कवि मित्र पद्मनाभ गौतम के पहाड़ी अनुभवों को उनके संस्मरण - ‘ लौट के बुद्धू घर को आए ’ को आज से पढ़ेंगे किस्तों में । आपके विचारों की प्रतीक्षा में-
सम्पादक -पुरवाई
हिमाचल प्रदेश का भरमौर कस्बा उन कुछ स्थानों में से एक है, जिसे हिमाचल प्रदेश के दुर्गम स्थानों में से एक कहा जाता है। पांगी-भरमौर, लाहौल-स्पीति घाटी, किन्नौर का ’कोल्ड डेजर्ट’ काजा, रिकांगपियो और पूह, इन सभी स्थानों में जीवन अत्यंत कठिन माना जाता है। एक समय था, जब किसी सरकारी कर्मचारी को एक नियत समय तक तक पांगी-भरमौर तथा अन्य ऐसे ही चिन्हित दूरस्थ क्षेत्रों में अनिवार्य सेवा देनी होती थी। यह अनिवार्य सेवाकाल काला-पानी का दण्ड माना जाता था, जिसे कर्मचारी चिकित्सा तथा अन्य अर्जित अवकाश तथा फरलो के सहारे काटते। किसी ईमानदार कर्मचारी को अघोषित दण्ड देने के लिए भी उनकी पदस्थापना इन दुर्गम क्षेत्रों में कर दी जाती थी। वैसे तो सड़क निर्माण का कार्य करने वाले सरकारी संस्थानों ग्रेफ व सीमा सड़क संगठन ने इन दूरस्थ क्षेत्रों में काम चलाऊ इकहरे मार्ग बना दिए हैं, जो कि अब कहीं कहीं दोहरे मार्गों में भी परिवर्तित किए जा रहे हैं, फिर भी आज भी इन क्षेत्रों तक पहुँचना एक कठिनाई भरा अनुभव ही होता है। अपनी नौकरी के सिलसिले में मैंने भी भरमौर में लगभग दो वर्ष का समय बिताया। यद्यपि भरमौर का वह समय हमारे लिए सुखद ही रहा, परंतु नौकरी का पदभार ग्रहण करने का एक पखवाड़ा मेरे जीवन में एक ऐसा अनुभव दे गया जिसकी स्मृति आज भी तन में कंपकंपी उत्पन्न कर देती है।
यह किस्सा पिछले दशक का है। वर्ष दो हजार आठ के जनवरी माह के अंतिम सप्ताह में मैंने हिमाचल प्रदेश के चम्बा जिले की भरमौर तहसील में नई नौकरी का पदभार ग्रहण किया था। हिमाचल के ही किन्नौर जिले के रामपुर-बुशैहर नगर के पास निर्माणाधीन रामपुर जल विद्युत परियोजना में कार्य करते हुए यद्यपि मुझे अधिक समय व्यतीत नहीं हुआ था, किंतुु वह कार्य मेरे मनोनुकूल नहीं था। अतः जैसे ही पहला अवसर हाथ में आया, मैंने रामपुर जल विद्युत परियोजना से त्यागपत्र दे दिया तथा बुधिल जल विद्युत परियोजना में नौकरी के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। नवीन कार्य मेरी रूचि के अनुकूल था। यहाँ मुझे यांत्रिक-भूगर्भशास्त्री के रूप में परियोजना के प्रमुख भूविज्ञानी का दायित्व निभाना था। पुरानी नौकरी में जहाँ मुझे सरकारी नुमाइंदों के इशारों पर नाचना पड़ रहा था, ़वहीं अब मैं गुणवत्तापरक इंजीनियरिंग निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र था। यहाँ पर मैं अपने पद के दायित्व का निर्वहन पूर्ण ईमानदारी के साथ कर सकता था।
जब मैंने पद भार ग्रहण करने हेतु भरमौर के लिए प्रस्थान किया, तो कुछ समय के लिए परिवार को रामपुर-बुशैहर में ही छोड़ना पड़ा। कारण कि पदभार ग्रहण करने के पश्चात् सर्वप्रथम मुझे भरमौर में परिवार के रहने हेतु आवास की व्यवस्था करनी थी। कम्पनी के अतिथि-गृह में इतनी जगह नहीं होती कि मैं अपनी गृहस्थी का सामान उसमें रख पाता। चूँकि भरमौर में मकान की व्यवस्था के पश्चात् ही परिवार मेरे साथ जा सकता था, अतः पत्नी को बच्चों के साथ एक पखवाड़े के लिए रामपुर ही छोड़ गया था। तब मेरे बच्चे भी बहुत छोटे थे - बेटा मानस साढ़े चार साल का तथा बेटी सिद्धी केवल सवा दो माह की। उन्हें अपनी सहृदय मकान-मालकिन श्रीमती गौतम तथा पड़ोसियों के आसरे छोड़ कर एक दिन मैं भरमौर को निकल पड़ा।
क्रमशः
पद्मनाभ गौतम
सहायक महाप्रबंधक
भूविज्ञान व यांत्रिकी
तीस्ता चरण-टप् जल विद्युत परियोजना
पूर्वी सिक्किम, सिक्किम
737134
संपर्क
द्वारा श्रीमती इन्द्रावती मिश्रा
स्कूल पारा बैकुण्ठपुर
जिला-कोरिया छ.ग.
497335
स्कूल पारा बैकुण्ठपुर
जिला-कोरिया छ.ग.
497335
अच्छा प्रयास है चौहान साहब बधाई दोनों बंधुओं को..
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