शुक्रवार, 5 जून 2020

सुवेश यादव के दोहे

      


          17 सितंबर 1980 में जनपद कानपुर नगर में  शीशूपुर,करबिगवां गांव में जन्में सुवेश यादव ने खेती-बाड़ी करते हुए कविताएं भी लिखते हैं । अब तक विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इनके गीत, ग़ज़ल, दोहा एवं लघुकथाएँ इत्यादि प्रकाशित हो चुकी हैं । संप्रति - ग्रामीण पाठशाला में प्राइवेट शिक्षक एवं लघु कृषक ।
       बकौल सुरेन्द्र कुमार- दोस्तों दोहों का चलन आज से ही नहीं, सदियों सदियों तक का है । सिर्फ दो लाइनों में पूरी कथा बयां हो जाती है । हमने जबसे होश संभाला तबसे अपने बुजुर्गों की ज़बान से बोलते हुए सुना है । मसलन कोई बात समझानी हो, कोई सीख देनी हो, दोहों का सहारा लिया जाता है । ये दोहों की बहुत बड़ी  कुव्वत है । फिल्मी गीतों की प्रसिद्धि के साथ-साथ लोकगीतों के साथ साथ दोहे अपना मुकाम बनाए हुए हैं । आप बिहारी, रहीम और कबीर के दोहे देख लीजिए । इनकी भाषा सरल है । समझ में आने लायक है । तभी तो लोकप्रिय हैं आजकल । जो हिंदी में दोहे लिखे जा रहे हैं बहुत अच्छे लिखे जा रहे हैं ।
       इसी क्रम में एक संभावना शील, अपनी माटी से जुड़ा हुआ नव अंकुर दोहेकार सुवेश यादव के प्रस्तुत हैं कुछ दोहे
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कंगूरों पर है लिखा , चारण जी का नाम ।
छुपा नींव की ईंट सा ,
है जनकवि गुमनाम ॥

अपनी मिट्टी पर उसे , होगा कैसे नाज ।
जिसने पहना ही नहीं , खुद्दारी का ताज ॥

चरण चढ़े कुचले गए , हम श्रद्धा के फूल ।
बगुले में हंसा दिखा , हुई यहीं पर भूल ॥

हम माटी के लोग हैं , हमसे पूछो साब ।
सोनचिरैया क्यूं मरी , देंगे सही जवाब ॥

दो पंखों का इक चिड़ा , उड़ता मेरे गाँव ।
एक पंख में धूप है , दूजे में है छाँव ॥

मेरे गाढ़े वक्त में , कतरा रहे हुजूर ।
बरगद सा विश्वास था , अब रह गया खजूर ॥

सादा सा इंसान हूँ , ज्यादा नहीं शऊर ।
दुनियादारी का नमक , मुझमें नहीं हुजूर ॥

अपनी अपनी शान है , अपने अपने ठाट ।
शहंशाह का तख्त हो , या फ़कीर की खाट ॥

 सड़क बनी श्रमदान से , श्रमिक हुए गुमनाम ।
 शिलालेख पर है खुदा , शहंशाह का नाम ॥ 

घिसती जाती चप्पलें , बढ़ता जाता कर्ज ।
दो पैसे की चाकरी , अच्छा खासा मर्ज ॥

चार अंक की सैलरी , छ: अंकों के खर्च ।
मास्साब की जिंदगी , का ये नया रिसर्च ॥

जब जब थामी लेखनी , उपजा यह विश्वास ।
बाहर भी आकाश है , भीतर भी आकाश ॥



संपर्क -
शीशूपुर,करबिगवां
जनपद - कानपुर नगर
मो0 - 6393009448  /  8874921985    

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