीं बुलाया। पहले मैं सभी आंटी के यहॉ जाती थी। मॉ की ऑख खुल नहीं रही थी। तभी उसे रिमझिम की द्रवित करने वाली पुकार दुबारा सुनाई दी। उसे ऑख बंद किये हुए ही दिखाई दिया कि चार काले भुजंग मुस्तंडे उसकी बेटी को ले जाने के लिए उद्यत हैं। वह डर के मारे टेबल के नीचे छिप गयी है। घबराहट में मॉ की नींद तुरंत टूट जाती है। वह दौड़कर उसके कमरे की तरफ भागी। वह पलंग पर आराम से सोयी हुई थी। मॉ ने नाम लेकर उसे हिलाया। लेकिन वह गहरी नींद में थी। उसने गौर किया कि रिमझिम च्युइंगम मॅुह मे लिए ही सो गयी थी। वैसे तो उसके विकास को देखकर अपनी उम्र से बड़ी दिखती थी, परंतु सोती हुई वह बेहद छोटी दिख रही थी। मॉ के मन में आया कि वह शिव की भॉति विरुपक्ष होकर बिना किसी को दिखाई दिए हमेशा उसके साथ रहे। यदि अपनी सुविधानुसार ऐसा निराकार रुप धारण करना सम्भव होता तो वह यही करती।
''कहॉ मम्मी, आधा घंटा पहले ही तो निकली थी। देखो ना सारे बच्चे खेल रहे हैं। अभी टाइम ही कितना हुआ है!'' उसने घड़ी में अंकित समय की बात न करके चारों ओर फैली सूरज की रोशनी की तरफ इशारा किया। दिन ढ़लने में वाकई काफी समय शेष था। मॉ ने इस पर ध्यान न देकर कहा, ''पहले घर चलो फिर बात करेंगे।''
रास्ते में मॉ ने समझाने का काम आरम्भ किया। ''देखो बेटी, पार्क में खेलने वाले सारे लोगों से हमें क्या मतलब। तुम अब बड़ी क्लास में आ गयी हो। जमाना ठीक नहीं है। अपनी पढ़ाई की तरफ देखो। पार्क में कई तरह के लोग आते हैं। परसों मैंने देखा कि एक कोने में तुम दो लड़कों के साथ पौधा रोप रही थी। रिमझिम, जमाना ठीक नहीं है।'' वाक्यांश का अर्थ व आशय वह समझ नहीं पायी, न ही कई तरह के लोगों की बात उसके पल्ले पड़ी। पर पौधा लगाने की बात पर उसने कहा, ''मम्मी, हमारे स्कूल में इन्वायरनमेंट अवेयरनेस पर मैडम सिखाती हैं कि स्टूडेंटस् को खाली जमीन पर पेड़ लगाने चाहिए। हरियाली से हमें ऑक्सीजन मिलती है। मैं वही कर रही थी। वे लड़के हमारे स्कूल के ही हैं। पास में उनका घर है।''
अब तक घर आ गया था। मॉ ने बड़े प्यार से कहा, ''देखो बेटी, वह सब ठीक है, लेकिन तुम लड़की जात हो। तुम्हें अपनी हिफाजत करना सीखनी चाहिए। तुम अभी तक बच्ची बनी हुई हो। ऐसे कैसे चलेगा?'' रिमझिम पुन: अपनी मॉ की बात का संदर्भ नहीं समझ पायी। वह कमरे में मौजूद पेंटिंग और हस्तकला के नमूने देखने लगी। इनमें से कुछ उसने बनाये थे। उसने सोचा कि मॉ पढ़ाई पर ध्यान देने की बात कह रही है। बोली, ''मम्मी, मेरे मार्क्स पिछले यूनिट टेस्ट में कितने अच्छे आये थे! पूर्णिमा और रुचि को भी पीछे छोड़ दिया था। मैं पढ़ती तो हॅू। अब क्या दिन भर घर में बैठकर बोर होऊॅ? मम्मी, आपने टी.वी. भी तो बंद करवा दिया है।''
''बेटा, तुम्हारे भले के लिए ही ना,'' मॉ वास्तम में बेहद गम्भीर थी, ''तुम अखबार नहीं पढ़ती हो? टी.वी. में खबरें नहीं देखती?'' मॉ ने अप्रत्यक्ष रुप से किसी दिशा में संकेत किया। रिमझिम अपनी धुन में खोयी हुई थी। मॉ ने समझ लिया कि उसकी तेरह साल की लड़की को न तो बात समझ में आ रही है और न ही वह ध्यान दे रही है। गुस्से को दबाकर उसने शांति से कहा, ''बेटा, यह दुनिया इतनी सीधी नहीं है, तुम अभी बच्ची हो।'' यह कहकर उसने अपनी पुत्री को और असमंजस में डाल दिया। अभी तो मॉ उसे बड़ी मान रही थीं। देर तक चले इस एकतरफा सम्बोधन में मॉ ने देखा कि रिमझिम अपनी पेंसिल से कागज पर लकीरें खींचती तो कभी हफ्ते भर पहले खरीदी गयी अपनी ब्रेसलेट को निकालती और पहनती। बात की समाप्ति मॉ ने यह कहकर किया कि अगर कुछ ऊॅच-नीच हुआ तो वह पंखे से लटक कर अपनी जान दे देगी, क्योंकि उसके लिए इज्जत जान से ज्यादा प्यारी है।
अखबारों व टी.वी. में ऐसी-वैसी खबरें आती रहती थी, पर पिछले दिनों जब मॉ को लगातार यह पढ़ने को मिला कि तीन महीने से लेकर तेरह साल की बच्चियों को अस्पताल के डॉक्टरों, कर्मचारियों, निकट सम्बन्धियों, नितांत परिचित लोगों, बड़ी उम्र के पड़ोसियों व अनजान व्यक्तियों ने अपनी हवस का शिकार बनाया तो वह कॉप उठी। किस पर यकीन करे? चौबीसों घंटे कैसे बच्ची की सुरक्षा करे? इसी रिहायशी इलाके में जब ऐसी दो घटनाऍ एक के बाद एक अल्प अंतराल पर हुई तो वह अपनी सहेलियों व पड़ोसिनों से इस पर चर्चा करने को विवश हुई। घरेलू औरतों की चर्चा कैसी होगी! सबने इस भय को किसी और घटना से जोड़कर और वृहद् किया तथा भगवान का नाम लेकर रह गयीं। कुछेक ने टी.वी.ए फिल्मों को कोसा तो कोई पुलिस की नाकामयाबी को मुख्य दोषी मानती थी। एकाध ने तो घर के संस्कारों को भी दोष दिया। यह बताया कि कैसे यहीं पर उनके जान-पहचान के घरों में लड़कियों को उनके घरवालों ने कितनी उलटी-सीधी छूट दे रखी है। सारा दोष औरों का नहीं है। कुछ घर का नियंत्रण भी होना चाहिए। इस बात पर मॉ पूर्णतया सहमत दिखी। उस महिला ने खास तौर पर एक घर का इस विषय में जिक्र किया। मॉ उस चीज को पकड़कर रखना चाहती थी जो उसके नियंत्रण में था। दुनिया-जहान को सुधारा नहीं जा सकता है, लेकिन खुद अपनी औलाद को तो समझा सकते हैं।
एक किशोर लड़की ने अपने हाल में बने मित्र के साथ घरवालों को बिना इत्तिला किये घूमना-फिरना शुरु किया। एक दिन कुछ असामाजिक तत्वों ने लड़के को मार-पीटकर अधमरा कर दिया और लड़की के सम्मान को नष्ट किया। इस बात पर दुख प्रकट करने के अलावा महिलाओं ने प्राय: एक स्वर में लड़की की अतिरिक्त स्वतंत्रता को गलत ठहराया। क्या जरुरत थी एक अनजान से लड़के के साथ घूमने की? क्या जानती थी वह उसके बारे में?
मॉ ने निश्चय किया कि वह अपने पति से इसी दम बात करेगी। लड़की के बारे में मॉ को हर बात पिता को नहीं बतानी चाहिए। पर यह सवाल ऐसा था जो माता-पिता दोनों को मिलकर हल करना था। उसकी बेटी भोली है। दुनिया से अनजान है लेकिन प्राकृतिक द्दष्टि से बड़ी हो गयी है। बड़ी होती जा रही है। शरीर के हिसाब से समझ विकसित नहीं हुई है। यह सदैव आनुपातिक हो कोई जरुरी नहीं। जमाना हाड़-मांस को देखता है। मन का भोलापन नहीं। अब देखो ना, इसी की क्लास की दूसरी लड़कियॉ कितनी तेज हैं। राह चलते वह उसी के उम्र की लड़कियों को कई लड़कों के साथ घूमते देखती हैं।
वैसे तो घरवालों ने रिमझिम को अलग से कोई मोबाइल नहीं दिया था। वह अपनी मॉ की मोबाइल पर गेम खेलती थी। इधर कुछ दिनों से उसकी एक सहेली का एस.एम.एस. आता था। एक दिन मॉ ने इनबॉक्स में देखा कि वैलेन्टाइन डे की पूर्वसंध्या पर कुछेक ऐसे एस.एम.एस. थे जो इस उम्र की लड़कियों के लिए बेहद बेहूदे कहे जाएगें। ''तुम्हारी ऐसी लड़कियों से दोस्ती है? इस तरह की बातें करते हैं।'' वह फट पड़ी। ''मैं तुम्हारे क्लास टीचर से मिलॅूगी। अपनी संगत ठीक रखो।''
''मैंने क्या किया है?'' वह बेचारी परेशान होकर पूछ बैठी। समझ नहीं पा रही थी कि आजकल उसकी मॉ इतना सब क्यों उसे सुनाती-समझाती रहती है। ''तुमने कुछ किया नहीं है...,'' मॉ ने अपने प्रारम्भिक आवेश को पीछे रखकर धैर्यपूर्वक अभिभावकीय दायित्व से आगे कहने लगी, ''पर मैं समझा रही हॅू कि आज जमाना कैसा है, लड़की को क्या-क्या सावधानी रखनी चाहिए।''
मॉ को अपनी मॉ की कही बात याद आयी। लड़की की मॉ की पीछे भी ऑखें होनी चाहिए। घर में रिमझिम के पापा से दीर्घ वार्ता के पश्चात् वे इसी निष्कर्ष पर पहॅुची कि मॉ-बाप के आर्त्त कोलाहल से द्रवित होकर भेडि़ए अपने कारनामे बंद नहीं कर देगें। अपना ध्यान खुद रखना होगा। कहीं और से नवीन आलोक विकीर्ण होने की सम्भावना क्षीण है। रिमझिम मासूम है। इस विषय में उन्हें कोई संशय नहीं था। अपनी औलाद है। उसके बारे में सब जानती है। पर घर के बाहर स्कूल है, सड़कें-पार्क हैं, सहेलियों का प्रभाव है। लम्पट लोग शिक्षक, पड़ोसी आदि के वेष में हो सकते हैं, कैसे निपटे उनसे....? एक बार रिक्शे से आते हुए एक बड़े स्कूल परिसर के बाहर मॉ ने देखा कि विद्यार्थियों का हुजूम इकठ्ठा था। छुट्टी का समय होगा। बारहवीं तक का स्कूल था। एक लड़की दो-तीन लड़कों के साथ कुछ अलग बैठकर मोबाइल पर कुछ कह रही थी। वह असहमतिपरक मुद्रा में सिर हिलाने लगी। क्या जमाना आ गया है! अभी से...।
बाहर वाले कमरे में पतिदेव अपने किसी मित्र से बात कर रहे थे। मित्र की आवाज आ रही थी-''इंसान खाने-पीने और पहनने-ओढ़ने तक में आज कंजूसी कर सकता है लेकिन सिक्यूरिटी के सवाल पर कम्प्रोमाइज नहीं कर सकता। आजकल पढ़े-लिखे तबके इसी बेसिस पर आर्गेनाइज्ड हुए हैं। नहीं तो साहब आज कौन किससे बिना किसी रिजन के बात करता है?'' मित्र के विचार पर पति सहमति दर्शा रहे थे। यहॉ बैठी मॉ ने यही अनुमान लगाया। मित्र ने आगे कहा, ''भई आजकल नौकरों, सिक्यूरिटी गार्ड्स इन सभी का पुलिस वेरिफिकेशन होता है। फिर भी क्राइम का आलम यह है कि किसी को किसी पर भरोसा नहीं रहा। जनाब ज्वाइंट फैमिली अब रही नहीं। पुराने संस्कार कौन सिखाएगा? नये जमाने के बच्चे स्कूल-कॉलेज, इंटरनेट, टी.वी., फिल्मों वगैरह से ज्यादा इंफ्लुएंस होते हैं। कई मॉ-बाप के पास टाइम नहीं है अपनी औलाद के साथ समय गुजारने का।'' थोड़े में उन्होंने समकालीन समाज का विहंगम चित्र प्रस्तुत किया।
बैठे-बैठे मॉ की कब ऑख लग गयी पता नहीं चला। उसे सहसा यह प्रतीत हुआ कि रिमझिम उसे हिलाकर उठाने का प्रयास कर रही है- मम्मी देखो मुझे नवरात्रि में किसी ने नहीं बुलाया। पहले मैं सभी आंटी के यहॉ जाती थी। मॉ की ऑख खुल नहीं रही थी। तभी उसे रिमझिम की द्रवित करने वाली पुकार दुबारा सुनाई दी। उसे ऑख बंद किये हुए ही दिखाई दिया कि चार काले भुजंग मुस्तंडे उसकी बेटी को ले जाने के लिए उद्यत हैं। वह डर के मारे टेबल के नीचे छिप गयी है। घबराहट में मॉ की नींद तुरंत टूट जाती है। वह दौड़कर उसके कमरे की तरफ भागी। वह पलंग पर आराम से सोयी हुई थी। मॉ ने नाम लेकर उसे हिलाया। लेकिन वह गहरी नींद में थी। उसने गौर किया कि रिमझिम च्युइंगम मॅुह मे लिए ही सो गयी थी। वैसे तो उसके विकास को देखकर अपनी उम्र से बड़ी दिखती थी, परंतु सोती हुई वह बेहद छोटी दिख रही थी। मॉ के मन में आया कि वह शिव की भॉति विरुपक्ष होकर बिना किसी को दिखाई दिए हमेशा उसके साथ रहे। यदि अपनी सुविधानुसार ऐसा निराकार रुप धारण करना सम्भव होता तो वह यही करती।
गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश
पिन-201010
मोबाइल: 09868140022
ईमेल: manishkumarsingh513@gmail.com
मार्मिक कहानी है भाई... बधाई.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रदीप जी।
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हटाएंबहुत भावपूर्ण कहानी...
जवाब देंहटाएंwow! very sensitive story Manish sir ! its touches my heart deeply,your story is really awesome !keep posting new stories please.
जवाब देंहटाएंbest matrimonial portal