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बुधवार, 14 सितंबर 2016

हिंदी दिवस पर विशेष : अमरपाल सिंह आयुष्कर



 जन्म :१ मार्च १९८० ग्राम खेमीपुर,नवाबगंज जिला गोंडा ,उत्तर - प्रदेश          
दैनिक जागरण, हिदुस्तान ,कादम्बनी,आदि में  रचनाएँ प्रकाशित
बालिका -जन्म गीत पुस्तक प्रकाशित
२००१  मैं बालकन जी बारी संस्था  द्वारा राष्ट्रीय  युवा कवि पुरस्कार
२००३ बालकन जी बारी -युवा प्रतिभा सम्मान आकाशवाणी इलाहाबाद  से कार्यक्रम प्रसारित
परिनिर्णय-  कविता शलभ  संस्था इलाहाबाद  द्वारा 
पुरस्कृत

 हिंदी हिंदुस्तान की


जाति - धर्म मजहब से ऊँची अधरों के मुस्कान –सी
स्वर्णिम किरीट चन्दन मस्तक का हिंदी है
सदियों से सस्वर गुंजित है ये अलियों के गुंजार –सी
लहराती माँ के आँचल - सी हिंदी हिन्दुस्तान की ,

कहीं कृष्ण का बचपन बनती, कहीं राम की माया
कहीं पे राधा पाँव महावर ,कहीं नुपुर सीता माता
गंगा की निर्मल धार कभी ,कभी भारत माँ का ताज बनी
युग –युग से हंसकर सींचा है ,ये स्वर्ग सरीखा बाग़ भी
लहराती माँ के आँचल - सी हिंदी हिन्दुस्तान की

शिशु की तुतली बोली में कभी खनकती है
बन प्रेम दीवानी मीरा , कभी झलकती है
हो राम , कौसल्या गोद सजी पुष्पित होकर
दसरथ के ह्रदय का बनती कभी विलाप भी
लहराती माँ के आँचल सी हिंदी हिन्दुस्तान की

खेतों का पानी बनी कभी ,कभी गर्जन करती ज्वार दिखी
हरियाली हँसते किसान के गालों के गुलज़ार- सी
भेदभाव को मिटा सभी को गले लगाती रहती है
होली ,ईद ,दिवाली ,क्रिश्मस ,बैसाखी त्यौहार – सी
लहराती माँ के आँचल सी हिंदी हिन्दुस्तान की

राणा की शमशीर कभी , कभी वीर शिवा की बन कटार
आजादी के मतवालों संग ,किया शत्रु पर बज्र प्रहार
रण बीच गरजती रही ,कलिका रूप बनी
फांसी पर झूली कभी शान से, वीरों के बलिदान -सी
लहराती माँ के आँचल -सी हिंदी हिन्दुस्तान की

कहीं जीर्ण वसन की लाज बचाती रहती है
कहीं आंचल सजनी का लहराती रहती है
गोरी के अलकों - पलकों के मादक –मादक मुस्कान –सी
बनती दीपक राग कभी ,कभी बनती मेघ मल्हार भी
लहराती माँ के आँचल- सी हिंदी हिन्दुस्तान की
गैरों की भाषा जब लोगों की बनती शान
अपनों के ही बीच फिरे बनकर अनजान
दुखिया होती जब कुब्जा और अहिल्या- सी
बनकर देव सामान सूर ,तुलसी ने डाली जान भी
लहराती माँ के आँचल सी हिंदी हिन्दुस्तान की |



संपर्क सूत्र-

अमरपाल  सिंह ‘आयुष्कर’

G-64  SITAPURI

PART-2

NEW DELHI

1100045

मोबा0-8826957462

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं




जन्म :१ मार्च १९८० ग्राम खेमीपुर,नवाबगंज जिला गोंडा ,उत्तर - प्रदेश            
दैनिक जागरण, हिदुस्तान ,कादम्बनी,आदि में  रचनाएँ प्रकाशित
बालिका -जन्म गीत पुस्तक प्रकाशित
२००१  मैं बालकन जी बारी संस्था  द्वारा राष्ट्रीय  युवा कवि पुरस्कार
२००३ बालकन जी बारी -युवा प्रतिभा सम्मान आकाशवाणी इलाहाबाद  से कार्यक्रम प्रसारित
परिनिर्णय-  कविता शलभ  संस्था इलाहाबाद  द्वारा प्रकाशित

अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं

1 -  तुम आ जाओ तो


तुम आ जाओ तो सुधियों की गांठें खोलूं
सजी हथेली , चूड़ी पायल
मन की सारी बातें बोलूं
तुम आ जाओ तो सुधियों की गांठें खोलूं
सावन के घन , तपन जेठ की
सरदी की औकातें तोलूँ
तुम आ जाओ तो सुधियों की गांठें खोलूं

देहरी का दीवा , चौबारे की तुलसी
बेरंग तन-मन
फिर फगुआ की , गागर घोलूं
तुम आ जाओ तो सुधियों की गांठें खोलूं |

2- आँसू ने जन्म लिया होगा



तप-तप के मन के आँगन  ने
चटकी दरार का रूप लिया
सावन का बादल फेरे मुंह
चुपके से निकल दिया होगा
गहरी दरार फिर भरने को
आँसू ने जन्म लिया होगा

दो बोल तिक्त –मीठे पाकर
सहमा होगा ,उछला होगा
तपते होंठों पर बूंदों ने
हिमकन - सा काम किया होगा
गहरी दरार फिर भरने को
आँसू ने जन्म लिया होगा



कोई अपना , टूटा सपना
तो कभी पराये दर्द लिए
मन का आंगन पूरा-पूरा
मिट्टी  से लीप दिया होगा
गहरी दरार फिर भरने को
आँसू ने जन्म लिया होगा


उलझी –सुलझी रेखाओं के
भ्रम से सहमा जब मन होगा
स्नेह भरा दीपक बनकर
रातों का साथ दिया होगा
गहरी दरार फिर भरने को
आँसू ने जन्म लिया होगा |



3- अम्मा की आँखों में .....
अम्मा की आँखों में हमने , जीवन एक हिसाब पढ़ा
गम का दरिया, नाव ख़ुशी की ,
हँसती – गाती लहरों पर ,
है जीवन एक बहाव पढ़ा
अम्मा की आँखों में हमने ,जीवन एक हिसाब पढ़ा

जलते चूल्हे पकती रोटी ,
फगुआ ,चैती ,कजरी होती
और कभी तो गल जाती है दाल सरीखी
ताप सभी सहती रहती
है जीवन एक अलाव पढ़ा
अम्मा की आँखों में हमने , जीवन एक हिसाब पढ़ा

आँचल का कोना सिलती या
बना रही होती कथरी ,
सबको मन की पीर सुनाना न बदरी
ढँक  देना कुछ
 है जीवन एक लिबास पढ़ा
अम्मा की आँखों में हमने , जीवन एक हिसाब पढ़ा

सपनीली - सतरंगी आँखे कायम हों
उठे  भले ना सपनों की दीवार कोई
आज नही तो कल पूरी हो जायेंगी
तिनका –तिनका हाथ चलाते ही जाना
 है जीवन   इक  विश्वास पढ़ा
अम्मा की आँखों में हमने , जीवन एक हिसाब पढ़ा |


संपर्क सूत्र-

अमरपाल  सिंह ‘आयुष्कर’

G-64  SITAPURI

PART-2

NEW DELHI

1100045

मोबा0-8826957462

रविवार, 10 अगस्त 2014

अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं





                                                      अमरपाल सिंह
           

           उत्तर प्रदेश के नवाबगंज गोंडा में 01 मार्च 1980 को जन्में अमरपाल सिंह आयुष्कर ने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से हिन्दी में एम0 ए0 किया है । साथ ही नेट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दिल्ली के एक केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन।
            आकाशवाणी इलाहाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान हुई मुलाकात कब मित्रता में बदल गयी इसका पता ही न चला। लेकिन भागमदौड़ की जिंदगी और नौकरी की तलाश में एक दूसरे से बिछुड़ने के बाद 5-6 साल बाद फेसबुक ने मिलवाया तो पता  चला कि इनका लेखन कार्य कुछ ठहर सा गया है । विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं से गुजरने के बाद लम्बे अन्तराल पर इनकी दो कविताएं पढ़ने को मिल रही हैं । 


पुरस्कार एवं सम्मान


           वर्ष 2001 में बालकन जी बारी इंटरनेशनल नई दिल्ली द्वारा -राष्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार  तथा वर्ष 2002 में  राष्ट्रीय कविता एवं प्रतिभा सम्मान ।
        शलभ साहित्य संस्था इलाहाबाद द्वारा 2001 में पुरस्कृत ।



                                                  चित्र  नेट से साभार


अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविताएं-

1-  अजन्मा कर्ज़दार

जान  गयी हूँ माँ मरना नियति है मेरी

और मुझे मारना तुम्हारी मजबूरी

पर मैं नहीं चाहूंगी

मेरी हत्या तुम्हे अभिशप्त करे

ये भी नहीं चाहती
माँ 
 
तुम्हे होना पड़े लगातार चौथी बार

पदाक्रांत

बेटी हूँ जानती हूँ नहीं हूँ

तुम्हारे प्रत्यर्थ

पर हूँ आज इतनी समर्थ

तीन माह के जीवनदान के बदले

चुका सकती हूँ

ममत्व का क़र्ज़ 


अपने नन्हे कोमल हाथों से करके

 अपना आत्मोत्सर्ग।

2-मृदुल याचना 

 
मैं भी आना चाहती हूँ संसार में


पीना चाहती हूँ ममत्व की बूँद 


पाना चाहती हूँ पिता का दुलार , भैया का प्यार 


कुछ पल की साँसें , कुछ पल का आगार


क्या मुझे दोगी माँ ?


देखना चाहती हूँ अखिल ब्रम्हांड में 


पूजनीया नारी की गरिमा

कुछ पल के लिए आँखे , कुछ पल का आभार 


क्या मुझे दोगी माँ ?


खेलना चाहती हूँ , जीवन संघर्ष की  द्यूतक्रीड़ा


जीतना , हारना, बनना, बिखरना 


कुछ पल के लिए पाँव और कुछ पल का अधिकार 


क्या मुझे दोगी माँ
?

पढना चाहती हूँ मानव मन का रहस्य 


कुटिलता ,कलुषता ,द्वेष ,पाप 


प्रेम, दया ,ममता ,पुन्य का पाठ 


कुछ पल की जुबान
, कुछ पल का आराम 

क्या मुझे दोगी माँ ?


बनना चाहती हूँ सीता ,सती ,शक्ति और कल्पना


 छूना चाहती हूँ धरा और आकाश 

एक घर, एक प्यार ,एक संसार


कुछ पल का अवसर और सम्मान 

क्या मुझे दोगी माँ ?




संपर्क- अमरपाल सिंह आयुष्कर 
          नवाबगंज गोंडा ;उ0प्र0

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

अमरपाल सिंह आयुष्कर की कविता



                        अमरपाल सिंह आयुष्कर

 उत्तर प्रदेश के नवाबगंज गोंडा में 01 मार्च 1980 को जन्में अमरपाल सिंह आयुष्कर ने इलाहाबाद विश्व विद्यालय से हिन्दी में एम0 ए0 किया है । साथ ही नेट की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद दिल्ली के एक केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन।
            आकाशवाणी इलाहाबाद में एक कार्यक्रम के दौरान हुई मुलाकात कब मित्रता में बदल गयी इसका पता ही न चला। लेकिन भागमदौड़ की जिंदगी और नौकरी की तलाश में एक दूसरे से बिछुड़ने के बाद 5-6 साल बाद फेसबुक ने मिलवाया तो पता  चला कि इनका लेखन कार्य कुछ ठहर सा गया है । विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं से गुजरने के बाद लम्बे अन्तराल पर इनकी 
कविता पढ़ने को मिल रही है और वह भी सा के साथ।
पुरस्कार एवं सम्मान- 

           वर्ष 2001 में बालकन जी बारी इंटरनेशनल नई दिल्ली द्वारा “ राष्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार ” तथा वर्ष 2002 में “ राष्ट्रीय कविता एवं प्रतिभा सम्मान ”।
        शलभ साहित्य संस्था इलाहाबाद द्वारा 2001 में पुरस्कृत ।


भावांजलि
 
नव वर्ष का यह शुभ दिन

प्रेरित करता है

अतीत की सीपिओं से ,वर्तमान का मोती चुन लेने को 

जिसे स्वर्णिम भविष्य के तारों में पिरोया जा सके 

अवलोकन ,मूल्यांकन उन पलों की लहरों का

जिसमे कितने टूटे ,चट्टानों से टकराकर
 ,
और कितनो ने तोड़ी चट्टानों की ख़ामोशी 

नव वर्ष का यह शुभ दिन

उल्लसित  करता है

अभिनूतन सर्जना के लिए

असफलताओं से ध्वंस हुए महलों पर 

नई नीव रखने को

ह्रदय के ढीले पड़ चुके तारों को 

आत्मविश्वास की अंगुलिओं  से झंकृत  करने को 


नव वर्ष का यह शुभ दिन 

विकसित करता है

विमल भावों का कँवल पुष्प और नवीन  विचारों का उत्कर्ष

जिसकी रंगभूमि पर 

मंचित  हो सके –विश्व शांति का पाठ 

और विगलित हो सके 

दूर से , पास से ,अपने आप से

आती हुई  करूण ध्वनिओं का आर्तनाद  


संपर्क सूत्र-
अमरपाल  सिंह ‘आयुष्कर’
G-64  SITAPURI
PART-2
NEW DELHI
1100045
मोबा0-8826957462

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

लघु कथाएं- फुटकर ,सह शिक्षा



लघु कथाएं-


1. अमरपाल सिंह आयुष्कर

  













जन्म : मार्च १९८० ग्राम खेमीपुर,नवाबगंज जिला गोंडा ,उत्तर - प्रदेश            
दैनिक जागरण, हिदुस्तान ,कादम्बनी,आदि में रचनाएँ प्रकाशित
बालिका -जन्म गीत पुस्तक प्रकाशित
२००१  मैं बालकन जी बारी संस्था  द्वारा रास्ट्रीय युवा कवि पुरस्कार 
२००३ बालकन जी बारी -युवा प्रतिभा सम्मान
 आकाशवाणी अल्लाहाबाद से कार्यक्रम प्रकाशित
परिनिर्णयकविता शलभ  संस्था अल्लाहबाद द्वारा प्रकाशित
सम्प्रति -प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक हिंदी (केंद्रीय विद्यालय rangapahar, दीमापुर नागालैंड


फुटकर 
 
ट्रेन  तेज़  रफ़्तार से भागी जा रही थी  मैं पत्रिका के  पन्ने पलट-पलट  कर थक चुका था   दोपहर  हो चली थी, मेरी भूख  भी एक्सप्रेस रफ़्तार पकड़ रही थी ,ट्रेन एक संभ्रांत  स्टेशन पर रुकी ,और मेरे पांव  उस दुकान पर  ,दिमागी मोल भाव , सकुचाते -सकुचाते हाथ जेब तक जाकर लौट आये " पैक कर दूं भाई साहब 'बीस रूपये के तो हैं.....? मेरी नकारात्मक मुद्रा देखकर ,मुह खोल हँसता लिफाफा संत हो गया सस्ते  स्टेशन का इंतज़ार करती मेरी भूख ट्रेन की रफ़्तार में शामिल  होने लगी लोगों  को भूख नाचती होगी ,पर आज में भूख को नचा रहा था तभी मेरी  नज़र ट्रेन में गर्मागर्म समोसे बेंच रहे लड़के पर पड़ी ,मेरे हाथ में पड़े दस के नोट ने फडफडा के कहा -दो समोसे देना लड़के ने निरीहता से कहा -फुटकर नहीं है साब ....खुल्ला खुल्ला समझे " नोट ने टूटने के लिए संभ्रांत चेहरों की तरफ गुजारिश की ,सभी चेहरे मुस्करा कर करते गये खन -खन करती हथेली लिए वो फटेहाल लड़की मेरे कम्पार्टमेंट में दाखिल हुई ,उसने मेरे आगे हाथ फैलाया. मैंने संभ्रांत अदा के साथ सर हिलाया लड़की के हाथ में ढेरों फुटकर .....धीरे से बुलाया ...दस का नोट बढ़ाते हुए फुसफुसाया ....फुटकर ? वह सकपकाई .....हाँ ! हाँ ... है बाबूजी ! एक .....दुई ...पांच.... पूरा साढ़े नौ ....अठन्नी कम  बिना एक पल रुके मैं बोल पड़ा .......'जरा अगल-बगल वालों से मांगकर दस पूरा कर दे '
वह ईमानदारी से अठन्नी मांगने में जुट गई मेरी नजर उसकी हथेली पर टिकी थी . कि कब  अठन्नी गिरे और मैं समोसे लूं


 संपर्क-

अमरपाल सिंह आयुष्कर
ग्राम- खेमीपुर,नवाबगंज
 जिला- गोंडा ,उत्तर  प्रदेश
 मोबा0- 09402732653



2-डा0 राजेन्द्र प्रसाद यादव
जन्म -15 जनवरी 1975
शिक्षा -एम00 प्राचीन इतिहास, पी0 एच0 डी0 ,बी0 एड0,आयुर्वेद रत्न,सर्टिफिकेट कोर्स इन योगा
प्रकाशन-विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में
सम्प्रति-सहायक अध्यापक

सह शिक्षा

इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण हो जाने के बाद रमा के पिता महेश ने रमा को स्नातक कक्षा में प्रवेश दिलाने हेतु विचार करना शुरू किया।लेकिन इस कार्य के संबंघ में उनके मन में द्वन्द्वात्मक स्थिति उत्पन्न हो गई। द्वन्द्व इस बात का था किवह अपनी पुत्री का प्रवेश किसी महिला कालेज में करवायें या सह शिक्षा के कालेज में।
इस बात का निर्णय करने के लिएवह अपने मित्र राजेश रंजन के पास गये।रातेश रंजन की सलाह स्पष्ट थी।उन्होंने कहा महेश जील ड़कियों के व्यक्तित्व का जिस प्रकार का विकास सह शिक्षा वाले कालेज में हो सकता है वैसा विकास महिला कालेज में नहीं हो सकता।इसका कारण यह है कि लड़कियां सह शिक्षा वाले कालेज में लड़कों से बहुत कुछ  सीखती हैं।लड़कों के आत्मविश्वास,साहस एवं संघर्ष करने की क्षमता से परिचित होकर लड़कियां अपना बेहतर विकास कर सकती हैं।यही नहीं समाज में स्त्री पुरूषों के संबंधकिस प्रकार से समाज के उत्थान के लिए बेहतर ऊर्जा उत्पन्न कर सकते हैं।इसका बीजारोपड़ तो सह शिक्षा वाले कालेज में बेहतर रूप से हो सकता है।
राजेश रंजन की इन सारी बातों संतुष्ट होकर रमा के पिता ने उसका प्रवेश एक सह शिक्षा वाले कालेज में दिलवा दिया।

संपर्क-पहिया बुजुर्ग,बांसेपुर डड़वा अतरौलिया आजमगढ़ 0 प्र0 223223
मोबा0-09198841245