असोम के कार्बीआंगलांग जिले में एक किसान परिवार
में जन्में युवा कवि चन्द्र ने कविता लेखन के साथ श्रम की एक नयी परिभाषा गढ़ी है ।
मजदूर दिवस पर प्रस्तुत है उनकी एक कविता-
रात के ठीक बारह बज रहे हैं
रात के ठीक बारह बज रहे हैं
मैं अकेले सुदूर खेतों में
गेहूँ का खेत अगोर रहा हूँ
और आप अभी इस वक्त
एक नहीं,कई-कई मछरदानियों के भीतर
कई-कई राजाईयों के भीतर
रजाओं की तरह गर्म साँस ले रहें होंगे!
मेरी खतरनाक खाँसी बढ़ती जा रही है
मेरा जिस्म बर्फ का पत्थर हुआ जा रहा है
मेरे पास माचिस की एक तीली भी नहीं बची है
खैनी की आखिरी खिल्ली है मेरी चिनौटी में
जिससे मैं पूष की रात पूरी तरह गुजार सकूँगा
जंगली सियार हुआँ-हुआँ कर रहे हैं खेतों के इर्द-गिर्द
लगभग चीख और चुप्पियों से भरी हुई है खेतों की दुनिया
झींगुरों के संगीत
मेरी आत्मा की मिट्टी को छेदते जा रहे हैं
जंगली हाथियों के झुंड
बर्बाद कर रहे हैं गन्ने की लहराती हुई खेतियाँ
आचानक इन्हीं में से कोई हाथी
छुट्टे सांड की तरह अकेला आएगा
मुझे मार देगा और आप सुबह
खेतों में पड़ी हुई मेरी लाश को
दीफू के सिविल अस्पताल में ले जाएँगे पोस्टमार्टम करने!
सुबह अखबार में छपेगा
कि गेहूँ अगोरते वक्त बुरी तरह से मारा गया मोहन
और मोहन के साथी मारे गए
यह कहानी,यह कविता नहीं है समझदार लोगों!
सीमा पर जवानों की तरह शहीद हुए
एक नहीं लाखों,करोड़ों किसानों की वीरगाथा है
यह
जिसकी मरसिए मैं नहीं लिख सकूँगा कभी भी!
संपर्क - खेरनी कछारी गांव
जिला -कार्बीआंगलांग असोम
मोबा0-09365909065
जिला -कार्बीआंगलांग असोम
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