हमारे समय के महत्वपूर्ण युवा कहानीकार विक्रम सिंह की कई कहानियों को इस ब्लाग में पढ़ चुके हैं। इनकी चर्चित लम्बी कहानी बद्दू की आज तीसरी किस्त। यह कहानी मंतव्य में प्रकाशित हो चुकी है।
सऊदी अरब जाने की
तैयारी
अब चूंकि पलटन का
लड़का धनंजय पढ लिख कर बेरोजगार खेत में हल चला रहा था। मगर खेत से पैसे नहीं उगने
थे। खेत में सिर्फ अन्न उगता था। उसी अन्न को खरीद कर अपना पेट भरने के लिए दुनिया
पैसे कमाने के लिए पृथ्वी के हर कौने मे जाने के लिए तैयार थी जहाँ पैसा मिल सके
जहाँ पैसो की भरपूर खेती कर सके। सो पैसो के लिए शहर में दूध बेचने जाया करता था।
दूध दूह वर्तन में डाल होटल मे देता फिर रहा था। वह जब भी खेत में हल चला रहा होता
पलटन को ऐसा लगता जैसे उसके दिल में कोई खंजर चला रहा हो। वर्तन में दूध ले जाते
वक्त तो ऐसा लगता कि जैसे खंजर लगे पर कोई नमक छिड़क रहा हो। गॉव में ज्यादा तर
जिनके पास नौकरी चाकरी नहीं थी। वह दूध ही बेचते थे। कु्छ ने पान,सिगरेट,खैनी की गुमटी या चाय की दुकान खोल ली
थी। इक्के-दुक्के कुछ लड़के ऐसे भी थे। जो बाहर कमाने दुबई, सिंगापुर,सऊदी अरब चले गये थे। कुछ वापस आ गये
थे। दुबारा खेती में लग गये थे। ऐसे लड़को के बारे मे गाँव के मड़ई,खेत से लेकर चाय की दुकान तक बस यही चर्चा थी।
अरे अब कमा लेले हवे अब काहे ला जाई। लगत बा विदेश में इन सब के मन ना लगत बा। अरे मन काही ना लगी हई जुक गवा में का बा,उहाँ बड़ बड़ सिनेमा हाल बा। एक से बड़-बड बजार बा,बस इन सब के मेहरारू के कोली ओर चोली में मन लगेला। साफ साफ यूं कहू जिती मुँह उतनी बातें थीं। खैर पलटन अक्सर उन लोगों से अपने बेटे के बारे में कहते जिनके लड़के सिंगापुर,दुबई,सऊदी अरब कमाने गये थे। अपने घरो में बड़े आराम की जिंदगी काट रहे थे। पलटन डर गये थे जो मुझसे गलती हो गई थी। उस गलती को दोबारा दोहरा कर बेटे की जिंदगी नष्ट नहीं कर सकते थे। ऐसे ही वक्त जब बेटे को नौकरी के हर जगह पलटन मदद माग रहा था। उसी वक्त किसी ने मदद के नाम पर बस इतना भर कहा था,लखनऊ,मुम्बई,दिल्ली में एजेंट कुल रहेले उहे कुल लड़कवन के विदेश भेजले। एजेंट से मिले से कही ना कही नौकरी मिल जाई।
अरे अब कमा लेले हवे अब काहे ला जाई। लगत बा विदेश में इन सब के मन ना लगत बा। अरे मन काही ना लगी हई जुक गवा में का बा,उहाँ बड़ बड़ सिनेमा हाल बा। एक से बड़-बड बजार बा,बस इन सब के मेहरारू के कोली ओर चोली में मन लगेला। साफ साफ यूं कहू जिती मुँह उतनी बातें थीं। खैर पलटन अक्सर उन लोगों से अपने बेटे के बारे में कहते जिनके लड़के सिंगापुर,दुबई,सऊदी अरब कमाने गये थे। अपने घरो में बड़े आराम की जिंदगी काट रहे थे। पलटन डर गये थे जो मुझसे गलती हो गई थी। उस गलती को दोबारा दोहरा कर बेटे की जिंदगी नष्ट नहीं कर सकते थे। ऐसे ही वक्त जब बेटे को नौकरी के हर जगह पलटन मदद माग रहा था। उसी वक्त किसी ने मदद के नाम पर बस इतना भर कहा था,लखनऊ,मुम्बई,दिल्ली में एजेंट कुल रहेले उहे कुल लड़कवन के विदेश भेजले। एजेंट से मिले से कही ना कही नौकरी मिल जाई।
उसके बाद पलटन ने
किसी से एक एजेंट का नम्बर भी ले लिया था। एजेंट का नम्बर मिलते ही पलटन ने बिना
देर किये। उसे फोन लगा दिया। पलटन ने एजेंट से इधर उधर की बात कर अपने बेटे के
बारे में यह बताया की बेटा,बी.ए पास है। मगर
एजेंट को बी.ए पास से कुछ लेना देना नहीं था। उसने पूरी बात सुनी और कहा, ‘ हाँ तो लड़का काम क्या
जानता है‘
इस सवाल ने जैसे पलटन
को आसमान से धरती पर फिर धरती के नीचे समा दिया हो। जब नौकरी काम जानने वालों को
ही मिलती है तो क्यों सरकार फालतू का बी.ए,बी.कॉम पढ़ा रही है। जमाना अब इतिहास, भूगोल का नहीं रह गया है। ‘जी काम तो कुछ नहीं जानता है। बस बी.ए पास है।
‘ तब तो लड़के को हेल्पर,रिगर पोस्ट में भेज सकते है।
‘ सुपरवाइजर में काम नहीं है‘
‘कोई टेक्निकल पढाई
है। तब कुछ हो सकता है।‘
‘जी नहीं ऐसा तो कुछ
पढ़ा नहीं है।‘
तब तो नहीं हो सकता है। देखिए अभी मेरे पास सउदी अरब मे हेल्पर की
रिक्यारमेंन्ट है। देर करने से यह भी खत्म हो जायेगा। अगर आप लड़के को भेजना चाहते
है तो फिर कुछ दिन में दिल्ली आ जाये। भेजने के लिये कम से कम 70 हजार लगेगा। 1500 रियाल सेलरी होगी।‘
‘ठीक है हम आप को
बताते हैं।‘
पलटन ने यही सोचा कि
एक वक्त उनको भी कोलियरी में लोडर‘ की नौकरी मिली थी। बाद में सब वहाँ
बाबू हो गये। इंसान को पैसे कमाने से मतलब हैं। मगर इस समय तो पलटन के पास जहर
खाने के भी पैसे नहीं थे। अगर था तो बस पाँच बीघा जमीन थी। बार बार नजर बस उधर ही
जा रही थी। क्योंकि उधार तो वह पहले ही कईयों से ले चुका था। अभी तक धीरे धीरे
वापस कर रहा था। अब अभी पहला ही कर्ज उतरा नहीं था तो नये तरीके से कर्ज के बारे
में सोचना भी गुनाह था। आखिर किस मुँह से वह लोगो से कर्ज मागते। बस घड़ी घड़ी उसे
अपनी जमीन ही नजर आती थी। मगर पलटन ने भी सोचा आखिर इंसान की पहचान भी दुख के समय
होती है। कुछ ऐसे मित्र जो हर शाम पलटन के साथ ताड़ी पिया करते और उस वक्त बड़ी बड़ी
छोड़ते अब उन्हें लगने लगा कि क्यों ना उन सब को आजमा लिया जाये। मगर ऐसा भी नहीं
था कि सभी ताड़ी पीने वाले दोस्त उसके पैसे वाले ही थे। कुछ तो इनमें से ऐसे भी थे
जो खुद हमेशा मदद के लियेे हाथ बढ़ाये रखते थे। उस दिन जब वह ताड़ी पी रहा था। उसने
अपने मित्र से कुछ पैसे की मदद मांगी। वह यह सुनते ही मित्र बोला, ‘तुहार के पैसन की का
जरूरत पड गइल रे।‘
दूसरे ने - जो हमेशा दूसरो से
पैसे मांगते हैं ,‘ हई ला जब इ कुल के ई हाल बा त हमन लोग
के का होई।‘
पलटन ने मित्र से कहा,‘ दरसल हम सोचत हई बेटा के बाहर भेज दी
कमाये खतिर।‘
‘कहा हो,कहा भेजवा बच्चवा के‘
‘सऊदी अरब‘
भक से ताड़ी दूबारा
गिलास में उझलते,‘हाय तनी मरदवा। मुम्बई में बिहारी कुल
के तो छोड़त नेखे। मुस्लीम के बिच में कहा बेटवा के भेजत बाड़े। साला वहाँ तो आदमी
के बकरा जैसन काट डालल जाला।‘
पलटन उन सब की बात अब
सुनना नहीं चाहता था। वह समझ गया कि पैसे ना देने के यह सब बहाने हैं। उस दिन और
ज्यादा ताड़ी पी वहाँ से उठ कर चल दिया था। पलटन के दिमाग में मित्र की बात ने हलचल
तो जरूर पैदा हो गई। पर पलटन ने मन ही मन
कहा नो रिस्क नो गेम।
बार बार जहाँ नजर जा
रही थी निशाना भी वहीं लगा। आखिर कार दुखी होकर एक बीघा खेत तारकेश्वर को बेच दिया। तारकेश्वर ने खुश हो एक बीघा खेत खरीद लिया।
जब घर में सऊदी अरब
जाने की बात होने लगी। धनंजय के लिए सऊदी अरब की नौकरी किसी लड़के लड़की की जैसे पहले प्यार का पहला
एहसास,पहला स्पर्श, पहला चुम्बन,जहाँ डर, शर्म और बेचैनी कुछ ऐसा ही था। या फिर उस नौजवान लड़की की तरह जिसकी शादी की
बात पक्की होने पर वह शर्माती है। अक्सर ससुराल जाने के नाम से सोचती है। कैसे
होंगे वहाँ के लोग। घर जैसा ही प्यार मिल पायेगा। कभी सऊदी अरब जाने की बात से
डरता कभी वहाँ की कल्पना कर खुश हो जाता था।
पैसे आते ही पलटन ने
बेटे को बाहर भेजने के लिए पासपोर्ट बनने दे दिया। वह भी तत्काल में। जो काम दो
पैसे में होता अब वह काम जल्दी की वजह से चार पैसे ज्यादा लग रहे थे।
पूरी तैयारी के साथ
पलटन अपने बेटे धनंजय के साथ मुंबई इन्टरव्यू के लिए पहुँच गया था। इस विशालकाय
समुन्दर में कई लोग विदेश जाने के लिए गोता लगा रहे थे। बड़ी-बड़ी वेल,सार्क जैसी मछलियाँ इन्हें निगलने के लिए तैयार थी। यह वह दिन थे जब देश के
प्रधानमंत्री विदेश जापान,कोरिया,जर्मनी,अमेरिका आदि देश का भ्रमण कर रहे थे।
सभी देश भारत में अरबों रूपये इनवेस्ट करने को बेचैन थे। ऐसा लग रहा था जैसे पूरे
देश में रोजगार का जाल बिछ जायेगा। सभी बेरोजगार एक दिन इस जाल में ऐसे फसेंगें कि
कभी निकल नहीं पायेंगे।
पहले राउन्ड
इन्टरव्यू होने के बाद एजेन्ट ने दूसरी जगह इन्टरव्यू के लिए भेज दिया। वहाँ दो
चार सवाल के बाद उसकी सेलरी 1500 रियाल की जगह 1200 रियाल लगा दी गई। 800 पल्स 200 पल्स 200 हो गई। आगे इंक्रीमेंन्ट होने की बात कह दी गई। सही मायने में पलटन को रियाल
शब्द ही रूपयों से सुनने में कही ज्यादा लग रहा था। ऐसा लगता था। जो दुख रूपये,पैसे दूर नहीं कर पाये वह रियाल कर देगा।
मॉ को बेटे की भेजने
की तैयारी देख अपनी बेटी की विदाई याद आने लगी थी। आज वह यह सोच नहीं पा रही थी कि
आखिर बेटी हो या बेटा कोई तो नहीं रह पाता माता पिता के पास फिर क्यों दुनिया हर
समय बेटा ही चाहती है। जैसे जवान बेटी को घर नहीं रख सकते वैसे ही तो जवान बेटा
अगर माता पिता के साथ रहने लगे तो लोग उसे नालायक से कम नहीं आंकते हैं। कष्ट तो
दोंनो का समान है। उस दिन जाते वक्त उसने अपने बेटे के हाथ में उन हजार रूपयों
को पकडाये थे जिसे माँ अक्सर कंजूसी कर जमा करती थी। क्रमश: ...............
सम्प्रति- मुंजाल शोवा लि.कम्पनी में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत
सम्पर्क- बी ब्लाँक-11,टिहरी विस्थापित कालोनी,ज्वालापुर,
न्यू शिवालिकनगर,हरिव्दार,उत्तराखण्ड,249407
मोबा0- 9012275039
सम्पर्क- बी ब्लाँक-11,टिहरी विस्थापित कालोनी,ज्वालापुर,
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